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अमेरिका ने अफगानिस्तान में गिराया 10 टन का बम, ...और दहल उठा पाकिस्तान!

Updated Sat, 15 Apr 2017 09:33 PM IST
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MOAB: US drops biggest non-nuclear bomb in Afghanistan, but Pakistan targeted
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विस्तार

अमेरिका ने पूर्वी अफगानिस्तान में 'बमों का बाप' MOAB फोड़ दिया। अमेरिका इसे 'मदर ऑफ ऑल बॉम्ब' कहता है। बम जिस इलाके में गिराया गया वह पाकिस्तान से ठीक सटा हुआ इलाका है। मतलब ऐसे समझ लीजिए कि अमेरिका ने पाकिस्तान की कनपटी के ठीक नीचे दुनिया का सबसे बड़ा नॉन न्यूक्लियर बम फोड़ा। धमाका इतना जोर का था कि पाक पीएम नवाज शरीफ सदमे में हैं और सोच रहे हैं... कि कहीं उन्होंने ट्रंप से फालतू पंगा तो नहीं ले लिया!

हालांकि पाकिस्तान ने यह पंगा हाल ही में नहीं लिया है। यह वर्षों से यह चला आ रहा है। दुनिया जानती है कि आतंक के सपोलों की फलने-फूले की सबसे मुफीद जगह पाकिस्तान है। यहां आतंकियों को सस्ते दामों में सारी सहूलियतें आसानी से मुहैया हो जाती है। कई दफा पाक की इंटेलीजेंस एजेंसी आईएसआई का नाम आतंकियों की रहनुमाई के बतौर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां भी बन चुका है। विदेश मामलों के जानकार भी मानते हैं कि अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपना 15 साल से रखा सबसे बड़ा बम यूं ही नहीं फोड़ दिया।
 

खबरें हैं कि ट्रंप को बॉलीवुड फिल्म के उस गाने से बड़ी प्रेरणा मिली है जिसके बोल हैं...'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...' अमेरिका ने इस बात पर पूरा अमल भी किया। यानी निगाहें लगातार अमेरिका के लिए नासूर बन रहे पाकिस्तान पर रहीं और निशाना ISIS के आतंकियों के जरिए अफगानिस्तान की गुफाओं पर साधा गया। अमेरिका को यह इल्म हो चुका है कि पाकिस्तान में पालन-पोषण पा रहे आतंकी दिन में सीमा से सटे अफगानिस्तान में आतंकी वारदातों को अंजाम देते हैं या उनकी प्लानिंग करके रात में वापस पाकिस्तान में चैन की नींद सोते हैं। ऐसे में भाई दादा ट्रंप यह रवैया कैसे बर्दाश्त करने लगे जब उन्हें पता है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा अमेरिकी डोनेशन से ही सधा हुआ है। यानी ट्रंप के लिए यह वैसा ही है कि जैसे 'हमाई बिल्ली, हमई से म्याऊं...' म्याऊं ऐसे... कि अमेरिका एक नहीं, सौ बार पाकिस्तान को समझा चुका है कि वह अफगानिस्तान में विस्तार पा रहे हक्कानी नेटवर्क को नेस्तनाबूत करने के लिए काम करे। 

हक्कानी नेटवर्क एक आतंकी संगठन है। उसकी ज्यादातर गतिविधियां अमेरिका के लिए चुनौतियां बनती हैं। आजकल इस नेटवर्क का टारगेट अफगानिस्तान में अमेरिका के नाटो सैनिक ज्यादा होते हैं। अफगानिस्तान की सरकार के लिए भी हक्कानी नेटवर्क सिरदर्द बना हुआ है। इसे आतंकवादी गतिविधियां चलाने वाला छापामार समूह भी कहा जाता है। अमेरिका को भी लगने लगा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई हक्कानी नेटवर्क को मदद कर रही है। हालांकि जानकार यह भी कहते हैं कि हक्कानी नेटवर्क को स्थापित करने में अमेरिका का ही हाथ रहा है। एक वक्त तक अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआई इसको मदद करती रही है। तब पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ इसकी गतिविधियां होती थीं। बाद में हक्कानी ने रुख बदल लिया और बड़ा पश्चिम-विरोधी गुट बनकर उभरा।

हक्कानी नेटवर्क अब तक अफगानिस्तान में भारतीय और पश्चिमी देशों के कई ठिकानों पर बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका है। अमेरिका लंबे समय से इस आतंकी नेटवर्क से परेशाम है। उसे लगता है कि यह आतंकी संगठन अल-कायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों से भी मिला हुआ है। 

सोचने वाली बात यह भी है कि सबसे खूंखार आतंकी संगठन का तमगा पा चुके ISIS की पैठ अफगानिस्तान में उतनी नहीं है जितनी इराक और सीरिया में है। इसलिए यह जताना कि हमला इस्लामिक स्टेट के आतंकियों को मारने के लिए किया गया, यह बात दुनिया को दिखाने के लिए कही जा सकता है। लेकिन दादा ट्रंप का असली मैसेज... जो वह देना चाहते थे, वह शायद नवाज शरीफ के कानों तक पहुंच गया होगा।

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