वो घर जहां नाकामयाबी भरी है, संजोकर रखी हैं दुनियाभर की नाकाम चीजें
टीम फिरकी, नई दिल्ली
Published by:
Pankhuri Singh
Updated Tue, 19 Mar 2019 05:15 PM IST
कहते हैं कि कामयाबी की बुनियाद नाकामी से रखी जाती है। इस दुनिया को कामबायी की आदत है। इस कदर कि हर नाकामी को भुला दिया जाता है। जबकि लोग नाकामियों से ही सीख कर कामयाब होते आए हैं। एेसे में, स्वीडन में एक खास जगह है, जिसे नाकामी का घर कहा जाता है।
स्वीडन में एक खास म्यूजियम खोला गया है, म्यूजियम ऑफ फेल्योर, यानी नाकामी का घर। ये विचित्र म्यूजियम स्वीडन के हेलसिंगबोर्ग शहर में है। इस म्यूजियम का रख-रखाव करने वाले सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि, 'इस म्यूजियम का हिस्सा बनने की पहली शर्त है कि कोई भी चीज एक आविष्कार होनी चाहिए। दूसरी शर्त है कि उसे नाकाम होना चाहिए।'
सैमुअल वेस्ट कहते हैं कि, 'नाकामी से मतलब यह है कि किसी उत्पाद के वैसे नतीजे नहीं आए, जिस तरह की उम्मीद थी। 'इस म्यूजियम का हिस्सा बनने की तीसरी शर्त ये है कि ये दिलचस्प होना चाहिए। कोई उत्पाद दिलचस्प है या नहीं इसे सैमुअल ही तय करेंगे।' अटारी ई.टी. नाम के वीडियो गेम को वो इसकी मिसाल देते हैं। सैमुअल के अनुसार इस वीडियो गेम को दुनिया का सबसे वाहियात वीडियो गेम कहा जाता है। लोग इससे नफरत करते थे। वजह यह कि इसका अहम किरदार ई.टी. जब चलता था तो वो अक्सर गड्ढों में ऐसा फंस जाता था कि निकल ही नहीं पाता था।
सैमुअल के म्यूजियम में रखी एक और नाकाम चीज है सोनी बीटामैक्स। ये टेप रिकॉर्ड प्लेयर जो कभी चला ही नहीं। कहा जाता है कि सोनी ने पोर्न उद्योग को बीटामैक्स इस्तेमाल करने से रोका था। नतीजा ये कि सोनी का बीटामैक्स बुरी तरह नाकाम रहा और इसकी जगह वीएचएस ने बाजी मार ली।
म्यूजियम में ही बिक नाम का पेन भी है, जिसे खास महिलाओं के लिए बनाया गया था। म्यूजियम में द रेजुवेनीक नाम का एक प्रोडक्ट है। इसे पहन कर खुद को बिजली का झटका देना होता था, ताकि आप हरदम जवां बने रहें। अब भला इसे कौन खरीदता! फिर यहां पर एक स्नोबोर्ड है, जिसका नाम द मोनोस्की है। इस पर सवारी करना अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती थी।
इस म्यूजियम के लिए चीजें जुटाने का जरिया भी मजेदार रहा है। कुछ चीजें कंपनियों के नाराज कर्मचारियों से मिली हैं, तो कुछ को रूसी तस्करों की मदद से हासिल किया गया है। सैमुअल कहते हैं कि यहां स्वीडन की कई नाकाम चीजें हैं। इस में सबसे खास है आईटेरा नाम की साइकिल, जो प्लास्टिक की बनी हुई थी। इसे 1982 में बाजार में उतारा गया था। आइटेरा चलाते वक्त इतना लहराती थी कि संतुलन बनाना मुश्किल होता था। स्वीडन में बनी कुछ टॉफी और चॉकलेट भी यहां रखी गई हैं। ये वो उत्पाद हैं जो अमरीकी उत्पादों के मुकाबले नहीं टिक सके।