Home Panchayat Change The Parameter Of Beauty It Does Not Stand For Fairness

खूबसूरती का पैरामीटर बदलो, खूबसूरती मतलब गोरापन नहीं होता

Updated Tue, 09 Aug 2016 11:43 AM IST
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आप ईश्वर में विश्वास रखते हैं? नहीं भी रखते होंगे तो दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी, पार्वती की तस्वीरें देखी ही होंगी। इनकी व्याख्या में इनकी खूबसूरती की व्याख्या ज़रूर सुनी होगी। ये माताएं अद्वितीय सुंदरी थीं। सुंदरी मतलब खूब गोरी, तीखे नैन-नक्श.. हां, यही तो परिभाषा है सुंदरता की। एक और बात है, शायद आप ने भी ग़ौर किया हो। महिषासुर और दूसरे राक्षस कभी खूबसूरत नहीं होते हैं। न धारावाहिकों में, न पंडालों में। तो एक सीधी-सपाट बात ये हो गई कि अच्छाई मतलब खूबसूरती और बुराई मतलब बदसूरती, जिसमें इन दोनों की परिभाषाएं आप ने गढ़ रखी हैं। रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी सुना होगा। देश की प्रमुख विरांगनाओं में से एक थीं। उनके बारे में भी कहा जाता था कि बहुत खूबसूरत थीं। durgaa मुझे बचपन से कहानी सुनने की आदत है। क्लास 9th तक तो लगातार सुनती आई थी। मम्मी से, या फिर जब भी बड़ी मम्मी (ताई जी) या नानी घर पर आतीं, तो उनसे.. और अगर कोई नहीं होता तो डैडी से। डैडी के अलावा जितने लोगों ने भी कहानियां सुनाईं सबकी कहानी में बाकि कुछ भी हो पर एक राजकुमारी ज़रूर होती थी और वो बेहद खूबसूरत होती थी। मुझे यही सुनते-सुनते बड़े होकर इस बात पर आपत्ति भी होने लगी थी कि राजकुमारी हमेशा खूबसूरत ही कैसे होती है, और खूबसूरत लड़कियां हमेशा वही क्यों होती हैं जो बहुत गोरी हों, जिनके नैन-नक्श तीखे हों। फिर ये भी था कि उसके साथ कुछ न कुछ ऐसा होता था जिसकी वजह से उसे राजकुमार की मदद लेनी पड़ती थी। मतलब राजकुमारी खूबसूरत, सुकुमारी और अक्सर ही कमज़ोर रहती है। मुझे अपनी आखिरी कहानियों तक इंतज़ार रहा उस कहानी का जिसमें राजकुमार अपनी मर्ज़ी से शादी करे और वह उस लड़की से शादी करे जो खूबसूरत न हो। मुझे इंतज़ार रहा उस कहानी का जिसमें राजकुमार को राजकुमारी से मदद लेनी पड़े। ऐसी कहानियां सिर्फ़ डैडी ने ही सुनाईं, शायद इसलिए कि अच्छाई पर मेरा विश्वास बना रहे।
अजीब लगता है और आपत्ति भी होती है वो दुर्गा चालीसा सुनकर जिसमें मां दुर्गा की खूबसूरती का वर्णन किया गया है। शशि ललाट मुख महा विशाला, नेत्र लाल भृकुटी विकराला रुप मातु को अधिक सुहावें, दरश करत जन अति सुख पावें।। आप इन तमाम बातों से यही साबित करना चाहते हैं कि जो भी अच्छा है वह खूबसूरत भी है, और इसमें आपकी खूबसूरती की अपनी परिभाषा है। अपने लड़के के लिए लोग लड़की देखने जाते हैं तो खूबसूरत लड़की ही चाहते हैं। कई लोग तो अपनी बुद्धिमता दर्शाने को यह भी कहते हैं कि - लड़की को खूबसूरत होना ही चाहिए, नहीं तो बहुत मुश्किल होती है.. कौन पूछेगा। तो हम लोग इसलिए खूबसूरत बनें क्योंकि आप जैसे परम ज्ञानी लोग हमारी बद्सूरती के साथ हमें स्वीकार नहीं करेंगे। उस पर से बची-खुची कसर यामी गौतम पूरी कर देती हैं अपना fairness treatment सुनाकर। अपना फेयरनेस पैरामीटर दिखा-दिखाकर उन्होंने ये साबित करने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया कि खूबसूरती मतलब गोरापन.. और इसके बिना आप ज़माने में कुछ भी नहीं। अगर आप यामी गौतम वाले पैरामीटर से खुद की मापतोल करते हैं तो एक बार राधिका आप्टे का ये वीडियो भी देखें। आपको खुद से प्यार हो जाएगा। https://www.youtube.com/watch?v=MtjS1lsO3JM हम कितने भी बुद्धिजीवी और प्रगतिशील क्यों न बन लें लेकिन