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उत्तर प्रदेश के खानसामों ने निजामों के यहां दावत उड़ाते हुए मूंछों पर तान दे-देकर डकारें ली हैं। बताते हैं कि निजामों ने उन्हें पानी पिलाया है, वजीरों ने पंखे झले हैं। निजामखाने के दूसरे मुलाजिम और अफसरान तो अक्सर तंदूरी चिकन में तड़के लगाते देखे गए हैं। दरअसल, इतिहास की गुमनाम किताबों में उत्तर प्रदेश के बीते हुए जमाने बड़े उल्टे और यादगार रहे हैं। मौलाना यहां इबादतगाहें छोड़कर तिजारत करने लगे और अब तो साधु महंत हुकूमत चला रहे हैं। कम्बख्त हर किस्से उतने ही उल्टे रहे हैं जितने कि सत्ता के गलियारों निकले फरमान। तुगलकी फरमानों के साये हिंदुस्तानी सरजमी पर ऐसे ही उड़ते नहीं देखे गए कि राजधानियां बदलती रहीं और दरो-दरबार इधर से उधर तंबू की तरह उखड़ते रहे।
ताजा फरमान, फरमान कम ईनाम ज्यादा है। तोहफे बांटने की रस्म बदस्तूर दरबारों से जारी है। खबर यूपी में पीएसी जवानों को लंबी मूंछों के बदले मिलने वाले भत्ते में इजाफे की है। कहा जा रहा है कि मौका-ए-वारदात पर मूंछों की रौबदारी ने हुजूर के चेहरे की रंगत को इतना बढ़ा दिया की तोहफा कुबूल कीजिए हो गया। फरमान, वाजिद अली शाह के अवध ए रौनक दरबार-ए-लखनऊ से निकला। रौबदार और बड़ी-बड़ी मूंछों को रखने वाले पीएससी जवानों की मूंछों को सलाम-ए-तोहफा थमा दिया गया है और भत्ते में इजाफा 50 रुपए से बढ़ाकर 250 रुपए एक झटके में कर दिया गया है।
वाकये पर नजर डालें तो मामला इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ की तैयारियों का था। अल्लाह तौबा फरमाए और हुजूर इनायत कि जो प्रयागराज का नाम इलाहाबाद ले लिया। तो जनाब बात यह हुई कि कुंभ के जलसे की तैयारियों के जायजे में हुजूरे वाला की नजर दारोगा की मूंछों से ज्यादा उससे गिर-गिरकर पड़ने वाले रौब पर पड़ी। हुजूर खुश हुए और वल्लाह मूंछों पर ईनाम की मुनादी कर डाली कि जितनी मूंछें लंबी होगी उतना ही सरदार खुश होगा। तो पीएसी जवान की मूंछों की भत्ता जो सन 1982 के फरमान के मुताबिक 50 रुपए था जो बढ़कर सीधे 250 रुपए हो गया।
हालांकि, हुजूरे वाला ने ऐसा रहमो करम एक नहीं 5 जवानों की मूंछों को देखकर किया।
पहले तो हुजूर ने सवाल दागा- जवानों मूंछों की देखभाल पर खर्च कितना आता है?
जवान बोले- खर्च तो ज्यादा आता है लेकिन मूंछों का भत्ता मात्र 50 रुपये ही मिलता है। हुजूरे वाला इतने खुश थे कि सीधे ही भत्ता बढ़ाये जाने का आदेश जारी कर दिया।
एक पीएसी जवान इस फरमान से इतना खुश हआ कि मानों जन्नत नसीब हो गई।
हुजूरे वाला से खुश होते बोला- आलम पनाह हम तो जॉइनिंग के वक्त से ही मूछें रख रहे हैं- हां कभी-कभार जल्दी आने के चक्कर में मूंछों को साज संभाल नहीं पाते। लेकिन आपकी रहमत से अब ये रोजाना रौबदार दिखेंगी।
हुजूरे वाला जवान की बात से खुश हुए और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि जवान अरज लगाते हुए बोला-आलम पनाह। मेरे मालिक- मेरा बेटा माशा अल्लाह अच्छा खासा जवान है और थोड़ा फैशनपरस्त भी। हुजूर पढ़ा-लिखा भी हमारे खानदान में सबसे ज्यादा है और ऊपर से अंग्रेजीदां है।
और एक बात कहूं- जवान डरते हुए बोला-
हुजूरे वाला- हां बोलो-बोलो रुके क्यों बोलो! अंग्रेजीदां है फैशनपरस्त है और क्या!
बात दरअसल ये थी कि हम सोच रहे थे-अब आपसे क्या कहना- लौंडा हमारा दिन भर घूमता-फिरता है। कभी गाय बचाता है तो कभी नारे लगाता है। इन दिनों तो कम्बख्त मारे ने बाल और चुटइयया भी बढ़ा ली है और मोबाइल पर टिक टॉक के वीडियो बनाते रहता है।
आप तो हवा देख ही रहे हैं- हम सोच रहे थे कि कुछ काम धंधे से उसे लगा देते? कोई भत्ता वत्ता, अजीफा-वजीफा उसे भी मिल जाता हुजूर तो बड़ा रहम होता?सुना है बड़े दरबार से भी बेरोजगारों को कोई भत्ते वजीफे की बात चल रही ?
जवान की बात सुनकर हुजूरे वाला की छोटी सी मूंछों के बाल खड़े हो गए और त्योरियां चढ़ गईं!
बोले- कम्बख्त मारे यहां कोई खैरात बंट रही है कि अब तेरे लौंडे की चुटियया और दाढ़ी के बाल पर भत्ता दे दूं?
हुजूरे वाला का गुस्सा देख जवान की हालत टाइट हो गई । ये 250 रुपए भी ना चले जाएं इस डर से बोला- हुजूर गुस्ताखी माफ हो । हम तो इस 250 में ही काम चला लेंगे। मूंछों का क्या है- वह तो बनी ही रहेगी। आपकी शान ना जाने पाए। पर गुस्ताखी माफ हो हुजूर..!
नोट : यह लेख एक राजनीतिक व्यंग्य है।