सामाज में बहुत सी ऐसी कुरीतियां हैं जिन्हे अपनाना सामाज का हिस्सा होने के नाते हमारी मजबूरी हो जाती है। इस मजबूरी को हम जिंदगी भर निभाते भी हैं और दूसरी तरफ इसके खिलाफ भी होते हैं। लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ना ऐसी मजबूरी अपनाते हैं बल्कि उसे खुद सुधार कर सामाज के लिए बेहतरीन उदहारण बन जाते हैं, क्योंकि उनका मानना होता है जब खुद में सुधार आएगा तभी सामाज बदल पाएगा और स्नेहा ने यही कर दिखाया है।
तमिलनाडु की रहने वाली स्नेहा पर्तिबराजा पेशे से वकील हैं । भारत की पहली ऐसी महिला बन गई हैं, जिनकी ना तो कोई जाति है और ना ही और ना ही कोई धर्म। दरअसल, पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत में किसी का नो कास्ट, नो रिलीजन सर्टिफिकेट बना हो। सुनने में तो आसान लग रहा होगा। लेकिन इसके लिए उन्होंने 9 साल लंबी जंग लड़नी पड़ी है।
स्नेहा तमिलनाडु के वेल्लोर के तिरूपत्तूर से हैं। स्नेहा, खुद ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता भी बचपन से ही सभी सर्टिफिकेट में जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ देते थे।
स्नेहा के अनुसार उन्होंने अपने आप को हमेशा भारतीय माना है। जिसके बाद उन्हे लगा कि सभी एप्लिकेशन में सामुदायिक प्रमाण पत्र अनिवार्य था। इसलिए उन्हें आत्म-शपथ पत्र लेना ही था। ताकि लिखित तौर पर ये साबित हो सके कि उनका किसी जाति धर्म सो कोई वास्ता नहीं है।
स्नेहा खुद ही नहीं बल्कि वो अपनी तीन बेटियों के फॉर्म में भी जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ती हैं। सोशल मीडिया पर उनके इस दमदार कदम की काफी तारीफ हो रही है। ये कदम उठाना इतना आसान नहीं था लेकिन स्नेहा सिर्फ बातों से सामाज बदलने का इंतजार करने वालों में से नहीं हैं भले ही उन्हें इसे सच बनाने में 9 साल लग गए हों लेकिन ये सामाज के लिए बड़ा उदहारण तो है।