Home Panchayat New Year Eve In Bengaluru Witnesses Mass Molestation Of Women

2017 के शुरूआत में ही बैंगलूरू में हुए हादसे ने फिर दिखाया कि लड़कियां कहीं भी सेफ नहीं हैं!

shweta pandey/firkee.in Updated Mon, 02 Jan 2017 04:48 PM IST
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बैंगलोर
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भईया जी न्यू ईयर की पार्टी ख़त्म हो गई का..? या सुरूर अभी भी है? न्यू ईयर का मतलब नए साल के पहले दिन रात्रि 12 बजे से ही कुछ न कुछ नया करना। चाहे अच्छा हो या बूरा, भलाई के लिए हो या बुराई के लिए, बस कुछ दबंगई होनी चाहिए। मोटा-मोटी अगर कहा जाए तो नये साल के पहले दिन शराब पी कर, जोड़दार डांस। फिर पर्सनली या पब्लिकली लड़की से छेड़खानी करने का मौका अगर साल के पहले दिन ही मिल जाए तो समझो सोने पर सुहागा।

भईया इ रायता कौन फैलाया है कि दिल्ली लड़कियों के लिए अनसेफ है? हम पूछते हैं कि दुनिया का कौन सा कोना लड़कियों के लिए सेफ है। तुम्हारे देश में तो गर्ल्स ट्रायल रूम में भी कैमरे पकड़े जाते हैं। कइसा न्यू ईयर लाला..हमको नहीं समझ आता।

न्यू ईयर का एक्के मतलब है खूब दारू पीना और लड़की छेड़ना। उस दिन तो खुले में भी शराब पी सकते हैं और दुनिया की सबसे कमजोर चीज (औरत) पर हमला बोल सकते हैं। किसी पुलिस वाले का बाप भी उस दिन छेड़खानी करने से नहीं रोक सकता है। तो करो... 

जब पूरी दुनिया न्यू ईयर की शानदार शुरूआत कर रहा था उसी वक्त भारत के एक बड़े शहर बैंगलूरू में 2017 की शुरूआत बेहद शर्मनाक रही। मात्र कुछ लोगों का वजह से ही ऐसी शर्मनाक घटनाएं होती हैं। बैंगलूरू में एक भीड़-भाड़ वाली जगह है एम जी रोड नाम से। जहां अचानक ही पार्टी के बीच में एक भयंकर माहौल बन गया। बैंगलूरू मिरर की एक रिपोर्ट के अनुसार..

1000 से उपर लोगों ने शराब पी कर उपद्रव करना शुरू कर दिया। जहां-तहां लोग भागने लगे। गलीयों में, सड़कों पर शोर होने लगा, लड़कियों से अंधेरे में छेड़खानी और बद्तमीजी हुई, गालीयां-गलौज हुईं। अब इससे अच्छा हो भी क्या सकता है। ज़रूरी थोड़े है कि हर कदम मानवता की पगडंडी पर ही पड़े। कुछ इसके खिलाफ भी तो हो सकता है न। 

सबसे बड़ी बात ये है कि तमाम नाकाबंदी, पुलिस की चौकसी के बाद ये सारे कांड हुए। पुलिस क्या कर सकती है। लोगों की हाई-फाई सोच, ए वन क्लास दिनचर्या, खान-पान और मौज-मस्ती ने मानवता को अमूक कर दिया है। फिर पुलिस वालों को अंधा, गूंगा और बहरा बन कर रहना ही पड़ेगा। हांलाकि इसके खिलाफ कोई अॉफिसीयल केस नहीं दर्ज हुआ। लेकिन ये आंखो देखी वारदात है जो ये फिर से साबित कर दी कि लड़कियां कहीं सेफ नहीं हैं। 

जमाना ऐसा है कि इसे बदला नहीं जा सकता हैं। कुछ लोगों की सोच उनके तलवे में होती है, जितनी छोटी सोच उतने ही गंदे काम। ख़ैर.. पिंक फिल्म से रत्ती भर फायदा नहीं है। मानते हैं कि कई लोग फिल्म नहीं देखे होंगे लेकिन हम दावे के साथ कह सकते हैं कि इस कांड में आधे लोग वही होंगे जिन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर पिंक के डायलॉग्स शेयर किये होंगे।

मात्र ये दिखाने के लिए कि हम बहुत सोशल हैं। पिंक ऐसी फिल्म थी जो इव टींजींग और लड़कियों के साथ होने वाली छेड़खानी को सेंटर करके बनायी गयी थी। लेकिन कोई मतलब नहीं इन फिल्मों का। ये समाज बस अंधाधुंध तरीके से भाग रहा है। भागने दो...

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