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सर्वे भवंतु सुखिन: यानी सभी सुखी रहें।
भारतीय दर्शन में गहरे पानी पैठ लगाएंगे तो कभी दुखी होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब देखिए न। एग्जिट पोल या कहें एजेंसियों के सर्वे पर सर्वे सामने आए और नेतागण 'सर्वे' भवंतु सुखिन: के समभाव में लीन हो गए। यानी, सभी सर्वे सुखी रहने के लिए ही होते हैं। दुखी होने की जरूरत क्या है। क्यों है।
महानायक अमिताभ बच्चन न जाने कितनी बार टीवी के अनगिनत पर्दों पर अवतरित होकर बाबूजी की चंद लाइनें सुना चुके हैं- मन का हो तो अच्छा, न हो तो और अच्छा क्योंकि वो ईश्वर की इच्छा है।
चुनावी मौसम में हमारे नेताओं ने इस लाइन में तनिक मॉडिफिकेशन किया है। मन का हो तो अच्छा, न हो तो भी लगता अच्छा ही है। अब राजस्थान के एग्जिट पोल भले कह रहे हों कि सूबे में कांग्रेस सरकार बनाने वाली है लेकिन मान कैसे लें। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रभारी हैं, सो कह उठे कि 11 दिसंबर को ही बात करेंगे, अभी प्रतिक्रिया नहीं दूंगा। यानी, दिल ही दिल में उम्मीद का दीया रोशन है। क्या मजाल एग्जिट पोल की हवाओं की जो इसे बुझा सकें।
उधर, मध्यप्रदेश में शिवराज ने तो कह दिया है कि ये एग्जिट पोल-वेग्जिट पोल कुछ नहीं होता। यहां के हम हैं राजकुमार, आई मीन, सर्वेयर। वो भी सबसे बड़े सर्वेयर। तो शिवराज के मुताबिक जीत भाजपा की ही होगी। उन्होंने सर्वे की झड़ी में अपने काम की कड़ी ढूंढ़ ली है।
वैसे सच ही तो है। बड़ा शोर करते हैं ये सर्वे। इतना हल्ला। नेताओं के घर रतजगा चलता है। अचानक फोन खटकने लगते हैं। टीवी चैनलों की स्क्रीन पर आंकड़ों की ऐसी बहार आती है कि आईआईटी दिल्ली की मैथ्स क्लास में भी इतना डेटा, ब्लैक बोर्ड पर एक साथ नहीं आता होगा।
और अंत में आता है नतीजा। अलां पार्टी के समर्थक का व्हॉट्सएप आता है कि उसकी पार्टी जीत रही है। फिर फलां पार्टी का समर्थक उसे रिप्लाई करता है कि ठीक से देखो, दो सर्वे में उसकी पार्टी जीत रही है।
एक सर्वे, एक प्रदेश में एक पार्टी को 126 सीट देता है। दूसरा सर्वे, उसी प्रदेश में उसी पार्टी की विरोधी को 126 थमा देता है। कसम कलकत्ते की, माथा पीटने को जी चाहता है। हम बोलें तो बोलें क्या, करें तो करें क्या।