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लड़के-लड़की का भेदभाव हिंदुस्तान की पुरानी समस्या में से एक है। चर्चाएं होती हैं कि लड़कियों को लड़कों के बराबर मौका दिया जाना चाहिए।लेकिन वो लोग ये नहीं समझते हैं कि लड़कियां जिस भी सेगमेंट में कूदती हैं वो वहां सबको पछाड़ देती हैं। अब पढ़ाई-लिखाई में ही देख लें, किसी भी प्रदेश के बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम उठा लें, टॉपर्स की लिस्ट में लड़कियां भरी मिलेंगी। पढ़ाई-लिखाई के अलावा भी कुछ दूसरे फील्ड हैं वहां लड़कियों से मुकाबला करेंगे तो ज्यादातर मामलों में हार का मुंह ही देखना पड़ेगा।
लड़कियां जब बड़े-बड़े नाखूनों के साथ स्क्रीन पर उंगलियां चलाती हैं तो आप देखते रह जाएंगे। जबकि मोटी मोटी उंगलियों वाले लड़के, टाइपिंग से ज्यादा तो बैकस्पेस का बटन दबाते हैं। अगर इसका कोई कॉम्पटीशन होगा तो ज्यादा संभावना है कि लड़कियां ही जीतेंगी।
भगवान ने ये टैलेंट कुछ एक लड़कों को भी दिया है, लेकिन वो कितनी भी कोशिश कर लें। इस मामले में महिलाओं को पराजित करना मुश्किल है। कुछ महिलाएं तो गलचौरा और फुसफुस में इतनी एक्सपर्ट होती हैं। वो ऐसी बातें बता देती हैं जो होती भी नहीं हैं। इनके पास सबूत नहीं होता है, बस संभावना के तीर दे दनादन... चलाए जाते हैं।
महिलाओं का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है। वो एक साथ कई काम करने में माहिर होती हैं। एक तरफ किचन में खाना बन रहा होगा तो वो दूसरी तरफ वो खुद तैयार होती रहेंगी। घर में आने वाले मेहमानों को चाय नाश्ता भी कराया जाएगा। साथ ही अपने लिए आती हर आवाज (मेरे कपड़े कहा हैं...) का जवाब भी दिया जाएगा। सबसे मजेदार बात ये है कि इतने सारे काम करते हुए आपको महिलाएं गाते-गुनगुनाते भी दिखाई दे जाएंगी।
इसमें भी पारंगत होती हैं लड़कियां। ये घंटों तक फोन पर बात करने के बाद कहती हैं, चलो जब फ्री होती हूं तो आराम से फोन पर बात करूंगी।
ये तो लड़कियों का फेवरेट काम होता है। शॉपिंग करते हुए तो महिलाएं ब्रह्मांड के किसी भी कोने में रहें, बोर नहीं होंगी, इस प्रतियोगिता में तो पुरुषों को इनके सामने आना ही नहीं चाहिए। पुरुषों का जीतना नमुमकिन है।