तो दोस्तों महाराष्ट्र सरकार की मानें तो 1.4 करोड़ का घर सस्ता माना जाएगा। अब सोच लीजिये कि महंगा घर किसे कहते होंगे। सरकार के स्टैण्डर्ड के हिसाब से 645 स्क्वायर फीट का एक घर सस्ता और टिकाऊ माना जाएगा। ये वो कीमत है जिसके बारे में बहुत से लोग बस सपने में सोच पाते हैं। या तो फिर बात इतनी सी है कि मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में घर होने के बारे में इंसान सोचे भी न। एक तरफ सरकार आने वाले कुछ सालों में हर देश वासी को उसका अपना घर देने की बात करती है तो दूसरी तरफ इस तरह की कीमत को स्टैण्डर्ड कीमत के रूप में रखती है।
विशेषज्ञों की मानें तो सस्ते घरों के लिए ये अमाउंट बिल्कुल भी ठीक नहीं है। हाउसिंग एक्टिविस्ट चंद्रशेखर प्रभु का कहना है कि घर का आकार ये तय नहीं कर सकता कि वो सस्ता है या नहीं बल्कि लोगों की इनकम ये तय करती है कि उनके लिए सस्ता घर क्या होगा। इस वजह से ये तय करने का पैमाना लोगों की सैलरी होनी चाहिए न कि घर का साइज।
उनका कहना था कि एक अफोर्डेबल घर वो होता है जो एक व्यक्ति की पांच साल की इनकम से आ जाए। वहीं दूसरी तरफ निवारा हक सुरक्षा समिति के संस्थापक पी की दास का कहना है कि सरकार जब तक जमीन की कीमतें निर्धारित नहीं करेंगी तब तक सस्ते घरों का कोई मतलब नहीं है। सरकार का एरिया के हिसाब से स्टैण्डर्ड निर्धारित किया जाना बिल्कुल गलत है। इन्होने बताया कि पिछले बजट में मुंबई में अफोर्डेबल घर का एरिया 300 स्क्वायर मीटर तय किया गया था। सेंट्रल मुंबई में इतने बड़े घर की कीमत 1.2 करोड़ से 1.6 करोड़ के बीच है।
ये घर सिर्फ वही व्यक्ति खरीद सकता है जिसकी हर महीने की तनख्वाह 3 लाख हो। किसी सरकारी संस्थान में सबसे ऊंचे पद पर बैठे किसी अफसर की भी इतनी तनख्वाह नहीं है।
अब सोच लीजिए, अगर आपको ऐसा लगता है कि सरकारी नौकरी वालों के लिए जिंदगी आसान है तो भूल जाइए। अफसर भी बन जाएंगे तो मुंबई में घर नहीं खरीद पाएंगे। तो फिर आपको क्या लगता है कौन है जो ये घर खरीद सकता है? मुंबई के इन स्टैण्डर्ड की मानें तो वहां सिर्फ बड़े स्टार, बिजनेस मैन, या दो नंबर का काम करने वाले ही घर ले सकते हैं। तो फिर इनमें से किस क्षेत्र में आपको अपना करियर बनाना है ये सोच लीजिएगा।
सस्ते घर लोगों को तभी मिल सकेंगे जब जमीन की कीमत बिल्कुल न हो। ये काम झुग्गी झोपड़ी कालोनियों के सिलसिले में पहले ही किया जा चुका है और फिर हो सकता है। सरकार प्राइवेट डेवेलपर्स से इस बात की उम्मीद करना छोड़ दें कि वो सस्ते घर बना सकेंगे।
पिछले यूनियन बजट में फाइनेंस मिनिस्टर ने ये कहा था कि जो बिल्डर सस्ते घर बनाएंगे उनको टैक्स में छूट मिलेगी। महाराष्ट्र सरकार ने 2022 तक 11 लाख सस्ते घर बनाने की बात कही थी लेकिन गलती से किसी ऑफिस जाने वाले व्यक्ति से इन सस्ते घरों की बात मत कर दीजिएगा। बॉस का सारा फ्रस्टेशन आप पर ही उतार देगा ये बात तय है।
तो अब ऐसा लगता है कि सस्ते घरों का सपना देखना तो लोगों को छोड़ ही देना चाहिए। क्योंकि इन घरों का सपना देखना भी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। लगता है कि सरकार ने जब चुनाव से पहले अपनी रैलियों में घर देने का वादा किया था तो उनके दर्शक कोई और थे और उनकी टारगेट ऑडियंस कोई और। जो भी हो अब इसे पढ़ने के बाद एक ही बात भगवान से मनाइएगा कि गलती से भी आपका ट्रांसफर सपनों की नगरी मुंबई में न हो जाए।
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