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कैंसर पीड़ित एक बच्ची ने कोर्ट से लड़ाई लड़कर अपनी 'अनोखी' आख़िरी ख्वाहिश पूरी करवाई

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Fri, 18 Nov 2016 02:16 PM IST
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कैंसर पीड़ित बच्ची की आख़िरी ख्वाहिश
कैंसर पीड़ित बच्ची की आख़िरी ख्वाहिश - फोटो : google
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भले ही मेडिकल साइंस ने कितनी तरक्की क्यों न कर ली हो लेकिन कुछ बीमारियों का इलाज आज भी ढूंढा जा रहा है। कैंसर उनमें से एक है और ये मौत का दूसरा नाम लगता है। अगर ये शुरूआती स्टेज में पकड़ लिया जाए तो इंसान के बचने की थोड़ी उम्मीद दिखाई भी देती है लेकिन देर से पकड़ी गई इस बीमारी का कोई इलाज नज़र नहीं आता है। ये बीमारी अमीर-गरीब में फ़र्क नहीं करती और अच्छी से अच्छी मेडिकल फेसिलिटी मिलने के बावजूद लोग बच नहीं पाते।

इस बीमारी का खतरा, मात्र किसी एक उम्र के लोगों को नहीं है बल्कि ये बच्चों में भी बड़ी संख्या में देखी जा रही है। ये कहानी यूनाइटेड किंगडम की एक कैंसर पीड़ित लड़की की है। ये केवल 14 साल की थी और इस बीमारी के चलते इसकी मौत हो गई। लेकिन इसकी एक इच्छा थी जिसको पूरा करवाने के लिए ये कोर्ट तक गई और केस जीती भी।

इस बच्ची ने जज को चिट्ठी लिख कर अपनी इच्छा ज़ाहिर की। वो और अधिक समय तक जीना चाहती थी। अब इस बीमारी के चलते तो ये संभव था नहीं इसीलिए उसने काफ़ी रिसर्च के बाद क्राईअॉनिक्स के बारे में सोचा। ये एक प्रक्रिया है जिसके तहत मरे हुए लोगों को जमा दिया जाता है, इस उम्मीद के साथ की एक समय ऐसा आएगा जब मेडिकल साइंस की मदद से इन लोगों को दोबारा जीवित किया जा सकेगा।

उसने कोर्ट को लिखा कि मैं केवल 14 साल की हूं, मैं मरना नहीं चाहती लेकिन मैं जानती हूं की मैं कुछ समय बाद मर जाउंगी. मुझे लगता है कि इस तरीके को अपनाकर मैं 100 सालों बाद भी ज़िन्दा हो सकती हूं। 

इस लड़की के मां-बाप सालों पहले अलग हो चुके थे। अपने शरीर के साथ कुछ भी किये जाने का कानूनी अधिकार इस लड़की ने अपनी मां को सौंपा था जो कि अपनी बेटी के फैसले के पक्ष में थीं। लेकिन इस लड़की के पिता इस फैसले से खुश नहीं थे। उनका कहना था कि अगर हम मान लें कि 100 या 200 साल बाद वो ज़िन्दा भी हो जायेगी तो उस समय उसका कोई अपना जीवित नहीं होगा या हो सकता है कि उसे कुछ याद ही न रहे। ऐसे उसका जीवन कठिनाइयों भरा हो सकता है।

लेकिन बाद में पिता ने भी अपनी बेटी की आखरी इच्छा का सम्मान करते हुए ये बात मान ली। ये बच्ची बहुत बीमार होने के चलते कोर्ट की हेअरिंग्स में नहीं आ पाती थी और इसी दौरान उसकी मौत भी हो गई। लेकिन जज ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया और वो जीत गई।

इस बच्ची के शरीर को यूएस के एक क्राईऑनिक सेंटर में भेज दिया गया है।

ये कितना तकलीफ़देह है कि एक बच्चा जिसने अभी अच्छे से दुनिया भी नहीं देखी और अपने जीवन का एक अहम हिस्सा एक बीमारी में बिता दिया उसकी मानसिक स्थिति क्या होती होगी। वो भी एक आम बच्चे की तरह घूमना-खेलना-पढ़ना चाहता है। वो नॉर्मल दिखना चाहता है। जीएफ़/बीएफ बनाना चाहता है लेकिन खुद को रोज़ मौत के करीब देखता है। मौत के नाम से तो बड़े-बड़े घबराते हैं तो बच्चों पर इसका क्या असर पड़ता होगा।

सवाल यही है कि क्या मेडिकल साइंस सच में कभी इतनी तरक्की कर पायेगा कि लोगों को दोबारा जीवित किया जा सके या फिर ये साइंस फिक्शन फ़िल्मों तक ही सीमित रहेगा।

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