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सावन का महीना खत्म हो गया। जिसके बाद रविवार शाम से ही नॉनवेज खाने वालों की हसरतें हिलोरे मारने लगी हैं। इंसानों के इस बिहेवियर को देख मुर्गों और बकरों के परिवारों में मातमी सन्नाटा पसर गया है। मुर्गी बहनें और माएं, अपने खसम और बेटों को डबडबाई आंखों से देख रही हैं कि न जाने कब पिंजरे वाली गाड़ी उन्हें उल्टा लटका कर ले जाए।
बकरा बाबू इतने टेंशनाइज में हैं कि कभी भी मिमियाने लग जा रहे हैं। जहन में अब्बू की बिना गर्दन वाली उल्टी लटकी तस्वीर बार-बार जिंदा हो जा रही है। जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां दिन के खत्म होने की तरफ बढ़ रही हैं वैसे-वैसे उनकी माथे पर चिंता की सींघें बढ़ते जा रही हैं।
नोएडा की खोड़ा कॉलोनी, चौड़ा मोड़, हरोला और बरोला समेत तमाम इलाकों में नॉनवेज ठेलों-खुमचों लगाने वालों के चेहरे खिलने लगे हैं।
जीव-जन्तुओं को मुंह का निवाला बनाने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है, लेकिन पढ़ा लिखा आदमी यह समझता है कि साल में कुछ महीने, हफ्ते या दिन इससे परहेज कर वह ऊपर वाले के लिए पाक साफ बना रहेगा। उत्तर भारत में खासकर सावन के महीने में मीट की दुकानों पर शटर तक पड़ा हुआ देखा जाता है।
हमने इस खबर को मजाकिया लहजे में इसे दिलचस्प बनाने के मकसद से लिखा है, लेकिन इसके जरिए हम किसी भी प्रकार से इस नॉनवेज के चलन को बढ़ावा नहीं देना चाहते हैं। बल्कि ताजा वैज्ञानिक शोधों से यह बात साबित हुई है कि इंसान के लिए शाकाहारी भोजन ही सर्वोत्तम भोजन है।