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मेघालय के नए सीएम के नाम का ऐलान हो चुका है, एनपीपी पार्टी के मुखिया कोनराड संगमा राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। मेघालय की राजनीति में संगमा टाइटल कुछ खास ही स्थान रखता है, जैसे निर्वतमान मुख्यमंत्री मुकुल संगमा भी संगमा नाम वाले हैं तो भावी मुख्यमंत्री भी संगमा ही हैं। लेकिन सूबे की राजनीति में इस टाइटल को स्थापित किया यहां के सबसे बड़े नेता रहे पीएम संगमा ने।
नौ बार सांसद, एक बार मुख्यमंत्री और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रहे दिवंगत पीए संगमा आज भी राज्य के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं, संगमा की पहचान ऐसे नेता की रही है जिसने मेघालय जैसे पिछड़े राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
उन्हीं संगमा के छोटे बेटे हैं कोनराड संगमा, जो वर्तमान में सांसद हैं और संगमा की बनाई पार्टी एनपीपी के मौजूदा अध्यक्ष हैं। कोनराड संगमा को ही एनडीए के गठबंधन का मुखिया चुना गया है, इन्हीं कोनराड के दम पर मात्र दो सीटों वाली भाजपा ने राज्य में सरकार बनाने का बड़ा दांव चल दिया।
पिछले तीन साल का दौर कोनराड के लिए खासा सफलताओं भरा रहा है, वह पुश्तैनी सीट पर पिता की जगह सांसद बने, पार्टी के मुखिया बने और अब राज्य के मुख्यमंत्री भी बनने वाले हैं। लेकिन कोनराड के लिए सबकुछ इतना आसान भी नहीं रहा।
दिल्ली में रह कर पले बड़े हुए कोनराड संगमा ने राजनीति की शुरूआत अपने घरेलू राज्य मेघालय से ही की थी। सबसे पहले 1990 के चुनावों में वह अपने पिता के कैंपेन मैनेजर बने और उस जिम्मेदारी को कुशलता से निभाया। साल 2004 में पहली बार चुनाव लड़ा लेकिन मात्र 182 वोट से हार गए।
साल 2008 में हुए विधानसभा चुनावों में पिता ने अपनी पार्टी एनसीपी (जिसमें वह शरद पवार और तारिक अनवर के साथ शामिल थे) के बैनर तले कोनराड और बड़े बेटे जेम्स को दोबारा चुनावी मैदान में उतार दिया।
सूबे की राजनीति में पिता का प्रभुत्व ऐसा था कि दोनों ही जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे। गठबंधन की सरकार बनी तो कोनराड को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया, वो राज्य में सबसे कम उम्र के वित्तमंत्री बने। हालांकि एक साल बाद ही गठबंधन टूट गया और उन्होंने विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभाल ली।
इसी बीच उनकी छोटी बहन अगाथा संगमा भी राजनीति में सक्रिय हुईं, साल 2009 के आम चुनावों में पिता ने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट खाली की तो बेटी ने उनकी पैतृक सीट तुरा लोकसभा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर संसद पहुंची। केंद्र की राजनीति में पिता के प्रभाव के कारण उन्हें राज्यमंत्री की कुर्सी भी मिल गई।
पीए संगमा जिस तरह बेटी को राजनीति में स्थापित कर रहे थे उससे माना गया कि वह उसे ही अपना राजनीतिक वारिस बनाना चाहते हैं। हालांकि 2014 के आम चुनाव में अगाथा चुनाव हार गई और दोबारा राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने लगी। पिता का ध्यान भी बेटी की तरफ ज्यादा था।
यही वो वक्त था जब माना गया कि कोनराड संगमा राजनीतिक रूप से हाशिये पर जा रहे हैं। लेकिन साल 2016 में पीए संगमा की मौत के बाद अचानक सबकुछ तेजी से बदला। कोनराड को ही उनकी पार्टी एनपीपी का अध्यक्ष चुना गया, उप चुनाव हुए तो पिता की जगह वही दावेदार बने और मुख्यमंत्री की पत्नी को 1.93 लाख वोटों से हराकर लोकसभा पहुंचे।
इसके बाद लगातार कोनराड ने राज्य की राजनीति में अपने आप को मजबूती से स्थापित किया। उन्होंने एनडीए के साथ अपनी पार्टी को गठबंधन में शामिल किया दूसरे दलों के कई नेताओं को भी अपनी पार्टी में जोड़ा।
इसी बीच मेघालय में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी 18 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी तो उन्होंने भाजपा नेता हेमंत बिस्व शरमा और राम माधव की शह पर सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया।
दूसरी ओर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस 21 सीट लेकर भी अगर मगर में फंसी रही और कोनराड संगमा चुपचाप बाजी मार ले गए। कोनराड संगमा पूर्वोत्तर के अकेले नेता हैं जो सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा एक्टिव रहते हैं। फेसबुक, वाट्सएप से लेकर ट्विटर पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।