हम बड़े-बड़े घरों में रहना पसंद करते हैं। शहरों में बड़े मकान देख कर मन ही मन पकवान भी पकते हैं हमारे मन में। कभी हम भी बड़े घर में रहेंगे। अच्छे घर में रहेंगे। शौक होना अच्छी बात है। लेकिन कभी हम इसके पीछे के काले पर्दे में दबे सच को नहीं देख पाते। नहीं समझ पाते। गलती हमारी भी नहीं है। गलती हमारे इनफॉर्मेशन सिस्टम की है। जहां से हमें दिन रात मार-काट, पाकिस्तान और ड्रामेबाजी की खबरें मिलती हैं। लेकिन जरूरी बातें कहीं कोने से निकल जाती है।
ऐसी ही एक बात अज हम बता रहे हैं आपको। घर। एक बार जमीन की खुदाई हो गई इसके बाद जो पहली चीज़ हमारे घर या मकान के बनने के लिए जरूरी होती है वो है ईंट। और ईंट बनते हैं भट्ठे में। ईंट के भट्ठे। एक-एक ईंट के भट्ठे में सैकड़ों लोग काम करते हैं। लेकिन ये सिर्फ काम नहीं करते ये अपना कर्ज चुका रहे होते हैं। ठेकेदार इन्हें कुछ एक हज़ार रुपए देता है और इसके बदल इनकी जिंदगी इन ठेकेदारों के नाम गु़लाम हो जाती है।
ओडिशा के श्रीकृष्ण राजहंसिया ने अपने ठेकेदार से 18,000 रूपए लिए थे। जिसे वो आज तक अपने पूरे परिवार की कीमत पर चुका रहा है। हर दिन 14 घंटे काम करता है। दिनभर के काम की हाजरी होती है 250 रुपए। मिलता है 100 रुपया। दिनभर काम करना पड़ता है। और शाम को इनके बच्चों को ठेकेदार उठा कर ले जाते हैं। बच्चे रात वही बिताते हैं। वजह? वजह ताकि ये अपने घर से भाग ना जाएं। सबसे पहले इनका मोबाइल छीन लिया जाता है।
और ये सब कुछ हो रहा है। देशभर में विकास के नाम पर हो रहे कंस्ट्रक्शन को ईंटे पूरी करने के लिए। हम विकास-विकास का राग अलापते हैं। कभी सोचते हैं इसके पीछे क्या कीमत चुकाई जा रही है। दूसरी बात किसका विकास, कैसा विकास? अगर विकास की कीमत किसी को इतनी महंगी पड़ रही है तब भी क्या हमें ऐसे विकास की जरूरत है? पहले लोगों का पेट भर जाए फिर बनाते रहेंगे यार स्मार्ट सिटी।
राजहंसिया तो सिर्फ एक चेहरा हैं। इस बंधुआ मजदूरी में आज भी सैकड़ों नहीं हज़ारों लोग ऐसे ही फंसे हैं। इंडिया में आज भी सबसे ज्यादा बंधुआ मजदूर हैं। और हम कहते हैं, मेरा देश बदल रहा है। आपका उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान से मन भर जाए तब सोचिएगा। जय हो!