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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की गिनती प्रदूषण फैलाने वाले देशों में की है और रविवार को पेंसिल्वेनिया की एक रैली में लताड़ लगाई है। ट्रंप ने कहा कि पेरिस समझौते के लिए अमेरिका खरबों डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि भारत, रूस और चीन हैं कि प्रदूषण फैलाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे। उन्होंने कहा कि अगले दो हफ्तों मे वह बड़ा फैसला लेंगे।
ट्रंप यह कह सकते हैं, भई दुनिया के दादा जो हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति मतलब... फिल्म वेलकम का आरडीएक्स!
लेकिन भाई आरडीएक्स को यह पता होना चाहिए कि जितना प्रदूषण भारत, चीन और रूस मिलकर नहीं कर रहे, उससे कहीं ज्यादा तो आपने मतलब अमेरिका ने गंध मचा रखी है। पिछले दस वर्षों से अमेरिका ने दुनिया को वॉर जोन (महाभारत का कुरुक्षेत्र) बना रखा है। जब मने आए, बम गिरा देते हैं।
अभी हाल ही का उदाहरण ले लो, पूर्वी अफगानिस्तान में आतंकियों के सफाए के लिए किया गया आपका कारनामा क्या जलवायु परिवर्तन के लिए चलाई जा रही मुहिम में शुभ कार्य था? आपका मन हुआ और दुनिया का सबसे बड़ा नॉन न्यूक्लियर बम पटक दिया जिसे खुद अमेरिका कहता है मदर ऑफ ऑल बॉम्ब्स...! हिंदी में समझें तो सारे बमों का बाप!
भई, दादा ट्रंप यह कहां कि बात हुई कि यह बम नॉन न्यूक्लियर यानी गैर परमाणु वाला है तो प्रदूषण नहीं करता है। कार्बन उत्सर्जन तो करता ही है न? ...और बड़े पैमाने पर करता है! ...और कार्बन उत्सर्जन तो इराक, सीरिया, ईरान, में गिराई गईं टॉम हॉक मिसाइलों से भी होता है, जिन्हें आप जब मने आए... बटन दबा देते हैं और सुर्र से छोड़ देते हैं। भई, ये तो कोई बात नहीं हुई कि दुनिया भर की जलवायु में जहर घोले आप और दुनिया को लताड़ते फिरें। माना कि अमेरिका पेरिस समझौते के लिए खरबों डॉलर खर्च करता है, लेकिन यह भी जान लो कि कोई एहसान नहीं करता है। अमेरिका धरती से कोई अलग देश नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि कल ही आप मंगल ग्रह पर दुनिया बसा लेंगे और इस धरती से आपका कोई लेना देना न रहेगा।
दुनियाभर देशों की हिमायती संयुक्त राष्ट्र पेरिस समझौता कराया तो यह सोचकर नहीं कि अमेरिका अपनी झूठी शान बरकरार करने के लिए हमले पे हमले करता जाए... कभी अफगानिस्तान, कभी सीरिया... वगैरह-वगैरह... और इसके बदले दूसरे देशों पर जलवायु प्रदूषित करने की आरोप मढ़ता जाए।
पेरिस समझौते यानी जलवायु परिवर्तन को लेकर 2015 में संयुक्त राष्ट्र की पारंपरिक रूपरेखा के तहत 194 देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और 143 ने इसके प्रति गंभीरता भी दिखाई। समझौते का उद्देश्य बढ़ते औसत जलवायु तामपान को दो डिग्री तक नीचे लाना था। लेकिन सबसे ताकतवर कहे जाने वाला देश अमेरिका अपने गिरेबान में झांके और देखे कि उसने इस दो डिग्री को नीचे लाने के लिए कितने प्रयास किए। अगर वह सोच रहा है कि उसने साफ-सुथरी सड़कें बनाई हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया है, तो यह कहां कि बुद्धिमानी हुई कि धरती के दूसरे हिस्सों पर पर्दूषण फैलाने वाली मिसाइलें गिराता फिरे। दादा ट्रंप अंडे से बाहर भी दुनिया है, उससे बाहर निकलिए और देखिए... कि भारत, चीन और रूस नहीं, बल्कि अमेरिका ने किस कदर तक जलवायु और इंसानियत का तापमान बढ़ा रखा है। इंसानियत का ऐसे... कि जब से आप राष्ट्रपति बने हैं, सबसे ज्यादा हेट क्राइम अमेरिका में ही हो रहे हैं। उनमें कई भारतीय मांओं के लाल बेवजह जान गंवा चुके हैं।
तापमान बढ़ाना तो आपकी फितरत में शुमार है... कम से कम उसे ही बदल लीजिए। आप कूल रहेंगे तो जाहिर है आपका पैसा भी कम खर्च होगा और दुनिया का तापमान भी कम होगा, और तब आप शायद भारत, चीन और रूस को न लताड़ें।
ट्रंप की अकुलाहट!
ट्रंप की मानें तो एक अनुमान के मुताबिक अगर अमेरिका ऐसे ही समझौते का पालन करता रहा तो अमेरिका की जीडीपी अगले वर्षों में 2.5 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 1606 अरब रुपये के नुकसान से गुजरेगी। इससे देशभर में कारखाने बंद होने का आशंका है।