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प्रशांत भूषणजी, ईवटीजर नहीं, 'रोमियो' के भी 'लवगुरु' हैं कृष्ण

Updated Thu, 06 Apr 2017 12:47 AM IST
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कृष्ण
कृष्‍ण - फोटो : google
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प्रशांत भूषण इन दिनों कृष्‍ण भक्तों के निशाने पर हैं। वजह भी एकदम वाजिब है। मामला आस्‍था का है। हम चाहे किसी भी पेशे में हों, लोगों की आस्‍था का सम्मान करना चाहिए। पहले आपको बताते हैं कि प्रशांत भूषण ने आखिर कहा क्या था। उन्होंने ट्वीट किया था, 'रोमियो सिर्फ एक महिला से प्यार करता था, जबकि कृष्‍ण प्रसिद्ध ईवटीजर थे। क्या आदित्यनाथ में इतनी हिम्मत है कि वह एंटी कृष्‍ण स्क्वॉड बना सकें। बहरहाल, प्रशांत भूषण ने जो बात कही थी उसके पहले हिस्से से मैं सहमत हूं। 

यह सच है कि रोमियो मनचला नहीं था। वह तो जीवित इंसान भी नहीं था, मात्र एक पात्र था। फिर भी इंसानों के निशाने पर आ गया। बहरहाल, रोमियो की इज्जत पर हमला एक बड़े वर्ग को नागवार गुजरा है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, एक प्रेमी को विलेन बनाना ठीक बात नहीं है। वैसे किसी ने कहा था, 'नाम में क्या रखा है'। बहुत गलत कहा था। 

नाम को लेकर इन दिनों जो संग्राम छिड़ा है, उससे ऐसा लगता है, वो बंदा एकदम फेंकू था। दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिकों से लेकर यूपी की एंबुलेंसों तक, पार्टियों के नामों पर राजनीति गरम है। बहरहाल, छोड़िए नाम में क्या रखा है। आगे बढ़ते हैं, एंटी रोमियो स्क्वॉड की बात करते हैं, जिसके नाम को लेकर भी बवाल मचा हुआ है। इसमें कोई शक नहीं कि यूपी जैसे प्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा बेहद अहम मुद्दा है। 

योगी सरकार के 'एंटी रोमियो' अभियान से लड़कियों का मनोबल जरूर बढ़ा होगा। बीजेपी का मकसद बुरा नहीं है, लेकिन 'एंटी रोमियो' नाम प्यार करने वालों के दिल में नश्तर की तरह चुभ रहा है। फिल्मी अंदाज में इस एहसास को बयां करने के लिए 'मुगल-ए-आजम' का वो डायलॉग बिल्कुल सटीक है, जिसमें अनारकली की हसीन जुल्फों के साए में कैद सलीम अपने वालिद उर्फ जिल्लेइलाही से कहता है, 'सांसें मेरी हों और दिल की धड़कनों पर आपका कब्जा रहे।' कब्जे से याद आया कि यूपी की सत्ता पर इन दिनों बीजेपी का कब्जा है। 'एंटी रोमियो' नाम अगर कांग्रेस ने रखा होता तो शायद बवाल कम कटता है, लेकिन बीजेपी तो राष्ट्रवादी पार्टी है। रोमियो पर 'पहरा' लगाना संकेत देता है कि संस्‍कृति सिर्फ हमारी ही अच्छी है और हमें दूसरी संस्कृति का एक ऐसा पात्र भी मंजूर नहीं, जो सिर्फ प्यार करता है। अब एक प्रेमी की तुलना, मनचले, अपराधियों, शोहदों, दिलफेंकों वगैरह-वगैरह से करना तो ठीक नहीं है। 

बीजेपी से नाम का चयन करने में चूक तो हुई है, अगर यह जानबूझकर किया गया है, तो फिर यह चूक और बड़ी है। वैसे एक बात तो है, बीजेपी को शायद अंदाजा नहीं होगा कि हमारे देश में भाई रोमियो की इत्ती इज्जत है। बेकार में पंगा ले बैठी। जिस देश में 'प्यार किया तो डरना क्या' वाली फिलोसफी इत्ती हिट हो, वहां 'प्यार का दुश्मन' टाइप इमेज बनाना बीजेपी के लिए ठीक नहीं है। वैसे भी हमारे पीएम तो युवाओं की बात करते हैं। फिर ये चूक हुई तो हुई कैसे? वैसे बीजेपी ने तो जो किया सो किया, पर हमारे प्रशांत बाबू तो एक या दो नहीं बल्कि 200 कदम आगे निकल गए। 

भाईसाहब ने रोमियो के उस्ताद और उसके भी उस्ताद के उस्ताद, संसार को गीता ज्ञान देने वाले, बोले तो जीने का कंप्लीट स्टाइल सिखाने वाले श्रीकृष्‍ण को ही लपेटे में ले लिया। गलती उनकी भी नहीं है, बेचारे लॉ पढ़े हुए हैं, कानून की किताब में लिखा होगा कि जिस रोमियो की बेइज्जती पर वह आगबबूला हो रहे हैं, उसके जैसे न जाने कितने श्रीकृष्‍ण से प्रेम की प्रेरणा लेते हैं। प्रशांत बाबू को दो चार दिन कोर्ट से छुट्टी लेकर मथुरा जाना चाहिए। वहां देखना चाहिए कि रोमियो के देश से आने वाले लोग कैसे कृष्‍णा धुन पर नाच रहे हैं और प्यार, मोहब्बत, इश्क, प्रेम, आस्‍था, मानवधर्म का ककहरा सीख रहे हैं। संदेश बीजेपी को भी लेना चाहिए, उसे भी सीखना चाहिए कि प्रेमी और मनचले में फर्क होता है। हिंदुत्व की बात करने वाली बीजेपी के नेता दिन में सौ बार 'वसुधैव कुटुंबकम' बोलते हैं, पर शायद अमल नहीं करते। उन्हें भी समझना चाहिए कि रोमियो को मनचले की तरह पेश करना न केवल कृष्‍ण विरोधी बल्कि हिंदुत्व विरोधी भी है। 
 

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