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ग्राहक भगवान होता है, इस बात को दुनिया ने इतना सीरियसली लिया कि हर गली, नुक्कड़, बाजार, स्टेशन... जहां भी कदम रखा नहीं दर्जनों निगाहें आपको ग्राहक समझ टूट पड़ीं! कई दफा तो नौबत यहां तक आ जाती है कि ऑटो-बस वाले बांह पकड़कर वाहन में बैठा देते हैं। फल-सब्जी वाले न चाहते हुए भी सैंपल चखा देते हैं।
आदमी सुबह घर से अपनी पर्सनाल्टी ग्रो करने के लिए निकलता है, लेकिन शाम को लौटते वक्त सिर्फ उपभोक्ता, ग्राहक या कस्टमर का बनकर लौटता है।
वर्चुअल वर्ल्ड भी इसमें स्कोप देख रहा है और सरकार भी। आटा-दाल से लेकर लाइफस्टाइल से जुड़ी हर चीज की ऑनलाइन डिलिवरी हो रही थी...अब सुन रहे हैं कि पेट्रोल और डीजल की भी होगी। अच्छी बात है होनी चाहिए, लेकिन हर चीज ऑनलाइन होगी और हर आदमी इसी का सहारा लेगा तो क्या इससे साजाजिक ढांचा प्रभावित नहीं होगा?
बड़े शहरों और मेट्रो शहरों वैसे भी आम हो या खास तकरीबन हर इंसान एकांगी जीवन ज्यादा बिता रहा है। लोगों से मिलने-मिलाने के मौके कम होते जा रहे हैं। ऑनलाइन व्यापार में इजाफा हो रहा है लेकिन उन लाखों लोगों का क्या.. जो तमाम व्यवसायों के जरिए अपनी आजीवका खोते जा रहे हैं। कहीं देश को अमीर बनाने के चक्कर हम देश को और गरीब तो नहीं बना रहे हैं? बात सोचने वाली है... सोचिए!