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बुधवार शाम को नीतीश कुमार के बिहार के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद एक जमात ऐसी थी, जिसे सबसे ज्यादा खुशी हुई। खुशी ऐसी कि जैसे बंदर को केला मिलने के वक्त होती है, उसका चेहरा एकदम खिल जाता है। अगर आप अब भी घूम-फिरके फिर से बीजेपी के विकल्प पर आ रहे हैं तो ठहरिये, दिमाग की नसों थोड़ा जोर डालिए, आप भी समझ जाएंगे।
चलिए अब हम आपको बता ही देते हैं कि नीतीश के इस्तीफे के बाद कहां जश्न की लहर दौड़ गई थी।
वैसे यह समाज सबसे बदनाम है। लेकिन इसकी कुछ खासियतें भी हैं। खासियतें जानना जरूरी है।
इस समाज में वैसे तो जनगणना होती नहीं, अगर कर ली जाए तो सबसा बड़ा निकलेगा, इतना बड़ा कि इकट्ठा हो जाए तो एक देश बना ले।
इस समाज में कोई जाति, धर्म-मजहब, ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी मायने नहीं रखती है। ले देकर इनका एक ही ईश्वर होता है, जो साइलेंट मोड में रहता है और अपना अहसास कायदे से कराता है। कमाल की बात यह है कि इस ईश्वर की भक्ति में लोग अपना घरवार सब बेचने पर उतारू रहते हैं।
बड़े-बड़े शायरों, कवियों, कलमकारों ने इस समाज पर खूब लिखा, फिल्मकारों ने चलचित्रों में उकेरा, लेकिन यह समाज प्रत्यक्ष तौर पर खूब दुत्कारे जाने के बावजूद अप्रत्यक्ष तौर पर दुनिया में सबसे ज्यादा पनपा। लेकिन पिछले कुछ महीनों से सुशासन बाबू ने अगर सबसे ज्यादा किसी पर चोट की तो वह न तो बीजेपी थी और नहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दल... निशाने पर कोई था तो यही समाज!
इतनी बातें पढ़ने के बाद आप समझ ही गए होंगे... कि बात किस समाज की हो रही है। तो चलिए खुल कर हम बता ही देते हैं कि बात 'बेवड़ा समाज' की हो रही है।
अमूमन बड़ी-बड़ी सरकारें इस समाज से पंगा नहीं लेतीं, लेकिन नीतीश ने पिछले चार बार मुख्यमंत्री रहते तो नहीं, पांचवीं बार में वह कर दिया, मानों बेवड़ा समाज के दिलों खंजर चला दिया। बिहार में शराब बंदी के चलते बेवड़ों ने न जैने कैसे-कैस हथकंडे अपनाएं। हाल में खबर आई थी कि एक जगह पानी के कुएं से शराब की पेटियां बरामद हुईं। वहीं, नेपाल सीमा से सटे इलाकों में लोगों ने पड़ोसी मुल्क की दुकानें खाली कर दीं। कहीं-कहीं से ऐसी खबरें भी आईं के किसी ने शराब न मिलने पर साबुन खा लिया।
बुधवार को नीतीश के इस्तीफे की खबरे के बाद कुछ देर ही सही, इस बेवड़ा समाज को बड़ी राहत जरूर मिली। खासकर बिहारी बेवड़ों के ऐसे खिल गए जैसे कि बंदर को केला मिल गया हो। लेकिन अब छठीं बार नीतीश के सीएम बनते ही अरमानों पर छुरियां फिर से चल गई...
बिहार की सियासत में नीतीश कुमार छठी बार मुख्यमंत्री। कुछ ही घंटों में घटे इस घटनाक्रम को देखकर लग रहा है कि जैसे सुसाशन बाबू ने कुछ सुस्ताने के लिए एक शॉर्ट ब्रेक लिया और काम पर फिर शुरू। देखा जाए तो नीतीश की सेहत पर भी इस पूरे घटनाक्रम का असर नहीं पड़ा, लेकिन लालू और उनके बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप का करियर जरूर चौपट मोड में चला गया। लेकिन इन सबके बीच एक जमात ऐसी है जिसे सीधे तौर पर न नीतीश और न ही लालू से मतलब है, हां, नीतीश का एक्शन जरूर मायने रखता है।