विस्तार
बिहार की कई पहचानों में एक नगीना पिछले साल ही जुड़ा है, जिसकी चमक का श्रेय जाता है पिछले साल के 12वीं के नतीजों को। क्योंकि साल 2016 के बिहार बोर्ड के नतीजों के बाद ही रुबी और सौरभ सुर्खियों में आए थे। इन सुर्खियों की चमक ने बिहार की शिक्षा प्रणाली के उस तहखाने को उजागर कर दिया था, जिससे पास और फेल करने का गोरखधंधा चल जा रहा था।
बिहार के इन सूरमाओं की लिस्ट में रूबी, सौरभ और इस साल के गणेश का नाम शामिल है, जो अपनी अपनी सहूलियतों के हिसाब से टॉपरों की कतार में सबसे आगे खड़े हो गए थे। पिछले साल की टॉपर रूबी ने अपनी गलती से सबक लेने के बजाय एक और गलती करने की ठानी है। अब वह अपने आप को एक कमरे में बंद करके अंग्रेजी का घोल पीने की कोशिश कर रही हैं। रूबी ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और लोगों से दूर होकर सिर्फ अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही हैं।
अंग्रेजी सीखने की ललक को सराहा जा सकता है, लेकिन जिस तरीके से इसे सीखने की कोशिश की जा रही है, उसे कैसे स्वीकार किया जाए। रूबी अपनी बैड इमेज बिल्डिंग से शायद ये नहीं समझ पाईं कि उनकी चर्चा इसलिए नहीं हुई कि वह अपने सब्जेक्ट का नाम सही से नहीं ले पाईं बल्कि चर्चा इसलिए हो रही थी, क्योंकि रूबी को ये भी नहीं पता था कि उनके सब्जेक्ट में क्या पढ़ाया जाता है।
इस गलतफहमी का शिकार अकेले रूबी नहीं हैं। हिंदुस्तान में रूबी आपको हर शहर, हर गली और हर मोहल्ले में मिल जाएगी। हमारे यहां बुद्धिमानी का पैमाना अंग्रेजी को बना दिया गया है। ऐसा नहीं कि सिर्फ अंग्रेजी बोल भर लेने से आपको सम्मान दे दिया दिया जाएगा, आपको अंग्रेजी में हंसना, खाना और चलना ही आना चाहिए!
वास्तव में, अंग्रेजी और बुद्धिमानी का दूर-दूर तक आपस में कोई नाता नहीं है। कई फिल्मकार इस मुद्दे पर फिल्में बना-बनाकर थक गए हैं, लेकिन हम सिर्फ अपना मनोरंजन करके फिर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं।
भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम है, उसका आपकी सफलता में योगदान हो सकता है, लेकिन निर्भरता नहीं हो सकती। रूबी और उनके जैसे लोगों को समझना होगा... नहीं तो हर साल रूबी, सौरभ और गणेश मीडिया मैटिरियल बनते रहेंगे।