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बड़े-बुज़ुर्ग कहते हैं कि शादी वो लड्डू है, जो खाए वो पछताए, और जो न खाए वो भी पछताए। वैसे जो वक्त पर नहीं खा पाता वो टेंशन में बावला-सा फिरा रहता है। साम-दाम-दंड-भेद सब करके उसकी एक ही मंज़िल होती है- शादी। ऐसे, वैसे, चाहे हो जैसे, मगर शादी तो करनी है।
राजस्थान का जोधपुर शहर कई चीज़ों के लिए मशहूर है। इस शहर का एक उत्सव भी काफी चर्चित है – ‘धींगा गवर’
इस उत्सव में लड़कियां कुंवारे लड़कों को दौड़ा-दौड़ाकर डंडा मारती हैं। माना जाता है कि डंडा अगर किसी लड़के पर लगता है तो उसका ब्याह होना पक्का समझा जाता है। इस उत्सव को बेंतमार गणगौर के रूप में भी जाना जाता है। इस त्यौहर को शिव-पार्वती का भी प्रतीक माना जाता है।
माना जाता है कि जिस पर पड़ी लाठी, उसकी शादी अगले एक साल में हो जाती है। इस उत्सव में मर्दों को भी मज़ा आता है। कई शहरों से कुंवारे दूर-दूर से लाठियों से पिटने के लिए आते हैं। कमाल का है यह रिवाज़। मथुरा-वृंदावन की लठमार होली के बार में तो खूब सुना है, मगर इस ‘लठ’ की बात ही कुछ और है। अब शादी के बाद बीवी से पिटना ही है, तो पहले पिटने में क्या हर्ज़ है।
बेंत (लाठी) पड़ी तो शादी पक्की
मारवाड़ में 100 सालों से प्रथा है कि धींगा गवर के दर्शन मर्द नहीं करते। तब माना जाता था कि जो भी धींगा गवर का दर्शन करेगा, उसकी मौत हो जाएगी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थीं। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलतीं। टाइम के साथ-साथ मान्यताएं भी बदली कि जिस युवा पर बेंत (डंडा) की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाएगा।
सोलह का सलोना संगम
इस त्यौंहार के साथ सोलह अंक का संयोग जुड़ा है। धींगा गवर मेला गवर माता की पूजा के सोलहवें दिन मनाया जाता है। लड़कियां सोलह दिन तक उपवास रखती हैं, फिर सोलह श्रृंगार कर धींगा गवर माता के दर्शन करने निकलती हैं। इस उत्सव में फिरंगी भी शामिल होने लगे हैं।
कुछ भी कहो, इस त्यौहार में लेडीज़ लोग का SWAG ही अलग होता है...
एकदम देसी डीवा इश्टाइल!!