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हरिशंकर परसाई के व्यंग्य बेहद गंभीर विषयों पर रहा करते थे। वो गंभीरता के साथ ही कटाक्ष मारने की कला में महारती थे। उनकी कलम की चोट सबसे ज्यादा बुद्धिजीवी वर्ग पर पड़ा करती थी। आज उनकी पुण्यतिथि हैं। परसाई जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में 22 अगस्त 1924 को हुआ था। 10 अगस्त 1995 को व्यंग्य सम्राट ने इस दुनिया को छोड़ दिया था।
परसाई जी ने ही लेखन में व्यंग्य को सम्मानजनक स्थिति में पहुंचाया। कई बार आपको पता ही नहीं चलेगा कि जिस कटाक्ष पर आप हंस रहे हैं उसके शिकार आप खुद ही है। परसाई जी अपनी शैली में खुद अपने आप तक को नहीं छोड़ते थे। अपने जन्म दिवस पर लिखा हुआ उनका कटाक्ष आपको आज भी गुदगुदा देगा। व्यंग्यकार हरिशकंर परसाई जी की पुण्यतिथि के मौके आपके सामने उनके कुछ व्यंग्य प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर अब तक आपने हिंदी साहित्य को गंभीरता से नहीं लिया है तो परसाई जी के शब्दों को पढ़ने के बाद आप इसे सीरियसली लेने लगेंगे।
परसाई जी के वैचारिक लेखों में आपको सोचने और विचारने के लिए बहुत कुछ मिल जाएगा। जाति और धर्म के नाम पर खोखले बनाए गए आवरण पर परसाई जी का ये व्यंग्य जोरदार चोट करता है। व्यंग्यकार ने यह व्यंग्य 80 के दशक के आखिर में लिखा था।
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मेहमानों के प्रति मेजबानों की बदलती धारणा को हरिशंकर परसाई ने दशकों पहले बड़ी बारीकी से पढ़ लिया था। उस दौर में उनके लिखे ‘क्या अतिथि देवता नहीं रहा’ व्यंग्य को पढ़कर मन गुदगुदा जाएगा।
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जैसा कि हमने ऊपर आपको याद दिलाया कि परिसाई जी की कलम की धार किसी के लिए कम नहीं होती थी। कई बार तो वो खुद अपने ऊपर ही व्यंग्य लिख जाया करते थे। इस तरह गुजरा जन्मदिन' शीर्षक से छपे लेख में परसाई जी ने अपनी आपबीती पर व्यंग्य किया है। आज शायद की कोई महान लेखक अपने ऊपर ऐसी चुटकी ले। परसाई का वह व्यंग्य आज तमाम महानायकों और कलाकारों के जन्मदिन के शोर-शराबे में उनकी याद दिलाता है।
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धर्म और विज्ञान जैसे गंभीर मुद्दे पर तर्कपूर्ण तरीके से व्यंग्य करने की कला सिर्फ और सिर्फ हरिशकंर परसाई जी के पास है। उनका यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए आपको,
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सामाजिक व्यवस्था पर जोरदार प्रहार करते हुए परसाई जी ने जबरदस्त व्यंग्य लिखा। जिसमें उन्होंने मानवीय व्यवहार को अपने निशाने पर लिया। इसको पढ़ने के बाद आपको व्यंग्य की ताकत का एहसास हो जाएगा।
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