हमारी सोच-समझ भी इस सुंदरता के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। वो जो फर्स्ट इम्प्रेशन बनता है न किसी का, वो बहुत कम लोग ही कुछ और देखकर बनाते हैं। अमूमन वो इम्प्रशेन शक्ल देखकर ही बना लिया जाता है। पिछले वर्ष कल्याण ज्वेलर्स का एक विज्ञापन आया था, ऐश्वर्या राय उसमें एक एलीट प्रिंसेज़ या क्वीन की भूमिका में विराजमान थीं। उनके पीछे एक लड़का एक छतरी लिए हुए खड़ा था जिसका रंग सांवला था। वो लड़का महज़ 14-15 साल का रहा होगा। विज्ञापन में ऐश्वर्या और उस लड़के के हाव-भाव से लग रहा था कि ऐश्वर्या राजस्व सुख और विलासिता को भोग रही हैं और वो लड़का गुलामी की प्रथा का हिस्सा बना हुआ है। ऐश्वर्या राज-घराने से हैं इसलिए बहुत ही एलीट ढंग से तैयार हुई हैं, उनका परिधान, उनके बैठने और देखने का तरीका.. सब उनकी विलासिता को इंगित करते हैं। लड़का गरीब है, गुलाम है और काला है। इस विज्ञापन पर खूब बहस भी हुई और बाद में हटा लिया गया। kalyaaan कंगना रनौत ने एक बार किसी इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें एक फेयरनेस क्रीम के विज्ञापन के लिेए 2 करोड़ रुपये ऑफर किये गए थे पर उन्होंने मना कर दिया क्योंकि उन्हें खूबसूरती और गोरेपन का कोई मेलजोल समझ नहीं आता। 12 अगस्त को सिंधु घाटी सभ्यता पर आधारित एक फिल्म आ रही है - मोहनजो दारो। फिल्म के निर्माता-निर्देशक हैं - आशुतोष गोवारीकर। अगर आप ने मोहनजो दारो और हड़प्पन सभ्यता के बारे में पढ़ा हो तो आपको पता होगा कि वहां के लोग गोरे नहीं होते थे। वहां की लिपियां अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी हैं, इस आधार पर फिल्म बनाना भी जोखिम भरा काम है। फिल्म के ट्रेलर में ही बहुत सारी कमियां निकाली जा चुकी हैं। ट्रेलर में आप ने दो चीज़ों पर ज़रूर ग़ौर किया होगा। ऋतिक रोशन  को एक आम इंसान का किरदार मिला है, उन्हें सांवला बनाया गया है और मेकअप इस तरीके से किया गया है कि देखकर लगता है उनके चेहरे पर भुरे रंग की पॉलिश पोत दी गई है। मेकअप में कहीं से नैचुरल लुक नहीं आ रहा है। hrithik दूसरी तरफ फिल्म की लीड रोल में हैं पूजा हेगड़े जो मिस युनिवर्स कॉन्टेस्ट में दूसरी रनरअप रह चुकी हैं। पूजा इस फिल्म में किसी राजकुमारी की भूमिका में हैं और बेहद ही खूबसूरत दिखाई गई हैं। ट्रेलर में उनके चेहरे की कांति और दमक देखते ही बनती है। पर हड़प्पा और मोहनजो दारो जैसे क्षेत्र में लोग इतने गोरे नहीं होते थे। तो क्या फिल्म में मोहक और आकर्षक पुट डालने के लिए ऐसा किया गया है? ये भी कैसी विडम्बना है कि आकर्षण गोरे रंग से ही आता है। अजीब बात ये भी है कि पूजा खुद सलोनी रंग की हैं पर फिल्म में उन्हें खूब चमकाया गया है। राजकुमारी और संभ्रांत कुल के लोगों को खूबसूरत ही होना चाहिए, गोरा ही होना चाहिए। आम इंसान हमेशा सांवला ही रहेगा। pooja-hegde-759 आशुतोष गोवारीकर ने अपने फिल्म के किरदारों को एक बनी-बनाई सोच के अनुरूप गढ़ा है, भले ही वह सोच उन किरदारों को वास्तविकता से परे ले जाती हो। खूबसूरती की तरफ आनायास ही आकर्षण बढ़ जाता है पर जब एक कला-प्रेमी इस सोच के घेरे को तोड़ने की बजाय उसे स्थापित करने लगता है तो तकलीफ़ बढ़ जाती है। जबतक हम और आप ये समझते रहेंगे कि खूबसूरती मतलब गोरापन होता है, हम अभावग्रस्त रहेंगे। हमारे अभावों को विज्ञपन के रूप में परोसा जाएगा, भुनाया जाएगा और हम खूबसूरत बनने की होड़ में शामिल रहेंगे। ज़रूरत है इस सांचे को तोड़ने की, अपनी नई परिभाषा गढ़ने की। वो करने की जो आशुतोष गोवारीकर नहीं कर पाए।

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