स्कूबाडाइविगं बड़े से समंदर के अंदर की खूबसूरत दुनिया देखने के लिए लोग सूट-बूट पहनकर, बड़ा सा सिलिंडर लेकर स्कूबाडाइविंग करने जाते हैं। अगर अापने कभी ये एडवेंचर नहीं किया हो, तो टीवी पर जरूर देखा होगा। जी हां, देसी भाषा में इसे गोताखोरी कहते हैं। आज हम आपको बताएंगे उन महिलाओं के विषय में जो स्कूबाडाइविंग तो करती हैं लेकिन किसी विशेष सुविधाओं के बिना।
गोताखोरी के लिए स्पेशल सूट भी आता है पर हर कोई इस सूट का इस्तेमाल नहीं करता। तमिलनाडु में कई महिलाएं बिना सूट के साड़ी में समुद्र में गोते लगाती हैं। परिवार की मदद के लिए 20 से 70 उम्र की कई महिलाएं गोता लगाकर समुद्री खरपतवार इकट्ठा करती हैं। ये महिलाएं सूट, ऑक्सिजन सिलेंडर के बिना ही गहरे समुद्र में जाती हैं।
खरपतवार इकट्ठा करने का काम मन्नार की खाड़ी के आस-पास ही होता है। खरपतवार इकट्ठा करके ये महिलाएं महीने के 8-9 हजार कमा लेती हैं जिससे उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी चलती है।
खरपतवार में कर्रागीनन होता है जिसका इस्तेमाल चॉकलेट, आइसक्रीम, कस्टर्ड पाउडर और अचार में किया जाता है। इसमें कई तरह के विटामिन और मिनरल्स भी होते हैं, जिससे दवाईयां बनती हैं। ये महिलाएं महीने के 15 दिन गोता लगाती हैं। पहले वो महीने भर ये काम करती थीं पर समय के साथ खरपतवार की मात्रा में भी कमी आई है।
आमिर पीरजदा और नेहा शर्मा बीबीसी ने इन महिलाओं की कहानी पर डॉक्यूमेन्टरी बनाई है। दोनों ने ट्विटर पर उन महिलाओं की कहानी लोगों के साथ शेयर की है। 70 साल की नामथाई 13 साल की उम्र से गोता लगा रही हैं। पहले वो 50 किलोग्राम तक खरपतवार इकट्ठा कर लेती थीं, बढ़ती उम्र के कारण अब 15 किलो ही कर पाती हैं।