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सरकार और चुनाव के मामले में उत्तर प्रदेश की किस्मत भी बिहार जैसी ही है। वहां लालू और नितीश चलते हैं यहां मुलायम और मायावती.. दोनों बारी-बारी से। एक बड़ा फ़र्क ये है कि लालू-नितीश तो एक हो गए पर मायावती ने पिछले ही साल बता दिया था कि किसी भी सूरत में समाजवादी पार्टी को सपोर्ट नहीं करेंगी।
कहा जाता है कि 10 जनपथ का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुज़रता है पर उत्तर प्रदेश अपने आप में एक उलझा हुआ राज्य है। लोग पिछले दो दशक से अक्कड़-बक्कड़ खेल रहे हैं और सपा-बसपा को वोट दे रहे हैं। क्या करें? कोई बढ़िया ऑप्शन भी तो हो। मैडम जी पार्क बनवाकर चली गईं तो अखिलेश बाबू को बुलाया गया। इन्होंने लैपटॉप बांट दिए, लो जी हो गया यूपी का कल्याण!
अरे हां, कल्याण से याद आया। जिस ज़माने में भाजपा यूपी में जीता करती थी उस समय कल्याण कभी यहां के मुख्यमंत्री थे। इस बार भी यूपी के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए आज मोदी जी ने कैबिनेट में फेरबदल किया। कई नए लोग भी आए, कुछ 'नोट के बदले वोट' वाले लोग भी आए। ये सब राज्य के चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया। इन सबके बीच एक बड़ी खबर थोड़ी दब गई। वो ये कि इंदिरा गांधी की पोती को अब फुलटाइम नौकरी मिल गई है।
ख़ैर, प्रियंका मैडम को नौकरी की क्या ज़रूरत? गांधी हैं, इतना ही काफी है। उनके चक्कर में तो रॉबर्ट वाड्रा भी इंडिया के प्रिंस विलियम बन लिए। तो बात ये है कि प्रियंका गांधी अब फुलटाइम पॉलिटीशियन बन गई हैं। उन्होंने खूब बचने की कोशिश की। वो इसलिए भी बचती रहीं कि कहीं भैया का करियर न खराब हो जाए। लेकिन भैया का करियर है कि सरकारी ऑफिस का प्रिंटर, खराब ही पड़ा हुआ है।
अभी कांग्रेस की हालत बहुत ही खराब है। केंद्र में तो है ही नहीं, राज्यों में भी बस गिनती के कुछ नाम हैं कांग्रेस के हिस्से। अब ऐसे में यूपी का रिस्क कैसे ले लें सोनिया मैडम? वो भी इतने वक्त से देख ही रही हैं कि राहुल बाबा कुछ कमाल नहीं दिखा पा रहे हैं। बहुत मेहनत से स्पीच देना सीख लिया है पर ये यूपी है बेटा.. यहां चुनाव बच्चों का खेल नहीं होता है (वो बात अलग है कि लोग वोट देने से पहले रत्तीभर भी बुद्धि नहीं लगाते)। देश की सर्वाधिक जनसंख्या वाले प्रदेश में इस बार तो वैसे भी रिस्क नहीं लिया जा सकता।
अरे जब 282 सीट वाली मोदी सरकार नहीं ले रही है तो राहुल के उम्र भर की सीट पाने वाली सोनिया मैडम काहे लें भला। उन्हें शायद पता चल गया कि युवराज जी से कुछ न हो पाएगा। तो इस बार प्रियंका बिटिया को मैदान में उतारना ही होगा। ये अफ़वाह नहीं है भाई, ख़बर पक्की है। प्रियंका अब फुलटाइम राजनीति में आ रही हैं। यूपी में कांग्रेस का बेड़ा शायद यही पार करवा सकें।
अभी तक जब भी सोनिया जी यूपी में वोट लेने जाती हैं तो ये बताना नहीं भूलतीं कि यूपी की तो बहू हैं वो। फिर इंदिरा की पोती का तो जन्मसिद्ध अधिकार हुआ न यूपी पर। वो तो लड़की जानबूझकर भाई के लिए सब छोड़े हुए थी जैसे लड़कियां अपने पापा की प्रॉपर्टी को भाई के लिए छोड़ देती हैं। पर भाई को संभालना आए तब तो। इसलिए इस बार प्रियंका संभालेंगी। अब यूपी वाले भी कम इमोश्नल थोड़े हैं। सोनिया बहू बनकर वोट ले जाती हैं, प्रियंका बेटी बनकर ले जाएंगी।
कुछ लोग ये देखकर भी उनपर प्यार लुटाएंगे कि बच्ची की शक्ल अपनी दादी की है। बाल-वाल भी वैसे ही हैं। इस समय की इंदिरा ही है समझो। यहां लोग इमोश्नल होकर ही तो वोट देते हैं। उसके बाद 5 साल तक सुस्ता लेते हैं।
भाजपा वाले इस बात पर कांग्रेस की फिरकी ले रहे हैं कि - लगता है अब कांग्रेस को पता चल गया है कि राहुल में कोई दम नहीं है। हमें तो भाजपा पर ही हंसी आ रही है। ये बात कांग्रेस को आज ही से थोड़ी पता है यार। पर क्या करें, अपना बेटा है.. अपनी राजनीति है। यहां भी करियर न बनवा पाए तो क्या फायदा दादी की पार्टी का! हां नहीं तो!