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नेताजी के सुर
नेताजी हैं कि अपनी थाह नहीं लगने देते। राजधानी में साइकिल सवारों के सदस्यता अभियान का आगाज हुआ तो नेताजी इटावा में थे। कुछ दिन पहले मैनपुरी गए तो ‘उत्तराधिकारी’ बने बेटे को खरी-खरी सुना आए। अगली लड़ाई की शुरुआत मैनपुरी से करने की बात कही तो तमाम कयास लगाए जाने लगे। अब इटावा गए तो सुर एकदम बदले-बदले रहे। सदस्यता अभियान में बढ़-चढ़कर भाग लेने की अपील की, राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाए जाने पर कोई नाराजगी नहीं, नई पार्टी बनाने की अटकलों को भी खारिज कर दिया। उनके रुख में इस बदलाव पर साइकिल चलाने वाले दिग्गज भी हैरान हैं। एक पूर्व मंत्री का कहना था कि कुश्ती के शौकीन रहे नेताजी सियासत में धोबीपाट लगाते रहे हैं। बड़े-बड़े दिग्गजों को मात दी है, 60 साल का तजुर्बा है, उनके रुख में कब और क्यों बदलाव आता है, पता लगाना आसान नहीं है।
‘स्पेशल’ साहब का जलवा कायम
नई सरकार ने पुरानी सरकार के वफादार कई अफसरों को पैदल कर दिया, पर ऐसे कई चेहरे बच गए जो पिछली सरकार में लंबे समय से एक ही जगह जमे थे और जिन पर जनता की नजर थी। जमीन की खोदाई से तिजोरी भरने वाले महकमे को ही ले लीजिए। इस महकमे के कारनामों की सीबीआई जांच का आदेश हो गया। समय-समय पर शासन में इस महकमे के कई मुखिया आए और चले गए। निवर्तमान विभागीय मुखिया ने पूर्व मंत्री का अपने ऊपर ठप्पा लगवाया, वह भी विदा हो गए, लेकिन इस महकमे के एक स्पेशल सेक्रेटरी सब पर भारी हैं। वे सबसे स्पेशल अफसर माने जाते हैं। सोनभद्र से ललितपुर तक इनका नाम बोलता है। बदनामी न जाने कितनों की हुई लेकिन जलवा स्पेशल साहब का ही रहा। पूर्व मंत्री के खासमखास बनकर उन्होंने कई बार तो अपने शासन के मुखिया को भी दांव दे दिया। इनका जलवा अब भी बरकरार है।
चौधरी और राय साहब को खोजती रहीं निगाहें
हाथी वाली पार्टी का शुक्रवार को बड़ा जलसा था। पार्टी की सुप्रीमो आने वाली थीं। दल के दिग्गज बारी-बारी से मंच पर पहुंचकर अपनी हाजिरी लगा रहे थे। गोरखपुर के तिवारीजी से लेकर मथुरा के शर्माजी और बलिया के बाबू साहब से लेकर हाल में साइकिल छोड़ हाथी पर सवार हुए गाजीपुर वाले पंडितजी भी पहुंचे। पर, वहां नजरें ढूंढ रही थीं बलिया वाले चौधरीजी और राय साहब को। वे दोनों भी चुनाव के दौरान साइकिल छोड़ हाथी पर सवार हुए थे। बड़ी मशक्कत के बावजूद वे स्टेज की ओर नजर नहीं आए। फिर तो जितने मुंह, उतनी बातें शुरू हो गईं।
मेरे विभाग को बदनाम करने की जुर्रत
खादी वाले मंत्रीजी ने सरेआम कह दिया कि सरकारी निर्माण एजेंसी ठीक से काम नहीं कर रही। सही बात तो यह है कि वो काम करने के लायक ही एजेंसी नहीं है। एजेंसी के अफसर उस वक्त तो खून का घूंट पीकर रह गए, पर बाद में निर्माण वाले मंत्रीजी के सामने जाकर खूब रोना-धोना किया। समझाया कि आपके विभाग की बुराई दूसरे विभाग के मंत्रीजी कर रहे हैं। फिर क्या था-अगले ही दिन निर्माण वाले मंत्रीजी ने स्टेटमेंट दे दिया कि निर्माण एजेंसी का कोई मुकाबला नहीं। जो काम उसे सौंपा जाता है, उसे बहुत ही अच्छी तरह से अंजाम देते हैं...।
जैसा बोओगे...
