Home Panchayat 10 Screwed Up Things About The Indian Education System That Have Been Making Us Suffer

इंडिया के एजुकेशन सिस्टम की वो 10 बातें जिन्होंने हमें बहुत रुलाया!

shweta pandey/firkee.in Updated Mon, 30 Jan 2017 02:38 PM IST
विज्ञापन
शिक्षा प्रणाली
शिक्षा प्रणाली
विज्ञापन

विस्तार

हम अभी इतने बड़े और जानकार तो नहीं हुए कि अपनी शिक्षा प्रणाली के बारे में कुछ टिप्पणी कर सकें। हां लेकिन 5-6वी क्लास में ही इस शिक्षा प्रणाली के बारे में इतना समझ गए कि  जो बच्चा टॉपर होता है, उसकी याद करने की क्षमता बहुत तेज होती है। हमें इतनी समझ आ चुकी थी कि, टीचर का फेवरेट बनने के लिए पहले टॉपर बनना पड़ता है।

हमनें खुद ग़ौर किया है कि क्लास में रटने की क्षमता को ज़्यादा बढ़ावा दिया जाता है जबकि समझाना और समझना ये चीजें हमारी एजुकेशन सिस्टम से हट जाती हैं।  आज भी कई स्कूलों में ये क्रम जारी है। जबकि हमारी कामयाबी में एक बड़ा हाथ  स्कूलिंग और प्राथमिक शिक्षा का ही होता है। 

ये 10 चीजें जो हमने अपनी स्कूल समय में देखे हैं, जिसे हम आज सोचते हैं तो खून जल जाता है। ऐसा नहीं कि ये चीजें खत्म हो गयी हैं, ये आज भी कायम हैं...

आज भी तमाम कॉलेजों, स्कूलों की यही दशा है कि जितनी ज़्यादा कॉपी भरी है उतने अच्छे मार्क्स हैं। जो एंसर छोटे में और पर्याप्त हैं उससे कोई मतलब नहीं। नम्बर काट लिए जाएंगे। 
एक कॉलेज, और एक लाख कॉम्पिटीटर। एडमिशन के लिए मारम-मार। 
याद करने की क्रिया को समझने की क्रिया से ज्यादा बेहतर माना जाता है। 
 जिंदगी ग्रेड सिस्टम के बीच ही उलझ के फंस जाती है। 
कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर और खाने-पीने के लिए कैंटीन को देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ये कोई स्कूल या कॉलेज है। 
आज भी स्कूलों में बस पढ़ाई को बढ़ावा दिया जात है। उसक ेआलावा दूसरी चीजों जैसे सोशल स्किल, स्पोर्ट्स आदि दबा दिया जाता है। 
कोटा सिस्टम, इसके बारे में जितना लिखो कम ही है। हर बच्चा इस चीज को झेल रहा है। जहां रिजर्वेशन मिलना चाहिए वहां नहीं मिल पाता। 
अगर कोई तगड़ा, गुस्सैल और सख्त मैनेजर हो स्कुल का तो पूरे फ्यूचर पर विराम लगा देता है। 
अगर पीजी कर लिया तो रिसर्च का कोई स्कोप नहीं। उसके लिए भी मारा-मारी। फिर सिर पकड़ कर किसी भी कॉलेज से रिसर्च की एक डिग्री पकड़ लो। भले खुद को संतुष्टि मिले या न मिले। 
ये समस्या गांव के हर प्राईमरी स्कूल में देखने को मिलेगी। चाट बिछा कर गंदगी में बच्चे पढ़ रहे हैं भी या नहीं, लेकिन टीचर्स का समोसा-चाय वाला रूटीन खत्म नहीं होता। ऐसे स्कूलों में न बैठने लिए बेंच है, न टॉयलेट है, बल्कि कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि बहुत स्टूडेंट्स 10 तक जाते-जाते स्कूल ड्रॉप कर देते हैं।

तो आज भी लगभग 95% स्कूल ऐसे ही हैं। शिक्षा सिस्टम बदले न बदले लेकिन इन चीजों को ज़रूर बदलना होगा। 

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree