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महिलाओं को वोट देने का अधिकार: सबसे पहले न्यूजीलैंड, 1919 में यूएस और 1947 में भारत ने दिया

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: गौरव शुक्ला Updated Sat, 09 Mar 2019 05:17 PM IST
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women's right to vote
women's right to vote - फोटो : PTI
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अपने देश में लोकसभा चुनाव आने वाले हैं, जिसको लेकर चुनाव आयोग कभी भी अधिसूचना जारी कर सकता है। भारत में पुरुष व महिलाओं को समान रूप से वोट डालने का अधिकार है। वर्ष 1947 में भारत में महिलाओं को भी वोटिंग का अधिकार मिला, तब करीब 17.3 करोड़ वोटर थे। इसमें से 8 करोड़ महिलाएं थीं, हालांकि 85 प्रतिशत महिलाओं ने वोट ही नहीं दिया। 

जबकि अमरीका को अपने यहां देश की महिलाओं को समान वोटिंग अधिकार देने में 144 साल लग गए। अमेरिका में महिलाओं को मताधिकार 1919 में दिया गया। ब्रिटेन को महिलाओं को वोट देने का अधिकार देने में लगभग एक सदी का समय लगा। स्विट्जरलैंड के कुछ इलाकों में महिलाओं को वोट दे सकने का अधिकार 1974 में जाकर मिला। वहीं  न्यूजीलैंड देश की बात करें तो वहां चुनावों में महिलाओं ने वर्ष 1893 में पहली बार वोट डाला था। इसी के साथ न्यूजीलैंड महिलाओं को मताधिकार देने वाला दुनिया का पहला देश बना था। हालांकि तब वह ब्रिटिश उपनिवेश था।

भारतीय महिलाओं को वोट देने का अधिकार उसी दिन मिल गया था जिस दिन इस देश का जन्म हुआ था। साल 1947 में भारत की वयस्क महिलाओं को किस तरह चुनाव में वोट देने का अधिकार मिला, गहन शोध के बाद लेखिका डॉक्टर ओर्निट शनि ने इस विषय पर एक किताब लिखी है।

वो कहती हैं कि करीब 10 लाख लोगों की मौत और एक करोड़ 80 लाख लोगों के घरों की तबाही के लिए जिम्मेदार बंटवारे की आग में झुलस रहे एक देश में ये फैसला लिया जाना उस समय 'किसी भी औपनिवेशिक राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।'

आजाद भारत में वोटरों की संख्या पांच गुना तक बढ़कर करीब 17 करोड़ 30 लाख तक पहुंच गई थी। इसमें से करीब 8 करोड़ यानी आधी आबादी महिलाओं की थीं। इनमें से करीब 85 फीसदी महिलाओं ने कभी वोट ही नहीं दिया था। दुर्भाग्य करीब 28 लाख महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा देने पड़े क्योंकि उन्होंने अपने नाम ही नहीं बताए।

अपनी किताब 'हाओ इंडिया बिकेम डेमोक्रेटिक: सिटिजनशिप ऐट द मेकिंग ऑफ द यूनिवर्सल फ्रैंचाइजी' में डॉक्टर शनि ने औपनिवेशिक शासन के दौर में महिलाओं के मताधिकार के विरोध के बारे में लिखा है। डॉक्टर शनि लिखती हैं कि ब्रिटिश अधिकारियों ने ये तर्क दिया था कि सार्वभौमिक मताधिकार 'भारत के लिए सही नहीं होगा।' ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में चुनाव सीमित तौर पर होते थे जिसमें धार्मिक, सामुदायिक और व्यावसायिक धाराओं के तहत बांटी गई सीटों पर खड़े उम्मीदवारों के लिए कुछ वोटरों को ही मतदान करने की इजाजत थी।

शुरुआत में महात्मा गांधी ने वोटिंग का अधिकार पाने में महिलाओं का समर्थन नहीं किया। उनका कहना था कि औपनिवेशिक शासकों से लड़ने के लिए उन्हें पुरुषों की मदद करनी चाहिए। इतिहासकार गेराल्डिन फोर्ब्स लिखती हैं कि भारतीय महिला संगठनों को महिलाओं को मतदान का अधिकार पाने के लिए एक मुश्किल लड़ाई लड़नी पड़ी थी।

साल 1921 में बॉम्बे और मद्रास (आज की मुंबई और चेन्नई) पहले प्रांत बने जहां सीमित तौर पर महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिए गए। बाद में 1923 से 1930 के बीच सात अन्य प्रांतों में भी महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिला।

डॉ. फोर्ब्स अपनी किताब 'वूमेन इन मॉडर्न इंडियामें लिखती हैं कि ब्रितानी हाउस ऑफ कॉमन्स ने महिलाओं के लिए वोटिंग के अधिकार की मांग करने वाले कई भारतीय और ब्रितानी महिला संगठनों की मांग को नज़रअंदाज किया। महिलाओं से भेदभाव और उनकी पर्दे में रहना इस फैसले के पीछे उनकी आसान दलील थी


महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देने वाला दुनिया का पहला देश न्यूजीलैंड है। न्यूजीलैंड सरकार की एक आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, 28 नवंबर, 1893 को न्यूजीलैंड ने महिलाओं को पहली बार मतदान करने का अधिकार दिया था। हालांकि तब वह ब्रिटिश उपनिवेश था।

बता दें कि महिलाओं को यह अधिकार दिलवाने में केट शेफर्ड नाम की एक सोशल एक्टिविस्ट ने बड़ी भूमिका निभाई थी। केट ने 1891, 1892 और 1893 में वोटिंग के लिए आंदोलन किये थे। काफी संघर्षों और प्रदर्शन के बाद न्यूजीलैंड की सरकार को केट की मांगे पूरी करनी पड़ी और इसी तरह वहां की महिलाओं को मतदान करने का अधिकार मिला गया। 

न्यूजीलैंड में 1893 में महिलाओं ने वोट डालने का अधिकार तो पा लिया था लेकिन चुनावों में बतौर उम्मीदवार खड़े होने के लिए उन्हे 1919 में अनुमति मिली थी। बता दें कि  न्यूजीलैंड से पहले कुछ देशों ने महिलाओं को वोटिंग करने का अधिकार दे दिया था लेकिन उसके साथ कुछ शर्तें भी रख दी थीं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वो शर्तें ये थीं कि चुनाव में वही महिलाएं  वोटिंग कर सकती हैं, जिनके पास अधिक संपत्ति हो। इसका मतलब है कि सिर्फ उन्हीं महिलाओं को मतदान करने का अधिकार मिला, जो संपत्ति वालीं थीं। न्यूजीलैंड पहला ऐसा देश बना, जिसनें सभी महिलाओं को वोटिंग करने की आजादी दी। 

इसके बाद धीरे-धीरे दूसरे देशों ने भी इस रास्ते को अपनाया। न्यूजीलैंड के बाद ऑस्ट्रेलिया ने 1902 में महिलाओं को ऐसे अधिकार दिए। उसके बाद फिनलैंड ने 1906 में इसकी शुरुआत की, जबकि नॉर्वे ने 1913 में महिलाओं को मताधिकार दिए। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि अमेरिका जैसे देश में भी पहले महिलाओं को वोटिंग करने का अधिकार नहीं था, वहां 1919 में ऐसा कानून लागू किया गया। अगर भारत की बात करें तो, यहां आजादी मिलने के बाद से ही महिलाओं को वोटिंग करने का अधिकार दे दिया गया था।

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