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रामगोपाल वर्मा जी, आप फिल्में बनाते हैं। फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि उनमें परखने की अच्छी समझ होती है। वे विषय-वस्तु के उथलेपन की चौखट पार कर गहराई से सोचते-समझते हैं। पर आपको भी एक विधायक में उसकी सूरत से ऊपर कुछ नहीं दिखा। अफ़सोस की आप कपड़े और शरीर से ऊपर नहीं उठ पाए। इससे ज्यादा अफ़सोसजनक किसी सिनेमाप्रेमी के लिए कुछ नहीं हो सकता कि एक निर्देशक मात्र भौतिक सौंदर्य की लालसा में राजनीति में अच्छे दिन की तलाश कर रहा है।
लड़कियों पर मापतोल आज से नहीं हो रही है। लड़कियां हमेशा से सामाजिक पैरामीटर का शिकार रही हैं। उन्हें घर में कैद कर 'कीमती सामान' बना दिया जाता है और बाहर भेजकर 'कैरेक्टरलेस'। वो अगर आधुनिक भी हैं तो 'घटिया' बन जाती हैं। रात में घर से बाहर रहने वाली लड़की आवारी हो जाती है और जिसके दोस्तों में चार लड़के शामिल हों वो बद्चलन हो जाती है। कभी लड़कियों से पूछें कि क्या वो आपसे कोई सर्टिफिकेट चाहती हैं?
https://twitter.com/RGVzoomin/status/734954582535602176
समाज ने लड़कियों पर अपनी बपौती समझ ली है। वो क्या करेंगी, क्या खाएंगी, कहां घूमेंगी, क्या पढ़ेंगी, उनके दोस्त कौन होंगे, वो किससे शादी करेंगी और किसके साथ सेक्स करेंगी ये सब आप लोग निर्धारित करते हैं और इसे नैतिक रूप देने के लिए सामाजिक ठप्पा लगा देते हैं।
राम गोपाल जी, आप ने जो कहा उसमें आपकी ज्यादा गलती नहीं है। हमारा सामाजिक ढांचा ही ऐसा है जहां एक वर्ग हमेशा लड़कियों को स्कैन करने के लिए ही बैठा रहता है हमें निराशा बस इस बात से है कि आप फिल्म निर्देशक हैं। आप अंगूरलता डेका को नहीं जानते, आपने उनके बारे में जानने की कोशिश भी नहीं की। वो राजनीति में किस उद्देश्य से आईं, क्या करना चाहती हैं और वो देश व समाज के बारे में क्या सोचती हैं ये आपको नहीं पता। आपने ये पता करना भी नहीं चाहा। आपकी सूक्ष्म दृष्टि उनकी देह पर ही अटकी रह गई और आप ने मान लिया कि अच्छे दिन आ गए।
अंगूरलता फिल्मी दुनिया से राजनीति में आई पहली महिला नहीं हैं। जया, रेखा, जयललिता, स्मृति जैसे अनेकों उदाहरण राजनीति में मौजूद हैं पर महिलाओं को कमतर मानने की समाज को आदत-सी हो गई है। आप ये देखना ही नहीं चाहते कि महिलाएं कैसा काम करती हैं या कर सकती हैं। उनकी खूबसूरती ही उनकी प्रतिभा का कत्ल कर देती है।
आपके लिए कितना आसान था ऐसा ट्वीट करना, ट्वीट करने के बाद लोगों की प्रतिक्रिया से पहले क्या आपने कभी सोचा कि स्वयं उस महिला को ऐसा पढ़कर कैसा लगेगा जो राजनीति में अभी कदम रख ही रही है। आप सामान्य इंसान नहीं हैं, आप ने जिस तरीके से किसी नौसीखिए का मनोबल गिराया है, उसका उस महिला पर क्या असर पड़ सकता था, इसपर सोचिएगा।
समस्या यही है कि आप महिलाओं को पैमाने में ढालना और मापना बंद नहीं करेंगे और बिना इसके वो मंगल ग्रह पर भी पहुंचकर आज़ाद नहीं हैं।
मैं उस दिन कहूंगी महिलाएं आज़ाद हैं, जिस दिन उन्हें मापने का हर पैमाना टूटेगा।।
आप औरतों में सूरत की बजाय उनकी सोच-समझ, अकांक्षाएं, क्षमताएं ढूंढना शुरू कर दीजिए, अच्छे दिन आ ही जाएंगे।