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कुछ एग्जाम ख़त्म हो चुके हैं तो कुछ बाकी हैं। रिजल्ट निकलने का समय आ गया है और इसके साथ ही बच्चों पर प्रेशर भी बढ़ता जा रहा है। बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का दबाव है तो दूसरी तरफ उनपर समय से पहले ही करियर बनाने का दबाव भी डाला जाता है।
ये बात तो बिल्कुल साफ़ है कि कई मां-बाप खुद ही ये तय कर लेते हैं कि उनके बच्चे को क्या बनना है। असल में होता ये है कि ये बच्चों की मदद से अपने सपनों को पूरा करने का एक तरीका होता है। पेरेंट्स जो कुछ किसी कारणवश खुद नहीं कर पाते हैं वो काम वो अपने बच्चों से करवाना चाहते हैं।
इसके अलावा पड़ोसी और रिश्तेदार भी एक बड़ा कारण होते हैं जिनकी वजह से बच्चे पिसते हैं। बच्चों को दिन रात पढ़ते रहने के लिए कहा जाता है, इस दौरान मान-बाप खुद अपने हिसाब से बच्चे का टाइम टेबल बनाते हैं। जो काम खुद बच्चे को करना चाहिए वो मां-बाप करते हैं। टाइम टेबल बच्चों को खुद बनाने देना चाहिए।
एक समय था जब बच्चों पर पढाई का कोई बोझ नहीं होता था उस समय बच्चे बिना किसी दबाव के पढ़ते थे। वो बच्चे नंबर लाने के लिए नहीं बल्कि ज्ञान अर्जित करने के लिए पढ़ाई किया करते थे। ऐसे में परिणाम खुद ही आ जाता था। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है।
बच्चे नवीं कक्षा से ही मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग लेने लगते हैं। कोटा जैसे शहर इन कोचिंग के हब बन चुके हैं। लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद भी अगर बच्चा एग्जाम क्वालीफाई नहीं कर पाता है तो वो अवसाद का शिकार हो जाता है। यही वजह है कि एग्जाम की तैयारी कर रहे बच्चे कई बार आत्महत्या तक कर लेते हैं।
एक तरफ तो वो बच्चे होते हैं जो पैसा खर्च कर के भी पास नहीं हो पाते और दूसरी तरफ वो बच्चे हैं जो इन महंगी कोचिंग में पढ़ नहीं पाते। ऐसे में उनको ये लगता है कि आर्थिक तंगी की वजह से वो प्रगति नहीं कर पा रहे। ऐसे में ये बच्चे भी अवसाद का शिकार हो जाते हैं।
ऐसे कई छात्र होते हैं जो अपने सब्जेक्ट अपने माँ-बाप की मर्ज़ी से चुनते हैं। और ऐसे में वो अपनी पढाई में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। मां-बाप को चाहिए कि वो अपने बच्चों का मार्गदर्शन करें न कि उन्हें अपने मन मुताबिक़ चलने पर मजबूर करें।
अगर बच्चे अपना रास्ता खुद चुनेंगे तो निश्चित तौर पर बेहतर प्रदर्शन करेंगे और अगर वो गिरते हैं तो ठोकर खाकर भी खुद ही सीखेंगे। जिस काम में मन नहीं लगे उसे करने से कोई फ़ायदा नहीं होता और उसमें व्यक्ति तरक्की भी नहीं कर पाता। इसलिए ज़रुरत है कि प्रतियोगिता के इस दौर में लोग इस बात को समय रहते हुए समझें और अपने जीवन में आगे बढ़ें।