हर साल नोबेल पुरस्कार का डंका बजता है। हर साल हम याद करते हैं उन भारतीयों को जिनको ये नोबेल पुरस्कार दिए गए। अभी लेटेस्ट कैलाश सत्यार्थी जी को शांति का नोबेल दिया गया। सभी भारतीय बहुत खुश हुए और मध्यप्रदेश के कांग्रेस और बीजेपी वालों को कैलाश सत्यार्थी और कैलाश विजयवर्गीय में थोड़ा-सा कन्फ्यूज़न हो गया और उनके बीच एक जंग छिड़ गई। मतलब कुल-मिलाकर ये एक चुटकुला जैसा भी हो गया था। ख़ैर मेन बात ये है कि सारे भारतियों को उस समय बहुत गर्व महसूस हुआ था जब मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सत्यार्थी जी को इस पुरस्कार से नवाज़ा गया था। कह लें तो पूरी दुनिया में भौकाली होता है ये नोबेल पुरस्कार। ये अवॉर्ड फिज़िकल साइंस, केमिस्ट्री, मेडिकल साइंस या फिज़ियोलॉजी, लिटरेरी वर्क और इंटरनेशनल फ्रेटरनिटी आदि में महान कार्यों के लिए दिया जाता है। पर क्या आप जानते हैं इसके पीछे की कहानी? आखिर किसके नाम पर दिए जाते हैं ये अवॉर्ड? हैरान रह जायेंगे आप "एल्फ्रेड नोबेल" के बारे में पढ़कर।
इनके 2 भाइयों लुडविग और रोबर्ट ने ऑइलफील्ड्स को तबियत से इस्तेमाल किया और एल्बर्ट ने भी इसमें पैसा लगाया और खूब मुनाफ़ा कमाया। 1888 में लुडविग की कांस जाते समय मृत्यु हो गयी और गलती से एक फ्रेंच अख़बार ने एल्बर्ट नोबेल के नाम का शोक सन्देश छाप दिया। इसमें उनको डाइनामाईट जैसे पदार्थ के आविष्कार के लिए जम कर कोसा गया था। इसमें लिखा गया था "Le marchand de la mort est mort" मतलब मौत का सौदागर मर गया। और आगे इस अख़बार ने लिखा कि डॉ एल्फ्रेड नोबेल जिन्होंने और अधिक लोगों को मारने के अब तक के सबसे तेज़ तरीके की खोज की... कि कल मौत हो गयी। इस ख़बर को पढ़कर अचानक ही इनका हृदय परिवर्तन हो गया। और उन्होंने सोचा कि उनके मरने के बाद उन्हें इस तरह से याद नहीं रखा जाना चाहिए। और बस उन्होंने सोच लिया कि अब उन्हें अपनी इमेज बिल्डिंग करनी होगी।
उन्होंने अपने सारे पैसों को एक ट्रस्ट में लगा दिया जो कि इनके नाम पर विभिन्न क्षेत्रों में किये जाने वाले आविष्कारों या अन्य कामों के लिए दिया जाता है। 18 दिसंबर 1896 को इटली में दिल का दौरा पड़ने से इनकी मौत हो गयी। वैसे देखा जाए तो अपने अंतिम समय पर लिया गया इनका फैसला सही साबित हुआ। आज अधिकतर लोग ये नहीं जानते कि नोबेल पुरस्कार जिनके नाम पर दिया जाता है उन्होंने असल में एक से एक विनाशकारी उपकरणों और पदार्थों की खोज की थी।