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इन वजहों से हमेशा निर्मल रहती है मां गंगा, आप भी जानें इसकी पवित्रता का आधार

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: Ayush Jha Updated Wed, 19 Jun 2019 09:37 AM IST
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गंगा
गंगा - फोटो : social media
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हिंदू धर्म में किसी के भी जन्म या मृत्यु के बाद गंगा जल से ही घर को शुद्ध करने की परंपरा है। इसके साथ ही यदि कोई मरने की स्थिति में हो तो उसे गंगा जल पिलाने और दाह संस्कार के बाद उसकी राख को गंगा के पवित्र जल में प्रवाहित करने की भी पंरपरा रही है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं में गंगा पापों का नाश कर मोक्ष देने वाली देव नदी मानी गई है। हिंदू धर्म में गंगा नदी को पवित्र नदी होने के साथ ही देवताओं की नदी कहा गया है, यही कारण है कि आज भी हर मांगलिक कार्य में गंगाजल का उपयोग किया जाता है।

हिमालय की कोख से निकली गंगा ( भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग ) में अलकनंदा से मिलती है। अपने इस सफर में गंगा के जल में कुछ खास लवण और जड़ीबूटियां घुल जाती हैं। जिससे गंगा जल अन्य पानी के मुकाबले कहीं ज्यादा शुद्ध और औषधीय गुणों से परिपूर्ण हो जाता है। 

हर हिंदू परिवार में गंगाजल बोतल या कंटेनर भरा हुआ मिलना आम बात है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सालो बोतल में बंद होने के बाद भी गंगा का पानी कभी खराब क्यों नहीं होता है, जबकि घर में रखा सामान्य सा पानी कई दिनों तक बंद रहने के कारण खराब हो जाता है या उसमें कीड़े पड़ जाते है। इतना ही नहीं जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था तब अंग्रेज यहां से वापस जाते समय अपने साथ पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

 
गंगा के पवित्रता को लेकर अंग्रेजों के समय से ही रिसर्च किया जा रहा है। 1890 में अर्नेस्ट हैंकिंग गंगा के जल के उपर रिसर्च करना शुरु किया। माना जाता है कि उस समय देश में भयंकर महामारी हैजा का प्रकोप था। लोग  शवों को गंगा नदी में बहाया किया करते थे। हैंकिंग को इस बात का भय था कि कहीं जो लोग स्नान करने और पीने के लिए इस नदी का प्रयोग करते है कहीं वे भी कहीं हैजा पीड़ित ना हो जाएं। लेकिन जब हैंकिंग ने उस पानी को टेस्ट किया, उस पर रिसर्च की तो उसने पाया कि वह पानी एकदम शुद्ध था, उसमें किसी प्रकार का कोई बैक्टीरिया या कोई अन्य कीटाणु नहीं थे। ऐसे में हैंकिन को अपने शोध से ये बात समझ में आ गई कि गंगाजल कोई सामान्य जल नही है।

हैंकिंग ने करीब 20 वर्ष तक इस रिसर्च को आगे बढ़ाया। उन्होंने यह पाया कि गंगा के पानी में मौजूद वायरस किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देता। उन्होंने इस वायरस को निंजा वायरस का नाम दिया था। आधुनिक विज्ञानिकों ने भी इस निंजा वायरस के अस्तित्व को स्वीकार किया और उसे ही गंगाजल की निर्मलता का कारण माना। 
हैकिंग के बाद भी गंगा की पवित्रता पर कई रिसर्च किए गए, अधिकतर वैज्ञानिको का यह भी मानाना है की जिस स्थान से गंगा नदी का उद्गम हुआ है। वह स्थान हिमालय पर्वत पर है जहाँ पर कई प्रकार की जीवनदायी जड़ीबूटियाँ खनिज लवण पाए जाते है। यह जड़ी बूटियाँ और खनिज लवण गंगाजल के संपर्क में आते है जिससे इनके गुण गंगा के पानी में विलीन हो जाते है जिसके कारण गंगाजल खराब नहीं होता है। गंगाजल के पानी में सल्फर अधिक मात्रा उपलब्ध है और कुछ रासायनिक क्रिया भी गंगाजल में होती रहती है। जिस कारण से गंगा जल में किसी दूषित जीव की उत्पत्ति नहीं हो पाती इसी कारण से भी यह स्वच्छ रहता है। गंगा के पानी में (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है इसलिए यह पानी कभी भी पिया जा सकता है।
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