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'पार्टनर' की तलाश में 9 महिने पैदल ये बाघ, तय किया 3000 Km का सफर

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: Ayush Jha Updated Sat, 21 Nov 2020 10:52 AM IST
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बाघ
बाघ - फोटो : सोशल मीडिया
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'वॉकर' ने भारत में अब तक दर्ज 'एक बाघ द्वारा सबसे लंबी पैदल-यात्रा' पूरी कर ली है। अब इस बाघ ने महाराष्ट्र के ज्ञानगंगा अभयारण्य को अपना घर बना लिया है। वॉकर को वन्य-जीव अधिकारियों ने यह नाम दिया है। साढ़े तीन साल के इस नर बाघ ने पिछले साल जून में महाराष्ट्र के एक वन्य-जीव अभयारण्य में अपना घर छोड़ दिया था। वह संभवतः शिकार, अपने लिए अलग इलाके या एक साथी की तलाश में था। रेडियो कॉलर से लैस इस बाघ ने महाराष्ट्र और तेलंगाना के सात जिलों में 3,000 किमी की यात्रा की और अब वो एक जगह पर बस गया है। जिस रेडियो कॉलर के सहारे उसे ट्रैक किया जा रहा था, उसे अप्रैल में हटा दिया गया था। 

205 वर्ग किलोमीटर में फैले ज्ञानगंगा अभयारण्य में तेंदुए, नीलगाय, जंगली सूअर, मोर और हिरण रहते हैं। वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि वॉकर वहां रहने वाला एकमात्र बाघ है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ वन अधिकारी नितिन काकोडकर ने बताया, 'अब उसे 'टैरेटरी' (सीमा) की चिंता नहीं है और यहां शिकार भी पर्याप्त हैं।' 
अब वन्यजीव अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या उन्हें वॉकर को संभोग साथी देने के लिए एक मादा बाघ को अभयारण्य में ले जाना चाहिए या नहीं। बाघ अकेले रहने वाला जीव नहीं है। इसलिए उसे साथी की जरूरत तो है, लेकिन अभयारण्य में एक दूसरे बाघ को ले जाना, एक आसान निर्णय नहीं है। काकोडकर कहते है, 'ज्ञानगंगा कोई बड़ा अभयारण्य नहीं है। इसके चारों ओर खेती होती है। इसके अलावा, अगर वॉकर यहां प्रजनन करता है, तो बाकी जानवरों पर दबाव बढ़ेगा।' 
भारत में बाघ के 'दुनिया में कुल हैबिटेट' का सिर्फ 25 फीसदी हिस्सा है, लेकिन दुनिया के 70 फीसदी यानी करीब 3,000 बाघ यहीं रहते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन उनके आवास सिकुड़ गए हैं और उन्हें अपना पेट भरने के लिए हमेशा शिकार भी नहीं मिल पाता। जानकार बताते हैं कि हर बाघ को 'फूड बैंक' सुनिश्चित करने के लिए, अपने क्षेत्र में 500 जानवरों की आवश्यकता होती है। 
 
वॉकर को पिछले साल फरवरी में एक रेडियो कॉलर लगाया गया था। उसने अपने लिए सही स्थान खोजने के लिए मॉनसून की बारिश शुरू होने तक जंगलों में घूमना जारी रखा। वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि 'वॉकर ने ये 3000 किलोमीटर की यात्रा सीधे नहीं की। हर घंटे जीपीएस के सहारे उसकी लोकेशन दर्ज की जाती थी। इस दौरान वॉकर की लोकेशन 5,000 से अधिक स्थानों में दर्ज की गई।' 
वॉकर अधिकांश हिस्से में नदी, नालों और राजमार्गों के साथ-साथ खेतों में, कभी आगे-कभी पीछे यात्रा करते हुए ट्रैक किया गया। महाराष्ट्र में सर्दियों में कपास उगाने का मौसम होता है। कपास की ऊंची फसल में ये बाघ आसानी से छिपते-छिपाते आगे बढ़ता रहा। वह ज्यादातर रात में यात्रा करता था, खाने के लिए जंगली सूअर और मवेशियों को मारता था। 
अपनी इस लंबी और जोखिम भरी यात्रा के दौरान वॉकर सिर्फ एक बार मनुष्यों के साथ संघर्ष में आया था, जब एक आदमी उसके पंजों के निशानों के सहारे, एक घनी झाड़ी में बैठे वॉकर के पास पहुंच गया था। ये शख्स मामूली रूप से घायल हो गया था। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ जीव विज्ञानी डॉक्टर बिलाल हबीब ने बताया, 'एक बाघ की यह लंबी यात्रा दिखाती है कि विकास और बढ़ती मानव आबादी के बावजूद, महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्र अभी भी बाघों के लिए स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने में मददगार हैं। इन इलाकों में विकास अब भी जंगली जानवरों की आवाजाही में बाधा नहीं बना है।' 


 
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