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अर्थव्यवस्था ने कर दी हद, रावण का छोटा हो गया कद 

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: Ayush Jha Updated Fri, 04 Oct 2019 07:02 AM IST
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प्रतिकात्मक तस्वीर
प्रतिकात्मक तस्वीर - फोटो : social media
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देखो न रुपया कितना इस समय कितना ऊपर उठ गया है कि गरीबों को नजर नहीं आ रहा। देश की जीडीपी भी आसमान छू रही है। देश में जो भी 70-80 करोड़ गरीब बचे हैं, वह मात्र जीडीपी न देख पाने की वजह से बचे हैं। लोन, तेल लकड़ी में उलझी रहने वाली आम जनता को जीडीपी दिखाई जाएगी, फिर सब लाइन पर आ जाएगा। वैसे जोक सपाट एक तरफ अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार से ‘रावण' भी बच नहीं पाया है।

इस बार पुतलों के बाजार में ‘रावण' का कद और छोटा हो गया है। राजधानी के पश्चिम दिल्ली के तातारपुर गांव के पुतला बनाने वाले कारीगरों को दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। इन कारीगरों का कहना है, ‘‘अर्थव्यवस्था सुस्त है, साथ ही पुतला बनाने वाली सामग्रियों के दाम काफी चढ़ चुके हैं। ऐसे में हमें पुतलों का आकार काफी छोटा करना पड़ा है।
तातारपुर पुतलों का प्रमुख बाजार है, लेकिन इस साल यहां कुछ ही स्थानों पर पुतले बनाए जा रहे हैं. यहां के कारीगरों को सुभाष नगर के बेरी वाला बाग में जगह दी गई है। इसके अलावा राजा गार्डन फ्लाईओवर से लेकर सुभाष नगर, राजौरी गार्डन और रघुबीर नगर इलाकों में कारीगर दिन रात पुतलों की साज-सज्जा में जुटे हैं।

दशहरा से करीब 45 दिन पहले आसपास के राज्यों के कारीगर पुतला बनाने वाले बड़े ‘दुकानदारों' के पास आ जाते हैं। पुतला बनाने वालों में दिल्ली के अलावा हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक के कारीगर शामिल हैं।
पिछले 25 साल से पुतला बना रहे महेंद्र कहते हैं, ‘‘अर्थव्यवस्था में सुस्ती है. अन्य क्षेत्रों की तरह इसका असर पुतलों के कारोबार पर भी पड़ा है। इस वजह से हमें पुतलों का आकार कम करना पड़ा है क्योंकि पुतला जितना बड़ा होगा, लागत भी उतनी ही अधिक होगी और दाम भी उसी हिसाब से बढ़ जाएगा।'' 
महेंद्र ने कहा, ‘‘पुतला बनाने की सामग्री भी काफी महंगी हो चुकी है। 20 बांस की कौड़ी का दाम 1,200-1,300 रुपये हो गया है जो पिछले साल तक 1,000 रुपये था. पुतला बांधने में काम आने वाली तार भी 50 रुपये किलो के बजाय 150 रुपये में मिल रही है। कागज का दाम तो लगभग दोगुना हो गया है।
तीस साल से अधिक समय से पुतला बनाने के कारोबार से जुड़े सुभाष ने कहा, ‘‘कभी तातारपुर का रावण विदेश भी भेजा जाता था। यहां से रावण के पुतले विशेष रूप से आस्ट्रेलिया तक भेजे जाते थे, लेकिन अब विदेशों से मांग नहीं आती है। 
हरियाणा के करनाल से यहां आकर पुतला बनाने वाले संजय ने कहा कि कभी तातारपुर और आसपास के इलाकों में 60-70 फुट तक के भी पुतले बनाए जाते थे, लेकिन अब दाम चढ़ने और जगह की कमी की वजह से आयोजक छोटे पुतलों की मांग करने लगे हैं।
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