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कहते हैं कि शिक्षा वो ज्योति है, जो किसी का भी भविष्य रोशन कर सकती है। लेकिन भारत जैसे विविधता भरे देश में समान शिक्षा की बातें तो जरूर होती हैं लेकिन कितनों को मिलती है यह स्थिति किसी से छुपी नहीं है। बहरहाल, भारत में ही ऐसे लोग भी हैं जो सिर्फ बातें नहीं करते बल्कि इस दिशा में सच में प्रयास भी करते हैं।
बेंगलुरु में एक यंग कपल कुछ ऐसा ही काम कर रहा है। यह कपल लोगों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी भर रहा है। सरस्वती पद्मनाभन और उनके पति श्यामल कुमार मिलकर 'दीयाघर' नाम से एक एनजीओ चलाते हैं। यह एनजीओ दिहाड़ी मजदूर के बच्चों की शिक्षा का जिम्मा उठा रहा है।
हमने खोजबीन की तो 'दीयाघर' की वेबसाइट पर एक चौंकाने वाली जानकारी मिली। जिसके मुताबिक अकेले बेंगलुरु में लगभग 13 लाख लोग स्लम इलाके में रहते हैं। जनसंख्या के लिहाज से यह शहर का 17 प्रतिशत है। वहीं, बेंगलुरु में लगभग 40,000 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें खाने, खेलने कूदने और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
एनजीओ की संस्थापक सरस्वती बताती हैं कि 2016 में उनके मन में इन बच्चों के लिए कुछ करने का ख्याल आया। जिसके बाद उन्होंने अपने पति श्यामल की सहायता से दियाघर की स्थापना की।
आपको जानकर हैरानी होगी कि सरस्वती ने 'दीयाघर' की स्थापना के लिए अपनी प्रॉपर्टी भी बेच दी। सरस्वती के मुताबिक, 'हमने अपनी प्रॉपर्टी बेचते वक्त एक बार भी नहीं सोचा। हमें लगता था कि हमें ऐसा करना चाहिए और हमने किया। इसके बाद दियाघर शुरू हुआ।' आज दियाघर में करीब 30 बच्चे हैं।