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आज कल लोग कहते हैं कि जो सोशल मीडिया में एक्टिव नहीं है वो कहीं भी नहीं है। जैसे उस व्यक्ति का कोई अस्तित्व ही नहीं है। आजकल जो लोग पहली बार मिलते हैं और फिर दोबारा मिलना चाहते हैं वो एक दूसरे से पहले उनका व्हाट्सऐप नंबर मांगते हैं, फिर कहते हैं कि हमें एफ़बी पर एड कर लेना और फिर पूछते हैं कि आपका ट्विटर हैंडल क्या है।
अब इनमें से किसी भी सवाल का जवाब अगर न में आ जाए तो उस व्यक्ति को जैसे बिल्कुल पुरातन पंथी ही समझ लिया जाता है। कुछ लोग इस कल्चर की बहुत आलोचना भी करते हैं। वो कहते हैं कि हम अपने आस-पास वालों से तो दूर जा रहे हैं लेकिन उसकी जगह एक आभासी दुनिया में जीना शुरू कर रहे हैं।
ये बात भी सच हो सकती है लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। सोशल मीडिया पर रहना समय की बर्बादी लग सकता है लेकिन ये भी सच है कि फेसबुक और ट्विटर ने कई बार लोगों की मदद भी की है। ये मदद इन साइट्स ने नहीं बल्कि इनपर मौजूद लोगों ने ही की है। जब लोगों ने इनमें रुचि दिखाना शुरू किया तो बड़े संस्थान और लोग भी यहां आ पहुंचे और लोगों से जुड़ने लगे।
अगर ट्विटर की बात की जाए तो अकेले भारत में ही न जाने ऐसे कितने ही उदाहरण मौजूद हैं जहां लोगों को इससे मदद हासिल हुई है। इसका ताज़ा उदाहरण है शोभा डे द्वारा किया गया मज़ाक। जैसा कि आप जानते हैं शोभा डे ने पिछले दिनों अपने ट्विटर हैंडल से एक पुलिस वाले का इसलिए मज़ाक बनाया था क्योंकि उसका वज़न बहुत ज़्यादा था।
इस बात के लिए उनको काफ़ी आलोचना भी झेलनी पड़ी थी। वो व्यक्ति थे दौलत राम जोगावत जो मध्य प्रदेश पुलिस में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि वो एक बीमारी की वजह से इस हाल में हैं। इसके बाद उनकी मदद के लिए कई हाथ आगे आए। और आज आखिर उनकी सर्जरी होने वाली है जिससे उनको वज़न कम करने में मदद मिलेगी।
भले ही शोभा डे ने मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा किया था लेकिन यही मज़ाक दौलत राम के लिए वरदान साबित हो गया। इसी तरह से और भी कई लोग हैं जिन्हें ट्विटर के ज़रिये मदद मिली है।
सुषमा स्वराज ट्विटर के माध्यम से लोगों से जुड़ी रहती हैं और वो कई लोगों की मदद कर चुकी हैं। जब सुषमा बीमार थीं तब भी उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से एक महिला की मदद की थी जिसे ऑस्ट्रेलिया का वीज़ा नहीं मिल रहा था। सुषमा ने उनसे वहीं अस्पताल में मिलने आने को कहा और उस महिला को वीज़ा भी दिलवाया।
सुरेश प्रभु भी ट्विटर के माध्यम से रेल यात्रियों से जुड़े हुए हैं और उन्होंने भी कई बार बहुत से यात्रियों की मदद की है। यदि आप ट्रेन में सफ़र कर रहे हैं और आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी है तो आप सीधे रेल मंत्री को ट्वीट कर सकते हैं। आपकी परेशानी को जल्द से जल्द संज्ञान में लेकर उसका निदान किया जाता है।
एक बार ट्रेन में एक बच्चे को मदद की ज़रूरत थी, किसी ने रेल मंत्री को ट्वीट कर मदद मांगी...
तुरंत ही रेल मंत्रालय का जवाब आ गया...
इसके बाद उस व्यक्ति ने फिर एक ट्वीट कर सभी का शुक्रिया भी अदा किया...
तो इससे ये साफ़ पता चलता है कि यहां सिर्फ़ टाइम पास करने नहीं आते बल्कि ट्विटर की मदद से लोगों को मदद भी मिलती है।
यहां सिर्फ़ मदद नहीं मांगी जाती बल्कि यहां लोगों ने एक दूसरे का साथ निभाए जाने के वादे भी किए हैं। ये शायद ट्विटर पर किया गया पहला प्रपोज़ल था।
और मज़े की बात तो ये कि जिससे हाथ मांगा गया था उसने भी हां कर दी। तो जब मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा क़ाज़ी।
कुलमिलाकर आज सोशल मीडिया को हलके में लेना किसी भी व्यक्ति के लिए नुक्सानदायक हो सकता है। भले ही कुछ लोग यहां सिर्फ़ दूसरों को ट्रोल करने आते हों लेकिन बहुत से लोगों को यहां सच में काफ़ी मदद मिली है। लोग इस बात को लेकर अब जागरूक हो गए हैं। कौन सोच सकता था कि शोभा डे का एक ट्वीट, भले ही वो नकारात्मक चरित्र वाला था, किसी की ज़िंदगी बदल सकता है।
लेकिन ऐसा हुआ और उम्मीद है कि लोग ट्विटर का इस्तेमाल ऐसे ही करते रहेंगे।