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आजकल की जनरेशन पिता जी की बात नहीं मानती, फिल्मों की ज्यादा मानती है। पिता लाख उसे समझाते रहे, आगाह करते रहे, लेकिन बेटा उन्हें विलेन की कैटेगरी में डाल देता है। ठीक उसी तरह मन और बुद्धि से यंग पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी अपने पिता (भारत) को हमेशा विलेन ही समझता है और उनकी कोई भी बात सुनना नहीं चाहता। लेकिन अब वह बेचारा क्या करे, जिसे दोस्त समझता था, वह दोस्त नहीं निकला। दबी जबान से पाकिस्तान गा रहा है कि दोस्त दोस्त न रहा। लेकिन हम तो कहते हैं कि उसे एक और बॉलीवुड गाना गाना चाहिए- ऐसा भी देखो वक्ता जीवन में आता है... अच्छा खासा दोस्त भी दुश्मन बन जाता है। सच में बड़ी सच्चाई है इस गाने में। एक सच्चाई यह भी है कि दोस्ती हमेशा बराबरी वालों में होती है। गरीब और अमीर के बीच में नहीं। जैसे कि पाकिस्तान और चीन। और यह साबित भी हो गया है।
चीन के शिनजियान से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक चीन और पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना रहे हैं। सही पूछिये तो इसे चीन बना रहा है क्योकि 90 फीसदी रुपया चीन का ही लगा है। भारत को इस आर्थिक गलियारे से आपत्ति है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। लेकिन हाल ही में पाकिस्तानी सेना के जनरल ने भारत के खिलाफ आरोप लगाया कि वह आर्थिक गलियारे के बनने में बाधा डाल रहा है, तो चीन ने ऐसी बात कह दी... कि दोस्त दोस्त न रहा गाना... गाने की पाकिस्तान को याद आई।
पाकिस्तान ने कहा था कि भारत ने इस परियोजना को बाधित करने के लिए बकायदा 50 करोड़ डॉलर खर्च करके खुफिया एजेंसी रॉ को इसके लिए अलग से सेल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। पाकिस्तान के ज्वॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी के जनरल जुबैर महमूद हयात ने 14 नवंबर को कहा था कि भारत क्षेत्र में अराजकता फैला रहा है। बलूचिस्तान में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है और लोगों को पाकिस्तान के प्रति भड़का रहा है। इससे आर्थिक गलियारे में बाधा पहुंचेगी। लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लु किंग ने इन आरोपों से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके पास इस तरह की कोई रिपोर्ट नहीं है। मतलब दोस्त की बात पर यकीन नहीं है। माफ कीजिए दोस्ती तो थी ही नहीं, जो है वो मौकापरस्ती है, मतलब है... और मुनाफा है।
चीन ने अपने हित साधने के लिए पाकिस्तान को इतना रुपया दिया कि जैसे उसे गोद ले लिया हो। पाकिस्तान भी कुछ वक्त के लिए गोद में बैठे बच्चे के समान लाड़-प्यार के अनुभव की गलतफहमी में दिवा स्वप्न देखने लगा। लेकिन अब उस कर्ज का ब्याज इतना हो रहा है कि पाकिस्तान सात पुश्तों तक चुकाने की स्थिति में नहीं होगा। भला कोई दोस्त ऐसा करता है क्या। चीन तो पाकिस्तान के लिए पुरानी हिंदी फिल्मों के उस लाला की तरह निकला जो किसान का मकान और खेती गिरवी रखकर उससे ब्याज वसूलता रहता है और न मिलने पर घर खाली करवा देता है।
पाकिस्तान को शायद इस बात इल्म होने लगा है। चीन पाक आर्थिक गलियारे में प्राइवेट बैंक पैसा लगा नहीं सकती। मतलब पाकिस्तान को कोई सरकारी बैंक पैसा देगी नहीं, जिससे चीन के कर्ज से मुक्ति मिले। शायद इसीलिए हाल ही में पाकिस्तान ने डैमर भाषा डैम परियोजना के लिए चीन की 14 अरब डॉलर की पेशकश ठुकरा दी। शुरुआत में इस प्रोजेक्ट पर 5 अरब डॉलर की लागत आनी थी, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय कर्जदाताओं ने इसकी फंडिग के लिए कड़ी शर्ते रख दीं। इससे खर्च बढ़कर 14 अरब डॉलर हो गया।
कुलमिलाकर सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है। सीपीईसी को बाधित करने के पाकिस्तान के भारत के खिलाफ आरोपों से जिस तरह चीन ने इनकार किया है, उससे लगता है चीन पाकिस्तान के साथ खेल रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो वह यह बात जानते हुए कि मसूद अजहर आतंकी है, उसके बचाव में न उतरता। इससे पाकिस्तान को यह बात समझ लेनी चाहिए कि चीन और चाइना माल की गारंटी नहीं होती कि कब तक काम आएंगे।