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यूपी के अस्पतालों में इन दिनों मरीजों के सामने चुनौतियां दोहरी हैं। एक बीमारी की, दूसरी बीमार अस्पतालों की। ऐसा लगता है कि ये अस्पताल मरीजों को मार ही देते हैं ताकि उन्हें इलाज के झंझट से जूझना न पड़े। जिन्हें जल्दी मरना है, वे यहां भर्ती हो सकते हैं। बड़ी संख्या हो रही मौतों से लगता है कि ये अस्पताल जानलेवा हैं। इस वाक्य को बस इनके बोर्ड पर लिखने भर की देर है।
प्राइवेट अस्पताल में उनकी महंगी दवाएं आदमी को धीरे-धीरे मार देती हैं। सरकारी मेडिकल कॉलेजों की व्यवस्था मरीजों को जल्द से जल्द उन्हें स्वर्गलोक की सैर करवाने में मदद करती है। मानो अस्पताल नहीं, जिंदगी से जल्दी टिकट कटवाने के सेंटर खुले हों।
मौत और मातम की फैक्ट्रियों में तब्दील हो रहे अस्पतालों से अब न तो सरकार को कोई फर्क पड़ रहा और न ही जनकल्याणी जनता को। खबर आई, हेडलाइन बनी और फिर निकल गई। अस्पतालों की सिचुएशन पर बर्बस ही फिल्म क्रांतिवीर के नाना पाटेकर याद आ जाते हैं जो एक संवाद में कलम वाली बाई और मूर्कदर्शक बनी जनता का ध्यान खींचने के लिए कहते हैं-
हमें क्या करना है, कोई मरता है तो मरे, कोई जीता है तो जिए... ऊपर वाले कितनी सुंदर चीज बनाई थी इंसान... लेकिन नीचे देखा तो कीड़े रेंग रहे हैं। अरे भई हमें नहीं जीना है...
...और नाना सट्ट से काला कपड़ा सिर पर पहन लेते हैं और फांसी के लिए तैयार हो जाते हैं।
सामाजिक व्यथाओं से ऊबकर हमारे समाज के एक परसेंट लोग नाना के जैसे हैं लेकिन वे फांसी लगाकर नहीं मरना चाहते, वे सबकुछ आंखों के सामने देखते हुए और उसके प्रति संवेदना जताते हुए मरना चाहते हैं। बाकी बचे 99 फीसदी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 48 घंटों में 30 से ज्यादा बच्चों के दम तोड़ने की घटना सरकार और प्रबंधन की घोर लापरवाही को उजागर कर रही हैं, लेकिन माने कौन!
आंकड़े बताते हैं कि अस्पताल में 5 दिनों में बच्चे-बूढ़े मिलाकर 63 लोग स्वर्ग सिधार गए हैं।
ऐसा लगता है कि मानो समुद्र मंथन में निकला अमृत लापरवाही पर मिट्टी डालने वालों ने पिया है और ये मरेंगे नहीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले ठेकेदार ने कुछ दिन पहले ही करीब 68 लाख की पेमेंट न मिलने पर हाथ खड़े कर दिए थे। अब सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि बच्चों की जान बीमारी के कारण ही गई है। लेकिन बाहर खूब हल्ला मच रहा है। सोशल मीडिया पर अस्पताल की दुखद घटना ट्रेंड कर रही है।
सरकार को चाहिए कि इन अस्पतालों की व्यवस्था अगर दुरुस्त नहीं हो पा रही हैं तो इनके बोर्ड पर साफ लिखवा ही दे कि ये अस्पताल जान लेवा हैं। अपनी ऑक्सीजन साथ में लेकर आएं।