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बत्ती कोई भी हो, जलती है तो रोशनी होती है, बुझती है तो अंधकार...! लेकिन लाल बत्ती एक ऐसी बत्ती है जो कइयों के दिमाग की बत्ती जला देती है। सीधे कहें तो यह बत्ती कम आफत ज्यादा होती है! इस आफत का समाज के कर्णधारों (VIP) ने अपने हिसाब से खूब इस्तेमाल किया है। इसलिए पहले सुप्रीम कोर्ट और फिर प्रधानमंत्री मोदी को कहना पड़ा कि लाल बत्ती कल्चर यानी वीआईपी कल्चर को तिलांजलि दी जाए। शुभ काम की पहली आहूति बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस पर फैसला सुनाकर दी दे गई। इस आहूति ने बहुत लोगों के अरमानों को चकनाचूर कर दिया, यूं कहिेए इनकी शान में से एक नगीना निकालकर बेनूर कर दिया। चूंकि पुरानी कहावत है... 'जबर मारे रोने न दे...' तो जबर हैं हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...बाकी आप समझदार हैं... समझ लीजिए। 1 मई से लालबत्ती गाड़ियों की छतों से कानूनन गायब कर दी जाएगी।
बत्ती लाल हो, नीली हो या पीली, गाड़ियों की छतों पर इनके लगाने का उद्देश्य यही होता है कि उन्हें रास्ता पहले मिल जाए ताकि गंतव्य तक पहुंचने में उन्हें किसी भी तरह के अवरोध को न झेलना पड़े। गाड़ी समय पर पहुंचेगी तो मंत्री, अधिकारी आदि भी समय पर अपनी ड्यूटी का निर्वहन कर सकेंगे। लेकिन आलम यह रहा कि मंत्रियों-छुटभैये नेताओं और अधिकारियों के रिश्तेदारों तक ने इन बत्तियों का बेजा इस्तेमाल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
कानून के मुताबिक केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1989 के नियम 108 की धारा (III) के तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता, सुप्रीम कोर्ट के जज, राज्यो के गर्वनर और मुख्यमंत्री, दूसरे देशों के राजदूत और कॉमनवेल्थ देशों के हाई कमिशनर अपने वाहन पर चमकने वाली लाल बत्ती लगा सकते हैं।
वहीं, मुख्य चुनाव आयुक्त, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर, केन्द्र सरकार के राज्यमंत्री, योजना आयोग के सदस्य, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष, अटॉर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव, तीनों सेनाओं (जल-छल-वायु ) के प्रमुख, सेंट्रल ऐडमिनिस्ट्रेटिव के अध्यक्ष, यूपीएससी के अध्यक्ष, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, सॉलिसिटर जनरल, राज्यों के उपमुख्यमंत्री, दूसरे देशों के दूत और मंत्री बिना चमकने वाली लाल बत्ती अपनी गाड़ियों पर लगा सकते हैं।
राजधानी दिल्ली में मोटर व्हीकल्स नियम 1993 के अनुसार सिर्फ इमरजेंसी वाहनों (फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, पुलिस कंट्रोल रूम की वैन) में चमकने वाली या घूमने वाली लाल बत्ती के साथ सायरन लगा सकते हैं। वीआईपी की पायलट गाड़ी पर भी सायरन लगाया जा सकता है। लाल के अलावा चमकने वाली नीली बत्ती को पुलिस पेट्रोलिंग की गाड़ी और पायलट वाहन पर लगाया जा सकता है।
केंद्रीय कैबिनेट के वर्तमान फैसले के अनुसार आपातकाल सेवाओं... एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड में लाल बत्ती का इस्तेमाल हो सकेगा।
जाहिर है परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। समय के साथ कानूनों में भी परिवर्तन (संशोधन) की गुंजाइंश बनी रहती है। वीआईपी कल्चर के खिलाफ उठाया गया केंद्र सरकार का कदम सराहनीय है। लेकिन सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वीआईपी कल्चर में और भी कई चीजें आती हैं, मसलन, बड़े अस्पतालों के वीआईपी वार्ड, शिक्षण संस्थानों की वीआईपी सुविधाएं, मंदिरों के वीआईपी यजमान, दफ्तरों में वीआईपी कमरा, वगैरह-वगैरह... देश को एकजुट करने के लिए इन तमाम वीआईपी सुविधाओं पर भी चाबुक चलाना होगा, तभी देश का हर आम आदमी खास बनेगा।