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भारत की महिला आइस हॉकी टीम को मदद की सख्त ज़रूरत है

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Wed, 22 Feb 2017 03:42 PM IST
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s - फोटो : indiatimes
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शायद आपको पता नहीं होगा कि भारत की एक वीमेन आइस हॉकी टीम भी है। वैसे तो आपको आइस हॉकी की मेंस टीम के बारे में भी जानकारी नहीं होगी। असल में हमारे यहां की दिक्कत यही है कि जब तक किसी खेल में किसी खिलाड़ी को गोल्ड मैडल या ट्रॉफ़ी नहीं मिल जाती, हमें उस खेल के होने या न होने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। क्योंकि हम तो क्रिकेट के फैन हैं।

लेकिन आपको जानकार ख़ुशी होगी कि इस देश की लड़कियों ने अपने लिए एक ऐसा खेल चुना है जिसको हम अब तक सिर्फ़ विदेशी फ़िल्मों में देखते आए हैं। हम बात कर रहे हैं आइस हॉकी की। ये लड़कियां इस देश के सबसे दुर्गम इलाके लेह की हैं। इसके बावजूद ये अपने दम पर इस खेल को आगे बढ़ा रही हैं।
 

इनके पास न खेल के प्रॉपर इक्विपमेंट हैं और न ही अन्य सुविधाएं। इन खिलाड़ियों के प्रति प्रशासन की उदासीनता साफ़ झलकती है। ऐसा लगता है जैसे वो कोई हारी हुई जंग लड़ रही हों। अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलने के लिए ये खिलाड़ी अपनी जेब से पैसा खर्च कर रही हैं। 

पिछले साल इस टीम ने ताइवान में हुए एशिया कप में भाग लिया था। भले ही इन्होंने कोई स्थान नहीं ग्रहण किया लेकिन वो इतने बड़े प्लेटफ़ॉर्म पर खेलकर खुश हैं। गोलकीपर नूर जहां को बेस्ट गोलकीपर का अवॉर्ड भी मिला है। इन्होंने 299 में से 193 शॉट रोके थे। लेकिन नूर जहां को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि उनकी टीम के पास सुविधाओं की भारी कमी है। 
 

इन खिलाड़ियों के लिए रिंक तक का इंतज़ाम नहीं है। इन्होंने खुद एक पूल का निर्माण किया जिसमें ये प्रैक्टिस करती हैं। हर दिन 2-2 लोग बाल्टी भर-भर कर इस पूल को भरते थे। ठंड इतनी अधिक थी कि उनके कपड़ों पर पड़ीं छीटें भी जम जाती थीं। इतनी ठंड में भला आप और हम कंबल से भी निकलते हैं? लेकिन इन लड़कियों के हौसले ठंड भी पस्त नहीं कर सकी।

इनके सामने एक और बड़ी दिक्कत फंड की आती है। किसी भी खेल के लिए सरकार से फंड हासिल करने के लिए उस खेल के साथ कम से कम 75% एफ़िलिएट मेंबर स्टेट होने चाहिए। देहरादून में एक आर्टिफीशियल रिंक मौजूद है लेकिन उसकी कोई देखभाल करने वाला नहीं है।
 

स्टेंजिन चोट्सो इस टीम की सबसे छोटी खिलाड़ी हैं। चीनी ताएपी की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए इन्होंने अपनी दसवीं की परीक्षा भी छोड़ दी। इसी से पता चलता है कि ये लड़कियां इस खेल के प्रति कितनी समर्पित हैं। सेमजेस डोलमा अगले साल अपनी बारहंवीं की परीक्षा देंगी लेकिन इससे उनके खेल पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।

वैसे तो आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया इस खेल को प्रोत्साहित करने की हर संभव कोशिश कर रही है लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिख रहा। यही कारण है कि इनमें से कुछ खिलाड़ियों ने इस खेल को छोड़ कर स्पीड स्केटिंग को अपनाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। इस टीम की बेस्ट प्लेयर रिनचेन डोलमा, कुंज़ेस आंग्मो, डिस्केट आंग्मो स्पीड स्केटिंग में भी देश विदेश में अव्वल स्थान हासिल कर चुकी हैं।

इन लड़कियों को हमारी और आपकी मदद की ज़रूरत है। हम में से सक्षम लोग इन लड़कियों की मदद कर सकते हैं। सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि क्रिकेट के अलावा और भी कई खेल हैं जिनमें भारत आगे बढ़ सकता है। उम्मीद है कि ये लड़कियां उम्मीद छोड़कर इस खेल को खेलना बंद नहीं करेंगी। और अगर ऐसा होता है तो इसके लिए हम और आप ही ज़िम्मेदार होंगे। 

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