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नौवीं पास किसान ने वह किया जो वैज्ञानिक भी नहीं कर पाते!

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Fri, 12 May 2017 06:27 PM IST
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jai prakash singh
jai prakash singh - फोटो : the indian express
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जब कभी लोगों को उनके जीवन में किसी चीज की कमी खलती है तो वो कहते हैं कि काश इस चीज का आविष्कार हो जाए। आखिर आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। लेकिन हर कोई वैज्ञानिक तो होता नहीं है। ऐसे में सब यही कहते हैं कि वैज्ञानिकों को अब इस मुद्दे पर भी काम करना चाहिए। कुलमिलाकर आमतौर पर लोग बस बैठे रहना चाहते हैं और यह आशा करते हैं कि कोई उनकी जरूरतों को पूरा कर देगा। लेकिन बनारस के एक व्यक्ति ने तय कर लिया कि वह अपने जीवन में अपनी जरूरतों को खुद पूरा करेंगे।

जय प्रकाश सिंह दसवीं तक भी नहीं पढ़े हैं। वो बनारस के राजातालाब इलाके के तदिया गांव में रहते हैं। वह पिछले 20 सालों से लगातार रिसर्च कर रहे हैं। जी हां भले ही उन्होंने विज्ञान में कोई डिग्री हासिल नहीं की हो और उन्हें बॉटनी की ए बी सी डी भी न आती हो लेकिन उन्होंने इतने सालों में दाल-चावल की कई नई प्रजातियां विकसित कर ली हैं। जय प्रकाश एक मामूली किसान हैं लेकिन उन्होंने किसी वैज्ञानिक से कम मेहनत वाला काम नहीं किया।
 

जय प्रकाश सिंह ने एक जीन बैंक बनाया है। आप इसे बीजों के एक बैंक के रूप में समझ सकते हैं। इन्हें क्रॉस-ब्रीडिंग की प्रक्रिया से तैयार किया जाता है। सिंह ने अब तक धान की 460 किस्में, गेहूं की 120 किस्में और करीब 50 तरह की अरहर की दाल पैदा की हैं। इसके साथ ही इन्होंने 4 तरह के सरसों के बीज भी बनाए हैं। इनमें से कईयों को राज्य सरकार ने बाजार में भी उतारा है। सिंह को इस रिसर्च में देश के दो पूर्व राष्ट्रपति ने मदद की। इसके अलावा उन्हें कई विश्वविद्यालयों से भी मदद मिली। 

सिंह को बीजों की प्रजातियां बनाने और उनके विकास में महारत हासिल है। इससे कई किसानों को फायदा पहुंचा है। इसके अलावा इनके काम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली है। इस तरह के हाईब्रिड बीजों की फसल को कम से कम कीटनाशकों की आवश्यकता पड़ती है। जाहिर है ये सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं। आमतौर पर देश के किसान बीजों को बचाकर रख लेते हैं और फिर उन्हीं को 2-3 सालों तक फसल उगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। सिंह बताते हैं कि वो गेहूं, चावल और दालों की अलग-अलग किस्में बिना किसी लैब के पैदा कर रहे हैं। वो अब अपने 'बच्चों' को बचाना चाहते हैं। वो अपने बीजों को अपने बच्चों की तरह देखते हैं। 
 

ये एक जीन बैंक विकसित कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में कुछ अछे बीजों को एक घड़े में संरक्षित करके रख लिया जाता है। इनको गुलाबी रंग दिया जाता है और इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इन तक नमी न पहुंचे जिससे ये अधिक समय तक सुरक्षित रह सकें। हर घड़े पर ब्रीड का नाम और नंबर लिखा जाता है।

सिंह का कहना है कि वो नहीं चाहते कि उनकी मेहनत बेकार जाए। वह चाहते हैं कि सरकार उनको जमीन दे जिसपर वो अपना एक बीज बैंक बना सकें। वह कहते हैं कि मैं काफी समय से इसका इंतजार कर रहा हूं लेकिन अभी तक मुझे ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। यही वजह है कि सिंह ने अपने ही घर के एक हिस्से को विकसित कर लिया है जहां बीजों को सुरक्षित रखा जा सके। 

जय प्रकाश के अनुसार सरकार विदेश से न जाने कितने वैज्ञानिकों को बुलाती है जिससे खाद्य पदार्थों की पैदावार में बढ़ोतरी हो सके लेकिन वही काम मैं कर रहा हूं और मुझे किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। इनका कहना बिल्कुल सही है। प्रशासन के इसी रवैये की वजह से भारतीय पढ़ाई करके बस जल्द से जल्द नौकरी करना चाहते हैं। कोई अपना समय क्यों बर्बाद करेगा? अगर सरकार की तरफ से किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी तो कोई अपना पैसा और समय लगाकर कोई शोध नहीं करेगा। उम्मीद है कि जय प्रकाश सिंह की सम्स्य का समाधान जल्द ही हो जाएगा। लेकिन उनके इस काम की सराहना जरूर की जानी चाहिए!
 

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