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हमारे देश की आधे से ज्यादा आबादी दुनिया में आती है और चली जाती है, पता नहीं चलता। वो सुर्खियों में आती भी है तो वोटबैंक और भीड़ के रूप में। इस भीड़ को भी इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह किसी भीड़भाड़ वाले बाजार की तरह अपनी अलग से पहचान बनाए। यहां तो बकायदा भीड़ बिक तक जाती है, जैसे इलेक्शन की रैली के लिए, दंगे फसाद के लिए। फिल्म की शूटिंग के लिए... वगैरह वगैरह।
इसी भीड़ की एक ताकत यह भी है कि ये किसी को भी रातो-रात स्टार बना देती हैं। खासकर बॉलीवुड के नायक-नायिकाओं को इतनी इज्ज्त बख्शी कि स्वर्ग लोक में देवी-देवताओं को भी नसीब नहीं होगी। आजकल यह भीड़ अपनी ताकत सोशल मीडिया के माध्यम से दिखा रही है। स्टारों के बाद उनकी पीढ़ी को भी सुर्खियों में लाने और उन्हें स्टार जैसा फील कराने की जिम्मेदारी इस भीड़ ने उठा रखी है।
मतलब... जाह्नवी कपूर को कभी उनकी मां श्रीदेवी और पिता बोनी कपूर ने नोटिस नहीं किया होगा, जितना भीड़ ने कर लिया। जाह्नवी ही क्यों, चंकी पांडे की बेटी, सैफ की बेटी, वगैरह वगैरह... मायानगरी के फोटो पत्रकारों को लगता है कि इस बात का मंथली टारगेट दिया जाता है कि किसी स्टार का बेटा-बेटी जिम से निकले, घर से निकले, सिनेमा हॉल से निकले या रेस्टोरेंट से... लपककर फोटो खींच लो। इसके लिए भी भीड़ ही जिम्मेदार कही जाएगी, क्यों कि वह ही पेजव्यूज में तब्दील होकर उनका टारगेट पूरा करती हैं। बिजनेस अच्छा होता। लेकिन कई बार तो भीड़ की तुष्टी के लिए फोटो जमा कर रहे फोटोग्राफर इतने उतावले हो जाते हैं कि स्टारों को असहज कर देते हैं। इतना... कि उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।
20 नवंबर को मुंबई में ऐश्वर्या राय बच्चन भी फोटो पत्रकारों से इतनी दुखी हो गईं कि उनकी आंखों से आंसू निकल आए। ऐश्वर्या अपने स्वर्गीय पिता कृष्णराज राय का जन्मदिन सेलीब्रेट करने अस्पताल गई थीं। उनके साथ मां वृंदा राय और बेटी आराध्या भी थीं। इस मौके पर ऐश्वर्या ने 100 बच्चों की सर्जरी का खर्च उठाने की बात कही थी, सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन फोटोग्राफरों में तस्वीरें लेने की ऐसी होड़ मची कि अफरा-तफरी मच गई। ऐश्वर्या ने कहा कि वे किसी फिल्म के प्रीमियर पर नहीं आई हैं, अस्पताल में हैं और वहां बच्चे हैं। इसलिए बिना शोरशराबे के फोटो खींचो। लेकिन फोटोग्राफर कहां मानने वाले। आखिर में ऐश्वर्या नम आंखों के साथ अस्पताल से निकलीं। यह इवेंट एक एनजीओ और हॉस्पिटल ने मिलकर ऑर्गनाइज किया था।
यहा पहला मौका नहीं है, कई बार स्टारों को भीड़ की खातिर असहज होना पड़ जाता है। यही भीड़ पद्मावती के ट्रेलर को देख-देखकर उसे टॉप ट्रेंडिंग में ला देती है और फिर भावनाएं आहत कर तलवार भी निकाल लेती है। माना कि भीड़ की ताकत होती है, लेकिन यह भी याद रखना होगा कि कोई भी देश तभी समृद्ध और शक्तिशाली होता है जब वहां की ज्यादातर जनता मर्यादा के दायरे में बुद्दि से काम लेती है।