Home Panchayat Satire Up Police Arrests Donkeys Accused Of Destroying Costly Plants

यूपी पुलिस के खिलाफ गधों की जमात में उबाल, मामला ही कुछ ऐसा है

Updated Tue, 28 Nov 2017 02:50 PM IST
विज्ञापन
Satire: UP Police arrests Donkeys accused of destroying costly plants
- फोटो : ANI
विज्ञापन

विस्तार

गधा सुर में गाए तो परेशानी, दो मिनट सुस्ताए तो परेशानी, दिल से खाए तो परेशानी, लेकिन क्या गधों को परेशानी हुई जब इंसानों ने उसका धरती से लेकर किताबों तक में बेजा इस्तेमाल किया? 

जेल से बाहर आता मायूस गधा और उसके पीछे कुछ और गधे उतने ही गुस्से में हैं। इन पर फूलों को चरने का आरोप है। मामला उत्तर प्रदेश के उरई का है। पुलिस ने जेल के बाहर लगे फूलों को नष्ट करने के आरोप में गधों को चार दिन की कैद में रखा और फिर छोड़ दिया। 

जी हां, चार दिन शायद इन गधों को यह बात समझ में आ गई होगी कि अब वे आगे से ऐसा गुनाह नहीं करेंगे। गधों ने यह भी समझ लिया होगा कि गलती होने पर पुलिस जेल में डाल देती है, इसलिए सलाखों के पीछे गुजारा करने से बाहर की मजदूरी भली है। गधे शायद अपनी रिहाई पर सवा रुपये का प्रसाद भी चढ़ाएं और उनके कुनबे में पार्टी भी मनाई जाए। आखिर खुशी की बात जो है, सलाखों के पीछे से छूटे हैं भई!

जेल से छूटकर आए गधों की भी एक शिकायत है कि जानवरों के समाज में सबसे मेहनतकश उनकी नस्ल है, दिन रात मेहनत मजदूरी करती है, तब जाकर दो जून की घास-भूसी नसीब होती है। अब रोज रोज घास कहां तक खाई जाए, कभी कभार कुछ सुगंधित फूल खा लिए तो इसमें हर्ज क्या है? आदमी भी क्या रोज एक तरह की दाल या सब्जी खा सकता है? लेकिन नहीं, औसत से भी कम आय में साहब लोगों के मकानों के लिए ईंट-बालू हम (गधे) ढोएं और दो-चार फूल खा लें तो जेल की सजा भुगतें।

गधा एसोसिएशन की तरफ से इस बात का विरोध भी दर्ज किया जा रहा है, कि पिछले कुछ समय से गधों को लेकर सियासत खूब हो रही है। यूपी चुनावों के वक्त तो गधा बकायदा पक्ष और विपक्ष के बीच बहस का मुद्दा रहा था। चुनावी मंच से गधों की तारीफ में कसीदे भी पढ़े गए थे और उनका मजाक भी बनाया गया था। 

गधों को आपत्ति हैं कि उन पर सियासत न की जाए, और उन्हें इतनी आजादी दी जाए कि कभी कभार कुछ फूल पत्ती खा लें तो फिर जेल की हवा न खाने को मिले। 

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक पुलिस का कहना है कि अधिकारियों ने जेल के बाहर मंहगे पौधे लगवाए थे। जिन्हें गधे चर गए। इधर गधों की तरफ से कहा जा रहा है कि भई, अब गधे तो गधे होते, वे महंगे-सस्ते का फर्क थोड़े ही जानते हैं!



 

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree