पुलवामा आतंकी हमले में देश के 44 सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने के बाद पूरा देश दुखी है और हर नागरिक शहीद जवानों का बदला लेने की मांग कर रहा है। सभी का बस एक ही सवाल है कि आखिर कब तक हमारे देश के जवानों को क़ुरबानी देनी पड़ेगी। इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान से 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा वापस ले लिया है।लेकिन लोगों का मानना है कि सिर्फ इससे बात नहीं बनेगी। हालांकि, अब सिंधु जल समझौते को खत्म करने की बात चल रही है। इस समझौते को खत्म करने के बाद पाकिस्तान को काफी ज्यादा नुकसान होगा। जानिए क्या है 'सिंधु जल समझौता' !
अंग्रेजों के राज में सिंधु नदी घाटी पर फसलों की ज्यादा पैदावार के लिए बड़ी-बड़ी नहरें बनाई गई थीं। बटवारे के दौरान पानी भी बांटा गया था। पाकिस्तान पानी के लिए हिंदुस्तान पर पूरी तरह इसलिए निर्भर हो गया क्योंकि नहर हिमालय से आ रही थी जो हिंदुस्तान में है।
सिंधु जल समझौता 1960 में हुआ था। जिसके अंतर्गत ब्यास, सतलुज और रवि नदी से हिंदुस्तान को पानी मिला और पाकिस्तान को 80 मिलियन एकड़ फुट पानी दिया गया जो झेलम, सिंधु और चिनद नदी से आता है।
जानकार हैरानी होगी लेकिन इस समझौते के अंतर्गत हिंदुस्तान के मुकाबले पाकिस्तान को ज्यादा पानी मिलता है और पाकिस्तान इस पानी का प्रयोग खेती के लिए कम बल्कि बिजली बनाने के लिए ज्यादा करता है।
रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान का 65 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र सिंधु नदी में आता है और खेती से लेकर पीने के पानी और बिजली तक पाकिस्तान पूरी तरह इसपर निर्भर है। ये पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान से 'सिंधु जल समझौता' खत्म करने की बात कही गई है, इससे पहले भी ऐसा हो चुका है।
हालांकि, ये संधि तोडना इतना आसान नहीं है क्योंकि ये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है और इस संधि एकतरफा मत के साथ नहीं तोड़ा जा सकता। यही बात उरी हमले के बाद भी उठी थी कि हिंदुस्तान को 'सिंधु जल समझौता' खत्म कर देना चाहिए और पुलवामा हमले के बाद अब एक बार फिर ये मुद्दा चरम पर है।