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हर स्कूल में ऐसे टीचर ज़रूर होते हैं जो बच्चों को बेवजह मारने-पीटने में विश्वास रखते हैं। उनके लिए हर ग़लती का इलाज मार ही होता है। बच्चे उनसे थर-थर कांपते हैं और आशा करते हैं कि कहीं वो उनके टीचर न बन जाएं। हम मैथ्स में बेहद कमज़ोर हैं। कुछ तो हम दिमाग से ही पैदल थे और रही सही कसर निहायती डरावने गणित के टीचरों ने पूरी कर दी।
आज भी हमसे कोई सवाल हल कराइए तो हमारी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता है। ये सिर्फ़ हमारी कहानी नहीं है, देश भर के स्कूलों में ऐसे टीचरों की भरमार है। और ऐसे ही कुछ डरावने किस्से लोगों ने शेयर किये हैं जब टीचर इंसानियत की साड़ी हदें पार कर देते हैं। ये लोग आपके साथ अपनी कहानियां शेयर कर रहे हैं। आपको क्या लगता है आप पर ही अत्याचार हुए हैं?
जब मैं सेकंड में था तो मेरी एक टीचर ने सबसे कहा कि मेरा ब्रेन वॉश कर दिया गया है। और मैं पागल हो गया हूं। उन्होंने बाकि सारे बच्चों से मुझे पागल बुलाने को कहा। उसी साल उनके पति गुज़र गए और मैं बहुत खुश था।
मेरे पापा के हिंदी के टीचर सज़ा के तौर पर बच्चों के हाथ पर कुर्सी रखकर उसपर कुछ समय के लिए बैठ जाते थे।
हमारे स्कूल में एक टीचर 'धर्म शिक्षा' पढ़ाते थे। वो रोज़ हमें बताते थे कि गुस्सा करना पाप है। लेकिन अगर कभी कोई उनके सवाल का जवाब नहीं दे पाता था तो उसे बेतहाशा पीटते थे। मैं सोचता था कि ये किस तरह की अजीब बात हुई? वो जितनी देर पढ़ाते थे मैं डर से कांपता रहता था।
मैं वेस्ट डेल्ही के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा हूं। हमारी एक अंग्रेज़ी की टीचर थीं जो लड़कों को सज़ा के तौर पर लड़कियों के स्कार्फ़ बांध कर उनके मुंह पर लिपस्टिक लगा दिया करती थीं। साथ ही लड़कियों को सज़ा देने के लिए वो मार्कर से उनकी मूछें बना देती थीं। उस समय तो मुझे इससे फ़र्क नहीं पड़ता था लेकिन आज इस बारे में सोचकर बुरा लगता है।
मेरी मोरल साइंस की टीचर ने एक बार मुझे और मुझसे गोर बच्चे को क्लास में खड़ा किया और बोला कि ये कभी इसकी तरह नहीं बन सकता (मतलब गोरा नहीं हो सकता)। वो शायद किसी कौवे और हंस की कहानी सुना रही थीं। मुझे ठीक से कहानी नहीं याद है। लेकिन मैं इतना बेवकूफ़ था कि इस बात का मुझपर कोई असर नहीं पड़ा।
हमारे यहां एक फ़ीमेल टीचर थीं जो लड़कों को ये कहकर डराती थीं कि अगर वो कोई गलती करेंगे तो वो उनके "पोस्ट ऑफिस" खोलकर उनको सज़ा देंगी। जब भी कोई बदमाशी करता था तो वो लड़कों को उनकी पैंट पकड़कर खींचती थीं और बाकि सब हंसने लगते थे।
हमारे क्लास में एक टीचर जब भी पूरी क्लास से कोई सवाल पूछता और मैं उसका जवाब देता तो वो मुझे 'तालिबान' और 'अल जजीरा' कहकर पुकारता था। मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो दिल में बातें रखे। लेकिन इस बात का मुझे आज भी बेहद बुरा लगता है।
पांचवी क्लास में हमारी एक आर्ट-क्राफ्ट टीचर थीं जो काम न करने पर या सामान न लाने पर बच्चों को बहुत मारा करती थीं। मैं उन्हीं बच्चों में से था। एक बार जब वो शादी करके लौटीं तब भी मैं क्राफ्ट का सामान नहीं ले गया था। गुस्से में उन्होंने मेरे मुंह पर 4-5 झापड़ जड़ दिए। इसे बीच उनके हाथ की कुछ चूड़ियां टूट गईं। इसपर वो क्लास में ही रोने लगीं कि देखो तुम लोगों की वजह से क्या हुआ। मुझे आज तक ये अजीब बात याद आती है।
जब मैं पांचवी क्लास में था तो मेरी टीचर मुझे मोटा होने के लिए चिढ़ाती थीं। ये बॉडी शेमिंग थी।
मेरे टीचर हाथ की पांचों उंगलियों के बीच चॉक रखकर उसे ज़ोर से दबाते थे। मैं अब ये सोचता हूं कि तब मैंने या मेरे किसी साथी ने इसपर आपत्ति क्यों नहीं जताई।
जब हम छोटे होते हैं तब हमारा ध्यान इसपर नहीं जाता कि कुछ अध्यापकों के ऐसे बर्ताव का बच्चों पर क्या असर होता है। लोग सोचते हैं कि वक़्त के साथ चीज़ें धुंधली पड़ती जाती हैं लेकिन बचपन में हुए बुरे बर्ताव का असर हमारे दिमाग पर जीवन भर रहता है। सख्ती के नाम पर बच्चों को ये प्रताड़ित करने का ही एक तरीका है। इसपर बात होनी चाहिए। लगभग हर स्कूल की यही कहानी है। जो टीचर हाथ नहीं उठाते वो मुंह से ही ऐसी बातें कर देते हैं जिससे बच्चा अपने साथियों से ही शर्माता फिरता है।
यकीनन बी एड की पढ़ाई में इनको ये t नहीं पढ़ाया जाता कि कैसे एक बच्चे की बेईज्ज़ती करें। टीचरों को इस बात पर ध्यान देने की ज़रुरत है। पढ़ाई के इससे बेहतर तरीके भी हैं जहां वातावरण में डर नहीं बल्कि सीखने की चाह होती है।