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महात्मा गांधी पर गीता के 'समभाव वाली बात' ( ईश्वर इस जगत के हर प्राणी के हृदय में वास करते हैं, इसलिए साधु पुरुष हर प्राणी के प्रति समान भाव रखता है) का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह फिरंगियों-हिंदुस्तानियों, गोरों-कालों, हिंदू-मुस्लिम, ऊंचे-नीचे, अमीर-गरीब का भेद भुला बैठे और पूरी दुनिया को एक नजर से देखा।
गांधी विलायत में बारिस्टरी पढ़ते रहे लेकिन साथ में आध्यात्म दर्शन भी, जिसका असर यह हुआ कि उन्होंने अपने धंधे यानी बारिस्टरी को भी समाजसेवा में लगा दिया और बाद में आंदोलनों के जरिए ऐसा किया।
कई अंग्रेज अफसर गांधी को पीटने से बाज नहीं आए, लेकिन उन्हीं में से कइयों ने यह जानते हुए भी कि यह आदमी उनकी सत्ता हिंदुस्तान से उखाड़ फेंकेगा, उन्हें सिर-आंखों पर बैठाया, क्यों कि वह यह बात भी जानते थे कि गांधी जैसा मानव सदियों में एक बार पैदा होता है, जो सारी मानवजाति को एक ही चश्मे से देखता है और सभी के कल्याण की चिंता करता है।
गांधी को जब एहसास हुआ कि देश में गरीबी-भुखमरी बहुत है और इस समस्या की परिधि में ज्यादातर लोग आते हैं, तो उन्होंने खुद को भी उनके जैसा ही ढाल लिया। पहनने के लिए एक लंगोटी भर रखी। ट्रेन के तीसरे दर्जे में ही सफर करना शुरू कर दिया। आहार को जिंदा रहने के लिए दवा के समान माना। वही बात मुंह से निकाली जो समाज के लिए सार्थक संदेश दे सकती थी।
गांधी ने दुनिया को स्वच्छता के नियमों का पालन करने की सीख दी तो पहले खुद ही उसमें रमे। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए फिर हिंदुस्तान में उन्होंने लोगों को सफाई का पाठ सिखाने के लिए पाखाने तक खुद साफ किए।
गांधी सद् आग्रह यानी सच्चाई के लिए किया गया आग्रह, जो कि सत्याग्रह नाम से जाना गया, इस बात में यकीन रखते थे और अहिंसा यानी जीवों पर दया करने के पूजारी थे। वे कहते थे कि सत्य और अहिंसा किसी भी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं।
गांधी मरते दम तक गीता का पाठ करते रहे, कट्टर हिंदू रहे, लेकिन फिर भी मुस्लिमों और ईसाइयों ने उन्हें प्यार से गले लगाया, ईसाइयों ने तो कई दफा उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए भी कहा।
गांधी हमेशा कहते थे कि भारत गांवों का देश है, भारत की तरक्की तभी मानी जाएगी जब गांव के अंतिम आदमी को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। गांधी के समाजवाद में भेदभाव नहीं था, ऊंच-नीच नहीं थी। गांधी का जीवन परिचय जिसने पढ़ा है, जाना है, उसके लिए एक पल के लिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि उनके जैसा हाड़-मांस का कोई इंसान दुनिया में था।
हमारी करेंसी में छापे जाने वाले हमारे राष्ट्रपिता गांधी जी की बात हम इसलिए कर रहे हैं, क्यों कि हम उनके उच्च आदर्शों की बात तो करना चाहते हैं, लेकिन घर के बाहर तक। उनकी सीख बच्चों को देना तो चाहते हैं, लेकिन यह नहीं चाहते कि वे उसका पालन भी करें। हमारे नेता चीख-चीख कर गांधी की दुहाई देकर सत्ता तो साधना चाहते हैं, लेकिन गांधी के रास्ते पर चलने को तैयार नहीं, एक दिन में जब तक तीन-चार बार कपड़े न बदल लें, उन्हें चैन नहीं पड़ता है।
गांधी के नाम पर किताबें छापना चाहते हैं, संग्रहालय बनाना चाहते हैं, लेकिन गांधी के रास्ते पर कोई चल सके, वैसी बात पर अमल नहीं करना चाहते। गांधी बच्चों को मुफ्त और भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत शिक्षा देने के हिमायती थे, लेकिन हम कॉन्वेंट कल्चर में डुबकी लगा रहे हैं और नर्सरी में दाखिले के लिए भी हजारों की मोटी रकम स्कूलों में थमा रहे हैं।
गांधी इस बाते के भी हिमायती थे कि बच्चों की ज्यादातर शिक्षा उनके अभिभावकों के द्वारा ही संपन्न हो, लेकिन हमें इतना टाइम कहां जो बच्चों को पढ़ाने बैठें।
हद तो यह हो गई के गांधी को ही पढ़ाने वाले स्कूल को सरकार ने बंद कर दिया। गुजरात के राजकोट का मोहनदास गांधी स्कूल बंद कर दिया गया है, अब उसे संग्रहालय में बदला जाएगा।
स्कूल की स्थापना 17 अक्टूबर 1853 में अंग्रेजों ने की थी। स्कूल की इमारत 1875 में जूनागढ़ के नवाब ने बनवाई थी और ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग प्रिंस अल्फ्रेड के नाम पर इसका नाम रखा था। उस वक्त यह सौराष्ट्र का अकेला अंग्रेजी मीडियम स्कूल था।
1857 में 18 वर्ष की उम्र में गांधी जी यहीं पास हुए थे। 1947 में भारत आजाद हुआ तो इसका नाम मोहनदास गांधी हाई स्कूल कर दिया गया। अब संग्रहालय बनाने में 10 करोड़ रुपये लगाए जाएंगे। स्कूल में छात्रों की संख्य 125 थीं, जिन्हें स्थानांतरण प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
राजकोट नगर निगम ने पिछले साल स्कूल को संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज दिया था। हैरान करने वाली बात यह है कि कुछ वर्ष पहले 60 एसएससी छात्रों में एक भी 10वीं की बोर्ड परीक्षा में पास नहीं हो सका था।
राज्य सरकार चाहती तो इस स्कूल को देश के लिए एक आइडियल स्कूल बना सकती थी। राज्य ही क्यों, केंद्र सरकार भी दखल दे सकती थी, पीएम मोदी भी तो गांधी के आदर्शों पर चलने का दावा करते हैं और गुजरात से भी हैं। आप क्या कहते हैं... अपनी राय हमें कमेंट्स बॉक्स में जरूर दें और शेयर करें।