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एक साल तक छात्र एक रोबोट से पढ़ते रहे और उन्हें इसका पता भी नहीं चला!

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Wed, 10 May 2017 04:46 PM IST
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ai - फोटो : digital finance institute
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हर स्टूडेंट का कोई न कोई टीचर फेवरेट हो जाता है जो उसे जिंदगी भर याद रहता है। अध्यापक छात्रों के जीवन पर बहुत असर डालते हैं और उनके व्यक्तित्व के विकास में उनकी एक बहुत बड़ी भूमिका होती है। वैसे तो आजकल लोगों को अपने अध्यापकों से ज्यादा गूगल बाबा पर विश्वास है लेकिन फिर भी गूगल वो काम नहीं कर सकता जो एक अध्यापक कर सकता है। 

आजकल पढ़ाई करने और पढ़ाने दोनों का तरीका काफी बदल गया है। बड़े स्कूलों में ब्लैक बोर्ड की जगह अब स्मार्ट क्लास ने ले ली है। कई विश्वविद्यालय छात्रों को यह सुविधा देते हैं कि वो ऑनलाइन क्लास भी ले सकते हैं। इस तरह से डिस्टेंस एजुकेशन से पढ़ाई करने वाले छात्रों की समस्या का समाधान हो जाता है। इसमें आपको असली अध्यापक ही पढ़ाते हैं बस अंतर इतना होता है कि वो सामने स्क्रीन पर होते हैं। कई टीचर यूट्यूब पर भी इस तरह की क्लासेज चलाते हैं। 

लेकिन एक आईटी प्रोफेसर ने कुछ ऐसा किया कि उनके खुद के छात्र भी इस बदलाव का पता नहीं लगा पाए। हम बात कर रहे हैं भारतीय मूल के प्रोफेसर अशोक गोयल की जो जॉर्जिया टेक नाम का एक ऑनलाइन कोर्स चलाते हैं। ये कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर हैं।
 

इनके छात्र इनसे 'आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस' पर कई सवाल कर रहे थे। अशोक और उनके साथी ग्रेजुएट टीचर्स के सामने इतने सारे सवाल आ गए थे कि सभी को जवाब देना इनकी टीम के लिए नामुमकिन था। यही वजह रही कि इस संबंध में अपने छात्रों को जवाब देने के लिए वो एक कदम आगे बढ़ गए। उन्होंने खुद ही एक आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम बना डाला। यह एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम होता है जो कई तरह के टास्क कर सकता है। यह लोगों से किसी इंसान की तरह ही बात कर सकता है। जॉर्जिया टेक के केस में इस ए आई ने एक टीचर की भूमिका निभाई।

2015 में अशोक गोयल ने जिल वाटसन नाम का एक ए आई टीचिंग असिस्टेंट बनाया। इसका नाम उन्होंने आई बी एम के सह-संस्थापक थॉमस जे वाटसन के नाम पर रखा। जिल हर उस सवाल का जवाब देने में सक्षम है जो अशोक और उनकी टीम से किए जाते हैं। इतना ही नहीं इसमें वो सवाल भी शामिल हैं जिनका जवाब खुद अशोक भी नहीं दे पाते। 
 

गोयल के साथी कभी खुद क्लास अटेंड नहीं करते थे बल्कि वो कोई भी नाम अपनाकर बस छात्रों को उनके सवालों का जवाब दिया करते थे। यही वजह थी कि छात्रों ने कभी असली टीचर्स को देखा ही नहीं था। ए आयी जिल वाटसन भी इसमें पढ़ाने लगा और बच्चों को इस बात का पता ही नहीं चला कि उनके सवालों के जवाब कोई इंसान नहीं बल्कि एक कंप्यूटर दे रहा है। आखिरी सेमेस्टर में केवल कुछ छात्र ही समझ पाए कि असल में वो एक कंप्यूटर प्रोग्राम से बात कर रहे हैं। यह कुछ-कुछ मार्वल की फिल्म के जारविस जैसा है जो आयरन मैन के हर काम में उसकी मदद करता था।

गोयल के एक छात्र क्रिस्टोफर कासियन कहते हैं कि इस बात को गेस करने में बड़ा मजा आता है कि किस सवाल का जवाब इंसान दे रहे हैं और किसका कंप्यूटर। इस सेमेस्टर में गोयल के छात्रों ने एक पोल भी शुरू कर दिया जिसकी मदद से वो यह पता लगाने चाहते हैं कि कौन सा टीए (टीचिंग एड) इंसान है और कौन सा कंप्यूटर। बहुत से छात्रों ने सही जवाब दिया। लेकिन गोयल सेमेस्टर के अंत में ही इस बात का खुलासा करेंगे कि कौन सा टीए असल में जिल वाटसन है। 
 

वो बताते हैं जिल को बनाना किसी बच्चे को बड़ा करने जैसा था। शुरू-शुरू में वो बातें समझ नहीं पाता था लेकिन फिर बाद में धीरे-धीरे वो किसी आम टीए की तरह बर्ताव करने लगा। जिल का लेटेस्ट वर्जन और ज्यादा बेहतरीन है। गोयल अपने इस एआई को भारत जैसे देशों में भी फैलाना चाहते हैं। वो कहते हैं कि इससे बच्चों को पढ़ाई करने में बहुत आसानी होगी। वो यह नहीं मानते कि यह कंप्यूटर सिस्टम कभी अध्यापकों की जगह ले पाएंगे, फिलहाल तो बिल्कुल नहीं। 

यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म जैसा लगता है। यह किसी रोबोट को इंसानी दिमाग देने जैसा है। क्या रजनीकांत की फिल्म रोबोट कभी हकीकत का रूप भी ले सकती है? विज्ञान की तरक्की से तो कुछ ऐसा ही लगता है। 
 

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