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बच्चों और उनके अभिभावकों के लिए स्वीडन से अच्छा देश कोई हो ही नहीं सकता है। स्वीडन अपने कानून और खूबसूरती के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। कर्मचारियों के लिए बनाए गए यहां के कानून दूसरे देशों में काम करने वाले लोगों को काफी लुभाते हैं।
यहां बच्चे के पैदा होने से पहले और बाद तक अभिभावकों को कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं। अगर आप यहां केवल जॉब करते हैं तो भी आपको वहीं सारी सुविधाएं मिलती हैं जो यहां के नागरिकों को मिलती हैं। स्वीडन में आप अपने बच्चे का नाम 'Ikea' या 'Elvis' नहीं रख सकते हैं। यहां स्कूल अटेंड करने के लिए हाई-स्कूल के छात्रों को 187 डॉलर प्रति माह का भुगतान करना पड़ता है।
बच्चे के जन्म के बाद यहां अभिभावकों को 480 दिनों तक पेड लीव दी जाती है। बच्चे के पैदा होने से पहले मां को प्रीनैटल केयर फ्री में उपलब्ध कराई जाती है और उन्हें डिलीवरी के लिए तैयार किया जाता है। अधिकतर स्वीडिश अस्पतालों में होटल भी होते हैं, जहां नई मांएं और उनके पार्टनर्स दो से तीन दिन तक रुक सकते हैं ताकि नवजात और मां की देखभाल नर्स सही से कर सकें।
स्वीडन में बच्चा पैदा होने के बाद या बच्चा गोद लेने के बाद 480 दिनों की पैरेंटल लीव (मां-बाप दोनों को मिलाकर) लेने का अधिकार होता है। यह संख्या अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी बहुत ऊपर है। बच्चे के जन्म से करीब 60 दिन पहले मां को पैरेंटल बेनेफिट के साथ लीव लेने का अधिकार है, हालांकि ये 480 दिनों की कुल पैरेंटल लीव से ही दी जाती है।
स्वीडन में 1979 में बच्चों को मारने-पीटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अमेरिकन टेक्सटबुक स्वीडन में ज्यादा सस्ते मिलते हैं। साथ ही स्वीडन में 89 फीसदी लोग अंग्रेजी बोलते हैं। नार्वे और स्वीडन में बच्चों से विज्ञापन कराना गैरकानूनी है। 2009 तक स्वीडीश को ऑफिशियल लैंग्वेज के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता था। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम 14 आईलैंड पर बनी हुई है।
दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अवार्ड 'नोबेल' का जन्म स्वीडन में ही हुआ। 1901 से शुरू होने वाले इस पुरस्कार की प्रतिष्ठा आज भी बरकरार है। लोकपाल की अवधारणा भी स्वीडन ने ही दी है। स्वीडन की जनसंख्या का कुल 10 प्रतिशत शरणार्थी है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यहां भारी मात्रा में शरणार्थी जर्मनी से आये, खास बात यह कि बेरोजगारी दर कम है और स्वीडन की छवि एक 'वेलफेयर स्टेट' की है।
स्वीडन में दुनिया के पहले इलेक्ट्रिफाइड रोड की सेवा शुरू की गई है। इस रोड पर बीचों-बीच दो रेल लाइन बिछाई गईं हैं, जिनके सहारे कार या अन्य किसी इलेक्ट्रिक वाहन को ड्राइव के दौरान ही चार्ज किया जा सकता है। ये प्रोजेक्ट दिखाता है कि दुनिया किस गंभीरता से इलेक्ट्रिक मोबिलीटी की तरफ आगे बढ़ रही है। हालांकि भारत में इस तरह का कोई बड़ा प्रोजेक्ट फिलहाल देखने को नहीं मिलता।