कुंडलाकार ग्रहण/ वलयाकार ग्रहण, अंग्रेजी में इसे annular eclipse कहते हैं। रविवार को दुनिया के कुछ हिस्सों में लोगों ने प्रकृति की इस अनोखी कृति को देखा। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है कि आपको क्यों नहीं दिखा। वास्तव में प्रकृति के इस कारनामे को सिर्फ़ अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों से ही देखा जा सकता था।
धरती, सूरज और चांद ये सभी सौरमंडल का हिस्सा हैं। केंद्र में स्वयं सूर्य विराजमान हैं और धरती और अन्य दूसरे ग्रह इसके चारो ओर चक्कर लगा रहे हैं। फिर एक है चंद्रमा। जो इस धरती के चारो ओर चक्कर लगा रहा है। जिसे उपग्रह कहा जाता है।
जब कभी भी ये तीनों (सूर्य, धरती और चंद्रमा) एक लाइन में आमने सामने आ जाते हैं। तब वलयाकार ग्रहण लगता है। इनकी व्यवस्था कुछ ऐसी होती है कि सबसे पीछे सूर्य, उसके बाद चंद्रमा और फिर धरती। ये हम सभी को पता है कि पृथ्वी, चंद्रमा से कई गुणा बड़ी है और सूर्य इस पृथ्वी से कई गुणा। अब जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच एक सीधी रेखा में आ जाता है तो सूर्य का कुछ हिस्सा ढक जाता है। जिससे कुछ वक़्त के लिए चंद्रमा की परछाई धरती पर बनती है और सूर्य के बाहरी हिस्से से प्रकाश निकलता रहता है। जिससे कि एक अंगूठी जैसी आकृति बनती है।
इसे ही कुंडली कहा गया है और इसी वजह से इसे 'कुंडलाकार ग्रहण' कहा जाता है। आसमान में लोगों ने देखा वो और कुछ नहीं बल्कि ग्रहण ही था।
कभी मौक़ा लगे और इंडिया में दिखे तो जरूर देखिएगा सुरक्षा कवच के साथ। वरना, आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है। ये सब सुनने में देखने में हमें बेहद ही आम लगता है। लेकिन, कभी सौरमंडल के सभी ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, नक्षत्रों को नाचती हुई स्थिति में सोचिएगा। दिमाग की घिरनी हो जाएगी कि आखिर ये सब कुछ इतना स्मूथ कैसे चलता रहता है!