सैर-सपाटे वाले महकमे के एक सा’ब इन दिनों बहुत परेशान बताए जाते हैं। राजनीतिक आकाओं के कहने पर उन्होंने अनाप-शनाप बिलों का भुगतान तो कर दिया, मगर निजाम बदलने पर उन्हें खुद के मुश्किल में पड़ जाने का आभास हो गया है। अब राजनीतिक आका तो फंसने से रहे, क्योंकि दस्तखत तो इन्हीं सा’ब के हैं। संगी-साथी अफसर भी कहने से नहीं चूक रहे-जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे।
नई बोतल, पुरानी शराब...
हर घर को रोशन करने वाले विभाग से जुड़े आयोग के अफसर नई सरकार में यह दिखाने की कोशिश में जुट गए हैं कि वे कितना अधिक काम करते हैं। यही वजह है कि जबसे सूबे में नई सरकार आई है, तबसे यह आयोग अपने पुराने आदेशों को नया करके जारी कर रहा है। पिछले एक साल में वह इन आदेशों को लागू नहीं करवा पाया। अब अपनी नाकामी छुपाने के लिए पुराने आदेशों को ही नया करके भेज रहा है।
पंजे वाली पार्टी के दफ्तर में पसरा सन्नाटा
पंजे वाली पार्टी के नेता सूबे के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। कार्यकर्ताओं के गिरे मनोबल को भी उठाने वाला कोई नहीं है। जिन बड़े नेताओं के हाथ पार्टी की कमान है, वे दिल्ली में डेरा जमाए हैं। यहां पार्टी ऑफिस में सन्नाटा छाया है। पुराने कांग्रेसी नेता तक वहां आना पसंद नहीं कर रहे। इस पर एक बुजुर्ग नेता बोले, पार्टी की स्थिति अनाथ जैसी हो गई है। हार के कारणों की समीक्षा तो छोड़ो, आगे क्या करना है, इस पर भी कोई दिशा देने वाला नहीं है। सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी की सबसे बड़े राज्य में ऐसी हालत की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
मंत्रीजी को ‘काबिल’ की तलाश
प्रधानमंत्री के गढ़ से पहली बार विधायक चुने जाने के साथ ही मंत्री बने एक माननीय अपने मातहतों से परेशान हैं। उनकी पीड़ा है कि स्टाफ में कोई ऐसा ‘काबिल’ नहीं है, जो उनके निर्देशों का सही तरीके से पालन करा सके। दरअसल मंत्रीजी जब भी कोई निर्देश देते हैं, तो उनके निजी सचिव या स्टाफ के अन्य लोग नियमों का हवाला देकर काम कराने से पल्ला झाड़ लेते हैं। लिहाजा मंत्रीजी अब अपने लिए ‘काबिल’ मातहत की तलाश कर रहे हैं।
साहब की चाल से मात खा गए मंत्री
पिछले दिनों खेती-किसानी से जुड़े अपने विभाग का औचक निरीक्षण करने पहुंचे एक मंत्रीजी को उनके ही मातहत ने गच्चा दे दिया। हुआ यूं कि मंत्रीजी ने 10 बजते ही विभाग के सभी गेट बंद करा दिए थे। उधर एक ‘साहब’ रोज की तरह टहलते हुए जब दफ्तर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि मंत्रीजी ने ताला बंद करा दिया है और जो लोग देर से आए हैं, उनको गैरहाजिर कर दिए हैं। लिहाजा साहब गेट खुलते ही मंत्रीजी के पास पहुंच गए। उनसे गैरहाजिर रहने के बारे में पूछा गया तो तपाक से बोले, ‘सर मैं तो आपके पीछे ही चल रहा था, संभवत: अधिक भीड़ की वजह से आपकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी होगी।’ साहब की हाजिरजवाबी से मंत्रीजी को भी लगा कि शायद वह सही बोल रहा है। इसलिए उन्होंने हाजिर मान लिया। मंत्रीजी के जाने के बाद आरक्षण बचाओ आंदोलन से जुड़े इन साहब की चाल की खूब चर्चा रही।
-दर्शक