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जब घर में धूप आने और हवा आने के बदले टैक्स देना पड़ता था!

Shivendu Shekhar/firkee.in Updated Mon, 30 Jan 2017 01:13 PM IST
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टैक्स
टैक्स - फोटो : source
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टैक्स वो बला जिससे आज की तारीख में हर कोई परेशान है। और ठीक इसी वक़्त इसकी जरूरत भी है। जरूरत क्यों? जरूरत इसलिए क्योंकि हमारे टैक्स के जमा पैसों से ही सरकारी खजाना भरता है। जिन पैसों से फिर देश के विकास का पूरा रोडमेप तैयार होता है।

अलग-अलग जरूरतों के हिसाब से बजट में हर एक सरकारी डिपार्टमेंट के हिस्से कुछ पैसे दिए जाते हैं। जिसे जरूरत से खर्च करना पड़ता है। और इसके हिसाब से विकास के पैमाने तय होते हैं। अभी जीएसटी का मामल भी अटका हुआ है। 2017 के अप्रैल महीने से इसे लागू होना है। जैसा कि सरकार की तरफ से बताया गया है। 

अभी हम आप जब एक स्टेट से दूसरे स्टेट के तरफ जाते हैं। तब हमें टोल टैक्स देना होता है। होटल में सर्विस टैक्स, वैट, सर्विस चार्ज देना होता है। कमाई पर इनकम टैक्स। सेल टैक्स और भी कई तरह के टैक्स। कुछ डायरेक्ट और कुछ इनडायरेक्ट।  

अब सोचिए आपको घर में बैठ के धूप सेंकने का टैक्स देना पड़ जाए। घर के अंदर हवा आने के लिए भी टैक्स। क्या? ऐसा नहीं हो सकता? गलत, ऐसा हो चुका है। और करीब 150 सालों तक ऐसा ही एक टैक्स लिया गया।   

 

आगे सुनिए :

ऐसा इंग्लैंड में हुआ करता था। और ये सच में बेहद ही अजीब था। इसे कहा गया था विंडो टैक्स। विंडो टैक्स। विंडो टैक्स को अगर एक लाईन में समझना चाहें तो एक बात है। विंडो टैक्स आपके घर में कितनी खिड़कियां हैं इसके हिसाब से लगाया जाता था।  

थोड़ा और सिंपल करके समझते हैं। अगर आपके घर में 10 खिड़की है तो आपको तकरीबन 2000 रूपये का टैक्स देना होता। और अगर 20 खिड़कियां हैं तो उसके लिए करीब 4000 रुपए का टैक्स। 

ये सब लागू हुआ था। जब किंग विलियम-3 वहां के मोनार्क थे। 1696 के आस-पास। और 1851 इसे खत्म किया गया। जब वहां के सोशल एक्टिविस्ट्स ने इसका विरोध करना शुरू किया। डॉक्टरों ने भी अपनी रिपोर्ट दी कि इससे देश में बीमार लोगों की तादाद बढ़ जाएगी। क्योंकि टैक्स के डर से लोगों ने घरों में खिड़कियां बनानी बंद कर दी थी। 

लोगों का तर्क था कि ये टैक्स कुछ ऐसा है कि हमें घर में धूप आने के बदले टैक्स देना है। घर में हवा आने के बदले टैक्स। और इसका खूब विरोध हुआ। जिसके बाद 1851 में इस एक्ट को खत्म किया गया। और इसके बदले एक हाउस टैक्स लाया गया।  

इसीलिए कहता हूं, जरूरी नहीं सरकार ने जो फैसला ले लिया हो, उसको ऐसे ही आंख मूंद के मान लें। उसके बारे में पढ़ें, सोचें, विचारें। और जरूरत पड़े तो सवाल भी उठाएं।  


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