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देश के सबसे दुलारे नेता अटल बिहारी वाजपेयी पंचतत्व में विलीन हो गए। भारतीय इतिहास में कुछ एक नेताओं को ही इस तरह का सम्मन अपनी अंतिम यात्रा पर मिला है। अब अटल एक अनंत यात्रा पर निकल चुके हैं। अब उनके आखिरी सफर के साथ उन खबरों को भी दफन कर देना चाहिए जिन्हें अंत में झूठा माना गया। उस दौर में सोशल मीडिया तो नहीं था लेकिन फिर भी यह झूठी खबरें अटल बिहारी वाजपेयी को परेशान करती रहीं थी। हालांकि आखिरी समय तक इन पर काबू पा लिया गया था लेकिन आज भी उनकी चर्चा हो जाती है। तो आपको उन झूठी वायरल खबरों और उसकी सच्चाई के बारे में बताते हैं।
जब 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तो इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता थे। इस युद्ध पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने सरेंडर किया था। युद्ध के बाद संसद में बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था।
कई अखबारों में इस शीर्षक के साथ लेख छपे थे कि अटल जी ने इंदिरा जी को दुर्गा कहा था। आज भी उन अखबारों की कटिंग सोशल मीडिया पर वायरल होती है लेकिन एक इंटरव्यू के दौरान खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वीकार किया था कि मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी ने पुपुल जयकर (इंदिरा गांधी पर किताब लिखने वाली लेखक) को भी इस बयान के बारे में बताया था कि मैंने ऐसा कहा ही नहीं। पुपुल जयकर ने तमाम किताबों में इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं मिला।
साल 2002 में जब गोधरा कांड हुआ था तो इसके आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगे थे। ऐसा कहा गया कि मुख्यमंत्री ने दंगों को भड़कने दिया था। दंगों की आंच केंद्र में मौजूद तत्कालीन अटल सरकार पर भी आई थी। ऐसा कहा जाता है कि अटल जी ने इसके बाद नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांग लिया था। लेकिन आडवाणी के कहने पर इस्तीफे को रोक दिया गया था।
दरअसल गुजरात दंगों के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस हुई थी। जहां अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी मौजूद थे। यहां अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि मैं मुख्यमंत्री के लिए संदेश देना चाहता हूं कि वह राजधर्म का पालन करें। ये वाक्य काफी सार्थक है और मैं इसी के पालन की कोशिश कर रहा हूं। उन्होंने कहा था कि शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं सकता है। न तो जन्म के आधार पर, न ही धर्म के आधार पर और न ही जाति के आधार पर। मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई ऐसा ही कर रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कभी भी नरेंद्र मोदी से इस्तीफा नहीं मांगा था।