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बच्चा बाज़ी: औरतें बच्चे पैदा करने के लिए हैं और लड़के संतुष्टि देने के लिए

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Wed, 21 Dec 2016 01:00 PM IST
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बच्चा बाज़ी
बच्चा बाज़ी - फोटो : google
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सेक्सुअल अब्यूज़ शब्द सुनते ही आपके दिमाग में एक औरत या लड़की की छवि उभरती होगी, लड़की जो पीड़ित है। जिसके साथ उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ ऐसा किया गया है जो कि कानूनन और नैतिक रूप से अपराध है। ये बने बनाए स्टीरियोटाइप्स भी हैं और महिलाओं और बच्चियां हमेशा इसकी शिकार भी बनती हैं। लेकिन अफ़गानिस्तान एक अलग ही कहानी बयान कर रहा है।

अफ़गानिस्तान में एक सालों पुराना ट्रेडिशन फॉलो किया जाता है जिसमें कम उम्र के लड़कों के साथ जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाए जाते हैं तथा उन्हें अन्य कई माध्यमों से अब्यूज़ किया जाता है। इसे वहां 'बच्चा बाज़ी' कहते हैं। 

कबीलों के सरदार, राजनीतिग्य, कमांडर आदि यानी जो समाज में बेहतर स्थिति में हैं, वो अपने साथ इन बच्चों को रखते हैं। ये उनके लिए शक्ति दिखाने का एक तरीका है। इससे समाज में उनकी पहचान बनती है। इन बच्चों को कई बार महिलाओं के वेश में रहना पड़ता है और इनपर वो सारे ज़ुल्म ढाए जाते हैं जिनका सामना आमतौर पर महिलायें करती हैं। 

साथ ही इनको प्राइवेट पार्टियों और अन्य समारोहों में डांसर के रूप में भी रखा जाता है। ये होमोसेक्शुएलिटी का प्रतीक नहीं है बल्कि ये एक तरह का दिखावा है जिसमें छोटे लड़कों का शोषण किया जाता है। साथ ही ये इस्लाम में पूरी तरह से हराम है।

"औरतें बच्चा पैदा करने के लिए हैं और लड़के मज़ा देने के लिए" ये कहावत आपको अफ़गानिस्तान के बहुत से हिस्सों में सुनने को मिल जायेगी। हैरानी की बात ये है कि इस प्राचीन पद्धति को तालिबानी शासन के दौरान पूरी तरह से बंद कर दिया गया था लेकिन पिछले कुछ सालों में लोग इसे फिर से दुहराने लगे हैं।

अब सोचने वाली बात ये है कि ये ट्रेडिशन अफ़गानिस्तान में आखिर कैसे शुरू हुआ? कुछ लोगों का मानना है कि जेंडर को लेकर कड़े नियमों और समाज में औरतों और आदमियों के मिलने-जुलने पर रोक और कड़े नियमों की वजह से ही ये रिवाज शुरू हुआ होगा। इसके अलावा और भी कई अन्य कारण है जैसे कानून व्यवस्था की कमी, भ्रष्टाचार आदि।

अफगानिस्तानी कानून बलात्कार आदि पर सख्त है लेकिन 'बच्चा बाज़ी' के लिए यहां कोई ख़ास कानून नहीं है। ये पूरी तरह से मानवाधिकार का उल्लंघन है। अफ़गानिस्तान के कानून में इस समस्या से निबटने के लिए कोई ख़ास कानून मौजूद नहीं है। कई बार लोग घूस आदि देकर भी सज़ा से बाख निकलते हैं। 

इन बच्चों की उम्र 10-18 साल होती है और कई बार इनका अपहरण किया जाता है तो कई बार गरीबी की वजह से इनके मां-बाप इन्हें बेच देते हैं। इसका इन बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ता है जो कि ज़ाहिर है। कई बार वो लंबे ट्रॉमा से गुज़रते हैं जिनके और कई घातक परिणाम होते हैं।

इसके माध्यम से तालिबान एक बार फिर से अफ़गानिस्तान पर अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। यहां तक कि अफ़गान सिपाही भी इस तरह के रिवाज़ों में लिप्त हैं। अमेरिका ने इस समस्या के समाधान के रूप में काफ़ी पैसे मदद के तौर पर अफ़गानिस्तान को दिए हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या इस समस्या को पैसों से सुलझाया जा सकता है?

जो बच्चे इन सबसे होकर गुज़रता कई बार उनपर इतना बुरा असर पड़ता है कि वो चाहकर भी इससे निकल नहीं पाते और बड़े होकर वो ख़ुद छोटे लड़कों के साथ यही सुलूक करते हैं। कुलमिलाकर इस समस्या से शिक्षा से ही निबटा जा सकता है जो कि अफ़गानिस्तान के लिए निकट भविष्य में संभव नहीं लग रहा।

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