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जिनके बच्चे सुबह-सुबह स्कूल जाते हैं, उन्हें इसका मतलब पता होगा। अगर आपका घर आउटर एरिया में है या फिर किसी ऐसी जगह पर है जहां से आने जाने के साधन में थोड़ी परेशानी है तो बच्चों को स्कूल जाने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। स्कूल के बस वाले एक दो बच्चों के लिए रास्ता नहीं बदलते, और बस के पीछे लिखवाते हैं पढ़ेगा भारत तभी तो बढ़ेगा भारत। स्थिति ऐसी है कि बच्चों के एडमिशन के साथ साथ इंसान उसी इलाके के आस-पास घर भी देखता है, ताकि समस्या न हो।
जापान की सरकार का अप्रोच, हमारी बतोली सरकारों की अपेक्षा थोड़ा अलग है, वहां नारा नहीं दिया जाता है कि 'पढ़ेगा जापान तभी तो बढ़ेगा जापान... वगैरह वगैरह''। वहां ऐसे कामों को सीरियसली लिया जाता है। जापान के उत्तर के होकाइदो द्वीप पर सिर्फ एक बच्ची को लेने के पूरी की पूरी ट्रेन आती है।
दरअसल कुछ समय पहले वहां की सरकार के रेलवे विभाग ने तय किया कि शिराताकी गांव के स्टेशन को बंद किया जाएगा। क्योंकि वहां से ज्यादा सवारियां नहीं मिलती हैं। लेकिन तभी पता चला कि एक बच्ची से रोजाना स्कूल आती जाती है। अधिकारियों ने पड़ताल की तो पता चला कि वहां से आने जाने का और कोई महफूज साधन नहीं है। ऐसे में सरकार ने तय किया कि स्टेशन को चालू रखा जाए। अब रोजाना दिन में दो बार ट्रेन आती जाती है। एक बार बच्ची को स्कूल के लिए लेने और दूसरी बार, बच्ची को वहां छोड़ने।
और तो और ट्रेन के टाइम को बच्ची के स्कूल के समय के हिसाब से एडजस्ट कर लिया गया है। पूरी ट्रेन में बच्ची के अलावा कोई दूसरी सवारी नहीं होती। रेलवे विभाग ने तय किया है कि जब तक बच्ची हाईस्कूल पास नहीं करती ट्रेन चलती रहेगी। सच में दिल करता है कि जापान की सरकार और उसके रेलवे विभाग की पीठ इस काम के लिए थपथपाई जाए। आपको भी लगता है तो शेयर जरूर करें।